BHOPAL. MP के अनोखे गांव जो अपनी अलग पहचान रखते हैं। आगर मालवा जिले का आमला गांव की खासियत है कि यहां 2-2 सांसद और 2-2 विधायक हैं। 1600 की आबादी वाले इस गांव की सीमा अलग-अलग तहसील क्षेत्र में हैं। ऐसा ही एक गांव भोपाल जिले की सीमा पर 22 घरों के बावड़ीखेड़ा है इसमें 17 परिवार सीहोर, तो पांच परिवार के लोग भोपाल में मतदान करते हैं। वहीं मुरैना जिले के नायकपुरा गांव भी इसलिए खास है क्योंकि यहां से अब तक 6 विधायक बन चुके हैं।
सबसे पहले बात आगर मालवा जिले के आमला गांव की...
यहां के लोग चुनते हैं दो सांसद और दो विधायक
आगर मालवा जिले के गांव आमला के 2-2 सांसद और 2-2 विधायक हैं। इसके अलावा चार तहसीलदार और दो एसडीएम हैं। केवल 1600 लोगों की आबादी वाले इस गांव की सीमा ऐसी है कि बच्चे रहते एक तहसील क्षेत्र में और पढ़ने दूसरी तहसील में जाते हैं। साल 2013 में बने आगर मालवा जिले में स्थित है गांव आमला। इस गांव का कुछ हिस्सा आगर तहसील में, कुछ सुसनेर, कुछ नलखेड़ा और कुछ बड़ोद तहसील में है। यही नहीं गांव की गलियां भी अलग-अलग तहसीलों का प्रतिनिधित्व करती हैं। एक ही गांव में रहने के बाद भी दो भाई अलग-अलग तहसीलों में रहते हैं। उनके विधायक और सांसद भी अलग हैं तो उनके राशन कार्ड और वोटर आईडी भी अलग। आमला गांव में दो विधानसभा क्षेत्र लगते हैं। यही नहीं यह गांव दो संसदीय क्षेत्रों देवास-शाजापुर और राजगढ़ के अंतर्गत भी आता है। यहां के लोग दो विधायक और दो सांसद चुनते हैं। ग्राम पंचायत स्तर पर भी इस गांव में बड़ा झोल है। इस गांव के आधे लोग दूसरी पंचायत में आते हैं तो आधे दूसरी पंचायत में आते हैं।
विशेषता के साथ ग्रामीणों को परेशानी भी
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं कुछ ऐसा ही इस गांव के ग्रामीणों के साथ भी है। इस गांव की खासियत के साथ ही उसकी सबसे बड़ी परेशानी भी बनती जा रही है। आज आमला के नागरिक और किसान शासकीय कार्यालयों में चक्कर लगाते नजर आते हैं। सबसे बड़ी परेशानी उनके लिए तब होती है जब उनको अपने घर, अपने खेत के लिए अलग-अलग तहसीलों में जाना पड़ता है। वहीं किसी भी शासकीय योजना के लाभ के लिए अलग-अलग सांसद और अलग-अलग विधायकों से गुजारिश करनी होती है।
ये हैं यहां के विधायक और सांसद
इस गांव में राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से रोडमल नागर और देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र के महेंद्र सोलंकी सांसद हैं। वहीं आगर विधायक मधु गहलोत और सुसनेर विधायक भेरोसिंह बापू यहां के चुने हुए विधायक हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में इस छोटे से ग्राम के मतदाता एक फिर से दो सांसदों के लिए मतदान करेंगे। आमला गांव के चार भागों में विभाजित होने की वजह विकास के नाम पर अधिकारियों से लेकर नेताओं द्वारा एक-दूसरे का क्षेत्र बताकर नागरिकों की समस्या को टाल दिया जाता है। इतने जनप्रतिनिधि होने के बाद भी गांव में विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है।
चक्कर लगाने के लिए तहसीलों की दूरी भी कम नहीं
ग्रामीणों को छोटे-छोटे कामों के लिए एक तहसील से दूसरी तहसील के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अधिकारी अपनी जवाबदेही दूसरों पर डाल देते हैं। ग्राम आमला से तहसील सुसनेर की दूरी 11 किलोमीटर है। वहीं आगर तहसील की 20, नलखेड़ा की 15 तो बड़ोद तहसील लगभग 50 किलोमीटर दूर है। ऐसे में ग्रामीणों को छोटे-छोटे जमीन संबंधी कामों के लिए 11 से लेकर 50 किलोमीटर की दूरी तय करना होती है। किसी भी बैक से यहां के निवासियों को कोई लोन लेना हो तो उन्हें करीब पूरे जिले की बैंकों के नोड्यूज कराने होते हैं, तब जाकर उन्हें कोई कर्ज बैंकों द्वारा दिया जाता है। 2013 में शिवराज सरकार ने आगर मालवा को जिला बनाया। उस समय जिले का परिसीमन करने के दौरान इस प्रमुख समस्या को ध्यान में नहीं रखा गया। दो विधायक, दो सांसद, चार तहसीलदार, चार थानेदार, दो सरंपच, दो जनपद सीईओ, चार पटवारी को पाकर ग्रामीण शुरू में बहुत खुश थे, लेकिन इनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही। गांव वाले इन सबके बीच ही उलझे रह गए।
आइए, अब बात करते हैं भोपाल के गांव बावड़ीखेड़ा की...
दो विधानसभा की सीमा तय होती है एक हैंडपंप से
भोपाल जिले की सीमा पर 22 घरों के बावड़ीखेड़ा गांव में 17 परिवार सीहोर, तो पांच परिवार के लोग भोपाल में मतदान करते हैं। पढ़ने में भले ही अटपटा लग रहा हो, लेकिन हकीकत यही है। दो जिलों के इस इकलौते गांव बावड़ीखेड़ा की जमीनी सच्चाई कुछ और है। रातापानी के कठौतिया के पास वनक्षेत्र से सटा यह गांव भोपाल के नजदीक है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा सीहोर की इछावर विधानसभा क्षेत्र में आता है। गांव का कुछ हिस्सा भोपाल जिले की हुजूर विधानसभा क्षेत्र में भी आता है। गांव में 22 परिवार रहते हैं। 17 परिवार सीहोर तो पांच परिवार भोपाल जिले में मदतान करते हैं। यहां भोपाल और सीहोर की सीमा एक हैंडपंप से तय होती है। गांव की हालत इतनी खराब है कि यहां न मोबाइल नेटवर्क है और न ही बिजली का ठिकाना रहता है।
प्राथमिक स्कूल भोपाल में, स्टूडेंट आते हैं सीहोर से
बावड़ीखेड़ा का प्राथमिक विद्यालय भोपाल जिले के एरिया में आता है, लेकिन यहां ज्यादातर विद्यार्थी सीहोर वाले एरिया से पढ़ने आते हैं। यहां एक ही शिक्षक है सहायक अध्यापक मानकलाल अहिरवार। मानकलाल दिव्यांग होने के कारण अपनी बुजुर्ग मां के साथ स्कूल के ही एक कमरे में रहते हैं। मानकलाल ने बताया कि पहले यहां दो शिक्षक हुआ करते थे। पूर्व शिक्षक की मृत्यु के बाद से सिर्फ मैं ही पढ़ा रहा हूं। पांचवीं तक के 18 बच्चे पढ़ने आते हैं। इसके बाद बच्चे माध्यमिक शाला कठौतिया, कोलार या भोपाल जाते हैं।
दूसरे गांव के पानी से बुझती है प्यास
जंगल से घिरे इलाके में रहने वाली हेमानी बताती हैं कि गांव में अस्पताल नहीं है। बावड़ीखेड़ा में हैंडपंप है, लेकिन इनसे लालपानी आता है। वहीं नजदीक के गांव कठौतिया में एक खेत में किए गए बोरिंग से अपने आप पानी निकल रहा है। इस बोरिंग को पत्थर से ढंका गया है, जिससे किनारे से फूट रही धार से ग्रामीण पानी भरते हैं। ग्रामीण हेमेंद्र सिंह जाटव बताते हैं कि गांव में बिजली और पेयजल की समस्या है। पेयजल के लिए एक किलोमीटर से ज्यादा चलकर दूसरे बोरिंग या हैंडपंप से पानी लाना पड़ता है।
चुनाव के समय ही नजर आते हैं नेताजी
गांव के हेमेंद्र बताते हैं कि इछावर के विधायक सिर्फ चुनाव के समय आते हैं, बाकी समय ग्रामीण समस्या लेकर उनके बंगले या सीहोर के चक्कर काटते रहते हैं। भोपाल की हुजूर विधानसभा के यहां चार ही घर हैं। इस कारण वहां से कोई वोट भी मांगने नहीं आता। ग्रामीण बताते हैं विधायक पिछले कार्यकाल में एक बार आए थे। कुल मिलाकर राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से दो भागों में बंटे यहां के ग्रामीण प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से ज्यादा भगवान के भरोसे हैं।
समस्याओं के बाद अच्छी बात, मुरैना के गांव नायकपुरा की...
ऐसा गांव जिसने दिए आधा दर्जन विधायक
ग्वालियर-चंबल ही नहीं, बल्कि संभवत: मध्यप्रदेश का यह इकलौता गांव है, जहां के इतने निवासी विधायक बने हैं। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के नायकपुरा गांव से अब तक 6 विधायक बन चुके हैं। चंबल नदी के किनारे बीहड़ों के बीच बसा है नायकपुरा गांव। जैसा इस गांव का नाम है, वैसी ही यहां की ख्याति है। ये गांव मुरैना की राजनीति का सिरमौर है, क्योंकि इस गांव से अब तक छह विधायक बन चुके हैं। पिछले चुनाव में इस गांव के दो नेता अलग-अलग सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर बसे नायकपुरा गांव में मतदाताओं की संख्या लगभग 1140 है। गांव अब कई छोटे-मजरों में बदल गया है, जिनकी आबादी लगभग 2000 के करीब है। इस गांव ने तत्कालीन मध्य भारत प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव (1951) में ही विधायक दे दिया था।
पहली विधानसभा के लिए कंसाना विधायक बने
गांव के सोवरन सिंह कंसाना पहली विधानसभा के लिए विधायक चुने गए थे। इसके बाद 16 विधानसभा चुनावों में नायकपुरा का कोई न कोई नेता किसी न किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ता रहा है। वर्ष 2018 के चुनाव में इस गांव के दो नेता एदल सिंह कंसाना (सुमावली विस से) और रघुराज सिंह कंसाना (मुरैना विस से) एक साथ विधायक बने थे। रोचक यह भी है कि ये दोनों ही कांग्रेस छोड़कर अब भाजपा सरकार में कैबिनेट दर्जा प्राप्त मंत्री हैं। नायकपुरा गांव में मढ़वाली माता का एक प्राचीन मंदिर है। लोगों की मान्यता है, कि गांव की कुलदेवी के वरदान से ही गांव का एक व्यक्ति हर समय ऊंचे पद पर व शासन में भागीदार रहता है।
नायकपुरा के ये नेता बने सदन के नायक
- 1951 सोवरन सिंह कंसाना
- 1955 करन सिंह जाटव मुरैना सीट
- 1972 हरीराम सर्राफ (कंसाना) मुरैना सीट
- 1985 कीरतराम कंसाना सुमावली सीट
- 1993 व 1998 व 2018 एदल सिंह कंसाना सुमावली सीट
- 2018 रघुराज कंसाना मुरैना सीट