बिना MBBS के अनुज शर्मा बना हेल्थ अफसर, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने की थी सिफारिश

ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण मामले में सुनवाई करते हुए एक मंत्री की नोटशीट के संबंध में गंभीर आरोप लगाए हैं। कोर्ट का आरोप है कि इस नोटशीट को जानबूझकर छिपाया गया था।

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Rohit Sahu
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ग्वालियर नगर निगम में पशु चिकित्सक डॉ. अनुज शर्मा की स्वास्थ्य अधिकारी पद पर नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। बुधवार को याचिकाकर्ता डॉ. अनुराधा गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शासन से स्पष्टीकरण मांगा। खुलासा हुआ कि यह नियुक्ति तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह की 22 नवंबर 2022 की सिफारिश पर हुई थी, जिसकी नोटशीट कोर्ट से छिपाई गई थी।

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हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

बुधवार को हाईकोर्ट की जस्टिस जीएस अहलू​वालिया की बेंच ने सरकार से इस मामले में जवाब मांगा। HC ने निगम द्वारा दिए गए जवाब पर नाराजगी जताई, जिसमें कहा गया कि डॉ. शर्मा को कोर्ट के अंतरिम आदेश पर रिलीव किया गया। जबकि वास्तव में उनकी प्रतिनियुक्ति की अवधि पूरी हो चुकी थी। कोर्ट ने इसे भ्रामक और तथ्यों को छुपाने वाला बयान माना।

कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे में मांगी मंत्री की नोटशीट

जब कोर्ट ने तीखे सवाल उठाए तो शासन की ओर से सीलबंद लिफाफे में वह नोटशीट पेश की गई, जिसमें मंत्री की अनुशंसा थी। कोर्ट ने कहा कि पहले इसे छिपाना यह दर्शाता है कि जानबूझकर जानकारी दबाई गई। अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।

एमबीबीएस डिग्री के बिना हेल्थ अफसर कैसे? 

याचिकाकर्ता ने बताया कि हेल्थ ऑफिसर पद के लिए एमबीबीएस की डिग्री अनिवार्य है, जो डॉ. शर्मा के पास नहीं है। इसके बावजूद उन्हें नियुक्त करना नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट में पेश आंकड़ों के अनुसार निगम में 1244 कर्मियों में से 69 अधिकारी प्रतिनियुक्ति से हैं। कोर्ट ने कहा कि अधिकांश पद गैर-स्थानीय अधिकारियों से भरे गए हैं। सिर्फ तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी निगम के हैं।

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कोर्ट ने डॉ. अनुज शर्मा से पूछा कि सागर स्थित मूल विभाग में कार्य करने के बजाय ग्वालियर में ही तैनाती क्यों चाहते हैं? इसके साथ ही डॉ. शर्मा की सेवा पुस्तिका (Service Book) भी तलब की गई है। पशुपालन एवं डेयरी के संचालक डॉ. आरके मोहिया ने प्रतिनियुक्ति पर पुनर्विचार का सुझाव दिया था, लेकिन उसे भी नजरअंदाज कर दिया गया।

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