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भोपाल गैस त्रासदी के 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे से आखिर निजात मिल गई है। यह कचरा पीथमपुर के रामकी संयंत्र में 55 दिनों में पूरी तरह से जल गया है। अब इसके जलने के बाद 750 टन राख बची है, जिसे लैंडफिल करने का काम दिसंबर माह से किया जाएगा।
55 दिनों में ही हो गया काम
हाईकोर्ट इंदौर ने इस कचरे को जलाने के लिए अधिकतम 70 दिन का समय तय किया था। लेकिन संयंत्र में यह काम 55 दिनों में नियंत्रित तरीके से पूरा कर लिया गया। कचरा जलने के बाद बची हुई राख को एक-एक टन के एचडीपीई बैग में सुरक्षित रखा गया है, जिससे किसी तरह का लीक नहीं हो। इन्हें लीक प्रूफ स्टोरेज में रखा गया है। इसे लैंडफिल के लिए अब प्लेटफार्म तैयार किया जाएगा।
मिट्टी और बैग भी नष्ट करेंगे
बताया गया है कि भोपाल में यूका कचरे के साथ वहां की मिट्टी भी थी, जिसे पैकिंग बैग में लाया गया था। इसे भी नष्ट किया जाएगा। इन सभी की प्रक्रिया दिसंबर माह में होगी।
इस तरह चली प्रक्रिया
- हाईकोर्ट के आदेश से कचरे को 12 कंटेनर में जनवरी में पीथमपुर में लाया गया।
- हाईकोर्ट के आदेश पर पहले 10-10 मीट्रिक टन को जलाकर देखा गया है। यह काम 28 फरवरी से 12 मार्च के बीच हुआ।
- इसकी रिपोर्ट सही आने पर बाकी बचे कचरे को जलाने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए थे। यह काम 5 मई से शुरू किया गया।
- 29 जून रात डेढ़ बजे आखिरी खेप 270 किलो कचरा संयंत्र में डाला गया और सुबह चार बजे जलाने का काम पूरा हुआ।
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