संजय शर्मा, BHOPAL .सरकार नए एजुकेशन सिस्टम से छात्रों को नए आयाम तक पहुंचाने के दावे कर रही है। वहीं प्रदेश का सरकारी सिस्टम ही दीमक की तरह छात्रों के भविष्य की बुनियाद को खोखला करने में जुटा है। हम बात कर रहे हैं प्रदेश की इकलौती टेक्निकल यूनिवर्सिटी (RGPV) राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की। RGPV में 100 करोड़ से ज्यादा का घोटाला सामने आ चुका है। यह राशि 200 करोड़ से ज्यादा भी हो सकती है और कई बड़े नेता और अधिकारियों के नाम इसमें जुड़ सकते हैं। केस में यूनिवर्सिटी के कुलपति, कुलसचिव, फाइनेंस कंट्रोलर जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग सीधे लिप्त हैं। शिकायतों के बाद भी ऐसे लोगों को सालों तक पद पर बैठाकर रखने, घोटालेबाजों की गिरफ्तारी में देरी और पूर्व कुलसचिव को आरोपी न बनाना भी सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। छात्रों की नाराजगी है की अहम कड़ी के बिना पुलिस घोटालेबाजों की करतूत कैसे सामने ला सकेगी।
यूनिवर्सिटी में 7 साल तक चलती रही हेराफेरी
हम RGPV के जिस घोटाले की बात कर रहे हैं उसे साल 2015 से 2022 के बीच अंजाम किया गया। तब कुलपति सुनील कुमार थे और कुलसचिव एसएस कुशवाह इसके राजदार थे। बाद में आरएस राजपूत कुलसचिव बने और फाइनेंस कंट्रोलर का काम ऋषिकेश वर्मा को सौंपकर हेराफेरी की गई। इस घोटाले में फर्नीचर खरीदी के नाम पर लाखों उड़ाए गए जबकि फर्नीचर यूनिवर्सिटी आया ही नहीं। यूनिवर्सिटी कैंपस में निर्माण और रिपेयरिंग वर्क दिखाकर 170 करोड़ से ज्यादा के काम एक साल में दिखाकर गोलमाल किया गया। क्योंकि ऐसे काम मौके पर जांच के दौरान मिले ही नहीं हैं। मनमानी नियुक्ति से लेकर हर काम की आड़ में पूर्व कुलपति- कुलसचिव ने RGPV को जमकर लूटा। कुलपति का ओहदा और सम्मान इतना ज्यादा होता है की उन्हें कुलगुरु की संज्ञा भी दी जाती है। लेकिन इस जिम्मेदारी वाले पद पर बैठकर सुनील कुमार ने छात्रों की फीस से जमा होने वाले फण्ड में भी सेंध लगा दी। जो रुपया गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साधन जुटाने पर खर्च होने थे उसे सुनील कुमार के ठग गिरोह ने लूट लिया। यानी सुनील कुमार ने अपने लालच को पूरा करने कुलगुरु के पद को भी कलंकित किया है।
अपनी टीम खड़ी कर कुलपति ने दबाई जांच रिपोर्ट
अब हम बताते हैं की घोटाला कैसे सामने आया और फिर जांच के बाद भी इसे कैसे दबाकर रखा गया। सुनील कुमार और एसएस कुशवाह की जोड़ी साल 2020 तक खरीदी, निर्माण और नियुक्ति के नाम पर करोड़ों उड़ाती रही। फिर आरएस राजपूत को कुल सचिव बनाने से जोड़ी तिकड़ी में बदल गई। इस बीच साल 2020 में एक के बाद एक कई शिकायतें टेक्निकल एजुकेशन डिपार्टमेंट पहुंचने लगीं। कमिश्नर के आदेश पर दो अधिकारियों से जांच कराई गई तो गड़बड़झाले की परतें खुलती चली गईं। यहीं जिस पीएचडी डिग्री के सहारे कुशवाह प्रभारी कुलसचिव बने थे वह भी संदेह में फस गई। जब यह रिपोर्ट RGPV पहुंची तो कुलपति सुनीलकुमार ने इसे दबाकर नई जांच टीम बना दी। टीम में अपने ख़ास लोगों को रखा और शिकायतों को गलत बताकर क्लीन चिट दे दी। कुलपति ने आंच को अपने से दूर रखने कमिश्नर के आदेश पर हुई जांच को भी गलत साबित करा दिया।
घोटाले में RGPV के साथ विभाग भी जिम्मेदार
करोड़ों की इस हेराफेरी में टेक्निकल डिपार्टमेंट की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। साल 2021 में कमिश्नर के आदेश पर हुई जांच रिपोर्ट को जब कुलपति ने खारिज किया था तब 2 साल विभाग चुप क्यों रहा। विभाग की जांच को कुलपति की टीम की जांच रिपोर्ट से बदला गया तब भी अधिकारियों ने आपत्ति क्यों नहीं की। फिर 2 साल बीते पर कुलपति द्वारा दी गई जांच रिपोर्ट का परीक्षण तक नहीं कराया। इससे सुनील कुमार और ठग गिरोह फिर घपले में लग गए। साल 2021 से 2023 के बीच कुमार मयंक के साथ मिलकर निजी अकाउंट में यूनिवर्सिटी के 100 करोड़ से ज्यादा डिपॉज़िट किए। कुमार मयंक और एक संस्था के खाते में भी करोड़ों जमाकर लूटा। इस घोटाले में यूनिवर्सिटी और टेक्निकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के अधिकारियों के शामिल होने की बात छात्र कह रहे हैं। एबीवीपी के हिमांशु शर्मा, अमित राय और चरित्र देव तिवारी के अनुसार नाराजगी इसलिए है की दो महीनों से चल रहे प्रदर्शन पर भी सरकार संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है। मजबूरी में केस दर्ज होने के बाद भी करोड़ों की हेराफेरी के आरोपी मौज करते घूम रहे हैं। जब वे गिरफ्तारी की मांग करते हैं तो पुलिस बल बुलाकर, लाठी चार्ज के नाम पर अधिकारी उन्हें दबाते- धमकाते हैं। यदि दोषियों को बचाने की कोशिश की जाती है तो वे सरकार से संघर्ष में भी पीछे नहीं हटेंगे।