मध्यप्रदेश की 53 निजी यूनिवर्सिटी में से 32 विश्वविद्यालयों में कुलगुरु (वाइस चांसलर) की नियुक्ति मानकों के अनुसार नहीं की गई है। मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग ने इस नियुक्ति को अनुचित ठहराया है।
आयोग ने कहा कि इन कुलगुरुओं के पास बतौर प्रोफेसर 10 साल का अनुभव नहीं है, जो कि यूजीसी (UGC) के मापदंडों के अनुसार अनिवार्य है। इसके अलावा, कुछ मामलों में स्पष्ट प्रमाण पत्र और आवश्यक दस्तावेज नहीं मिले हैं, जिससे इनका अनुभव सिद्ध हो सके। कुछ कुलगुरु तो प्रोफेसर के पद पर कार्यरत ही नहीं रहे हैं, जो नियमानुसार नियुक्ति के लिए आवश्यक है।
भोपाल और इंदौर की यूनिवर्सिटीज शामिल
आयोग की जांच में यह पाया गया है कि भोपाल और इंदौर की 8-8 यूनिवर्सिटी शामिल है। इसके साथ ही सीहोर, ग्वालियर, विदिशा, रायसेन, सतना, खंडवा, शिवपुरी, दमोह, छिंदवाड़ा, मंदसौर, बालाघाट और सागर की कुछ निजी यूनिवर्सिटीज के कुलगुरु भी निर्धारित योग्यता को पूरा नहीं करते।
15 दिन में होगी कार्रवाई
आयोग ने इन विश्वविद्यालयों को 15 दिनों के भीतर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। यदि कुलगुरु की नियुक्ति मापदंडों के अनुसार नहीं होती है, तो उन्हें तत्काल हटाया जाएगा। मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के चेयरमैन, प्रो. भरत शरण सिंह ( Pro. Bharat Sharan Singh ) ने कहा कि यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में कुलगुरुओं के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ( Minister Inder Singh Parmar ) ने भी इस मुद्दे पर विशेष ध्यान दिया है। साथ ही यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी प्रशासनिक और अकादमिक पदों पर योग्य उम्मीदवारों की ही नियुक्ति हो।
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