Uniform Civil Code पर इंदौर हाईकोर्ट की टिप्पणी- अब समय आ गया है देश इसकी आवश्यकता समझे, तीन तलाक को गलत बताते हुए कहा

न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने मप्र के बड़वानी जिले के राजपुर कस्बे की मुस्लिम महिला के तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए  मप्र हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ ने अहम टिप्पणी की है।

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Sanjay gupta
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Uniform Civil Code
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केंद्र में बीजेपी लगातार देश में यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) (Uniform Civil Code) पर बात कर रही है और इसकी जरूरत बता रही है। इस मामले में अब मप्र हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ की अहम टिप्पणी आई है।

तलाक से जुड़े एक मुद्दे पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक और समाज के लिए बुरा है। कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए। अब समय आ गया है कि देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझे। समाज में आज भी आस्था और विश्वास के नाम पर कई कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं।

यह भी कहा कि अब इसे वास्तविक बनाया जाए

यह भी कहा कि भारत के संविधान में पहले ही से अनुच्छेद-44 शामिल है, जो समान नागरिक संहिता की वकालत करता है, लेकिन अब इसे केवल कागज पर नहीं बल्कि वास्तविक बनाया जाए। अच्छी तरह से तैयार समान नागरिक संहिता ऐसे अंधविश्वासों और बुरी प्रथाओं पर रोक लगाने का काम करेगी। इससे राष्ट्र की अखंडता को मजबूती मिलेगी।

अधिवक्ता सुधांशु व्यास

बड़वानी जिले के तलाक मामले में थी सुनवाई

सोमवार को न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने मप्र के बड़वानी जिले के राजपुर कस्बे की मुस्लिम महिला के तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। महिला ने मुंबई निवासी पति, सास और ननद के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई थी। महिला के पति ने उसे 3 बार तलाक बोलकर तलाक दे दिया था।

महिला को झेलना पड़ता है अत्याचार

अधिवक्ता सुधांश व्यास ने बताया कि जस्टिस वर्मा ने 10 पेज के फैसले में 3 तलाक को गंभीर मदुदा बताया है और तलाक के साथ ही समान सिंविल संहिता को लेकर अहम बातें कही है।

उन्होंने तलाक पर कहा कि इससे शादी को कुछ ही सेकंड में तोड़ा जा सकता है और वह समय वापस नहीं लाया जा सकता है। दुर्भाग्य से यह अधिकार केवल पति के पास है और अगर पति अपनी गलती सुधारना भी चाहे तो निकाह हलाला के अत्याचारों को महिला को ही झेलना पड़ता है।

यह है मामला

दरअसल बड़वानी जिले के राजपुर निवासी मुस्लिम महिला ने मुंबई निवासी पति, सास और ननद के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई थी। महिला के पति ने उसे तीन तलाक दिया था। महिला ने तीनों आरोपियों के खिलाफ तीन तलाक और दहेज प्रताड़ना की धाराओं में प्रकरण दर्ज करवाया था। जिसे निरस्त करने के लिए इंदौर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। कहा गया था कि तीन तलाक की धारा सिर्फ पति के खिलाफ लगाई जा सकती है सास और ननद के खिलाफ नहीं। वे इसके लिए उत्तरदायी नहीं हैं। 

हाईकोर्ट ने लंबी-चौड़ी टिप्पणी की है

तलाक, मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। जो विवाह विच्छेद को दर्शाता है, जब एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध तोड़ देता है। मुस्लिम कानून के तहत सिर्फ तीन तलाक यानी तुरंत ही शादी के रिश्ते से मुक्ति अपरिवर्तनीय, जहां आदमी, केवल तीन बार 'तलाक' शब्द बोल कर, अपनी शादी खत्म करने में सक्षम है। इस प्रकार का तात्कालिक तलाक कहलाता है।

तीन तलाक, जिसे 'तलाक-ए-बिद्दत' भी कहा जाता है।'' यह स्पष्ट है कि में तलाक-ए-बिद्दत या तीन तलाक, में शादी कुछ ही सेकंड के अंदर टूट सकती है। पति अगर गलती भी सुधारे तो महिला को ही हलाला के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है। शायरा बानो बनाम के प्रसिद्ध मामले में भारत संघ और अन्य (AIR 2017 SC 4609) तीन तलाक की प्रथा पहले से ही है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा अवैध घोषित किया गया। तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया गया है। ताकि मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को वैवाहिक न्याय और सुरक्षा मिले।

तीन तलाक को कानून के रूप में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया। कहा गया कि ये आपराधिक कृत्य है। यह निश्चित रूप से समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि तीन तलाक असंवैधानिक और समाज के लिए बुरा है।

हमें अब चाहिए कि देश में "समान नागरिक संहिता" की आवश्यकता को समझें और भी बहुत सारे निंदनीय, कट्टरपंथी, अंधविश्वासी हैं और समाज में प्रचलित अति-रूढ़िवादी प्रथाएं हैं। भारत का संविधान अनुच्छेद 44 पहले से ही समाहित है, जो समान नागरिक संहिता की वकालत करता है।

नागरिकों के लिए इसे केवल कागजों पर नहीं बल्कि वास्तविकता बनने की जरूरत है। अच्छी तरह से तैयार समान नागरिक संहिता अंधविश्वास और कुप्रथाओं पर अंकुश लगाने का काम कर सकती है। ये राष्ट्र की अखंडता को सुदृढ़ करेगा।

sanjay gupta

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Uniform Civil Code UCC यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा