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दतिया के पीतांबरा पीठ में एक कार्यक्रम में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। कार्यक्रम रिसर्च सेंटर और लाइब्रेरी के भूमिपूजन को लेकर रखा गया था। बुधवार 9 जुलाई को हुए इस कार्यक्रम के दौरान मंच से बोलते हुए वसुंधरा राजे को अपनी पुरानी हार याद आ गई। इसके बाद उन्होंने मंदिर की व्यवस्था पर भी नाराजगी जताई।
मैं यहां चुनाव नहीं जीत पाई: वसुंधरा राजे
दतिया में कोई भी काम आसानी से नहीं होता। उनकी इस टिप्पणी पर वहीं मंच पर बैठे मंदिर के पुजारी विष्णुकांत मुड़िया ने उन्हें टोकते हुए कहा कि ऐसी बातें न कहें, जरूरी बात करें। पुजारी की बात का जवाब देते हुए वसुंधरा बोलीं जरूरी बात क्या है...मैं तो यहां से चुनाव भी नहीं जीत पाई, आप समझ सकते हैं। इस पर पुजारी ने कहा आप फिर से ट्राई कीजिए। वसुंधरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया अब मुझे ट्राई भी नहीं करना है।
वसुंधरा राजे सिंधिया ने दतिया से लड़ा था पहला चुनाव
1984 के लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। भिंड-दतिया सीट से उन्हें राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने चुनावी मैदान में उतारा था। उनके ही भाई माधवराव सिंधिया ने बहन के विरोध में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह जूदेव को उतार दिया था। वसुंधरा के पक्ष में जहां राजमाता ने मोर्चा संभाला, वहीं जूदेव के प्रचार की जिम्मेदारी माधवराव ने उठाई।
दतिया में वसुंधरा राजे सिंंधिया 87,403 वोटों से हारीं
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर थी, और जनसभाओं में कृष्ण सिंह जूदेव के भावुक आंसुओं ने जनता का रुख बदल दिया। किला चौक की सभा में जब उन्होंने रोते हुए जनता से समर्थन मांगा, तो वो पल निर्णायक बन गया। नतीजे में वसुंधरा राजे को 87,403 वोटों से हार का सामना करना पड़ा, और दतिया की जनता ने पहली बार उन्हें ठुकरा दिया।
ऐसे समझिए पूरी खबर
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वसुंधरा राजे कौन हैं?
वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च 1953 को मुंबई में हुआ। वे ग्वालियर राजघराने से हैं और जीवाजीराव सिंधिया व विजयाराजे सिंधिया की पुत्री हैं। कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया उनके भाई थे। उनका राजनीतिक सफर 1984 में शुरू हुआ, जब वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। 1985 में भाजपा युवा मोर्चा की उपाध्यक्ष बनीं और फिर 1987 में राजस्थान भाजपा की उपाध्यक्ष।
1991 में वसुंधरा ने झालावाड़ से लोकसभा चुनाव जीता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश राज्य मंत्री बनीं। 2003 में वे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं और 2013 में दोबारा सीएम बनीं। उन्होंने 1985 में धौलपुर से विधायक के रूप में शुरुआत की और कई बार झालरापाटन से विधायक चुनी गईं।
वे 1989 से 2003 तक पांच बार लोकसभा सांसद रहीं। 2003 में सीएम बनने के बाद उन्होंने राजस्थान की राजनीति में स्थायी जगह बना ली और भाजपा की प्रमुख चेहरा बन गईं। 2013 में भाजपा की जीत का श्रेय भी उन्हें मिला।
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