BHAOPAL. कांग्रेस से किसी नेता का इस्तीफा देना और फिर बीजेपी ज्वाइन करना। ये अब आम सी राजनीतिक प्रक्रिया हो चुकी है। दो तीन दिन न्यूज में ठंडापन आया नहीं कि कांग्रेस का कोई भी नेता बीजेपी में शामिल हो जाता है और अच्छा खासा कंटेंट दे देता है, लेकिन इस बार कांग्रेस को कोसकर छोड़ने वालों में जिसका नाम शामिल है वो कोई राजनेता नहीं हैं। वो एक अफसर हैं जिसने राजनीति में आने के लिए इस्तीफा दिया। इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ तो खूब एड़ियां रगड़ी। जब तक इस्तीफा मंजूर हुआ तब तक समय हाथ से निकल गया। अब जो हालात हैं वो इस अफसर को पसंद नहीं सो नौकरी वापस चाहती हैं, पर क्या इंडियन सिस्टम में ऐसा हो सकता है। चलिए आज जानने की कोशिश करते हैं।
पूर्व एसडीएम निशा बांगरे
मध्यप्रदेश की सियासत में सुर्खियां बटोर रही इस अफसर का नाम जानना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। ये अफसर हैं पूर्व एसडीएम निशा बांगरे ( Nisha Bangre )। जो तब से सुर्खियों में हैं जब से राजनीति में आने के बारे में सोच रही हैं। पहले नौकरी छोड़ राजनीति में आने के लिए उठापटक करती रहीं। अब जब राजनीति में आ चुकी हैं तो सब छोड़कर दोबारा नौकरी पर लौटना चाहती हैं। मैडम की टाइमिंग जरा गड़बड़ हो गई। वर्ना आज हो सकता है कि वो किसी सीट से कांग्रेस विधायक होतीं।
निशा बांगरे का अब राजनीति से मोह भंग हुआ
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री करके चर्चांओं में आई निशा बांगरे का अब राजनीति से मोह भंग हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने आज कांग्रेस पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। आपको बता दें निशा बांगरे ने विधानसभा चुनाव के समय छिंदवाड़ा में कमलनाथ की मौजूदगी में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली थी। आज भी निशा ने छिंदवाड़ा से ही कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। नाराजगी की वजह है लोकसभा का टिकट भी नहीं मिलना। कांग्रेस से चुनाव लड़ने के लिए निशा बांगरे ने बहुत एड़ी चोटी का जोर लगाया था, लेकिन उस पर मैं बाद में आता हूं। अभी आपको ये बता दूं कि निशा बांगरे ने कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के नाम एक पत्र भी लिखा है। उस पत्र में क्या लिखा है वो भी जान लीजिए।
6 महीनों के विश्लेषण के बाद कांग्रेस छोड़ने का मन बनाया
निशा ने लिखा कि मैंने राज्य सेवा के पद से इस्तीफा दे दिया था। तब मैंने सोचा था कि कांग्रेस से चुनाव लड़ने और शोषितों और दलितों का प्रतिनिधित्व करने के बाद, मैं बाबा साहेब के सपनों को पूरा कर पाऊंगी। पिछले 6 महीनों में, कांग्रेस के इरादों का विश्लेषण करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि पार्टी ने मुझे विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया था, 229 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की गई थी, लेकिन एक सीट को रोककर रखा गया था, यह समुदाय के वोट लेने के प्रयास में सिर्फ एक दिखावा था, बाद में मुझे चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। निशा बांगरे का ये दावा भी है कि कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया था। वो वादा भी पूरा नहीं किया। इसके बाद अब निशा बांगरे कांग्रेस को जलता हुआ घर बता रही हैं और ये दावा कर रही हैं कि ऐसा कांग्रेस के लिए अंबेडकर जी ने कहा था।
विधानसभा चुनाव लड़ने एसडीएम के पद से इस्तीफा दिया
अब जानते हैं कि निशा बांगरे ने राजनीति में आने के लिए कितने पापड़ बेले थे। छतरपुर जिले के लव कुश नगर में एसडीएम के पद पर तैनात निशा बंगरे ने 23 जून, 2023 को राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इस मुद्दे पर एमपी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट जाने के अलावा, बांगरे ने 28 सितंबर को आमला से भोपाल तक 300 किलोमीटर से अधिक लंबी पदयात्रा भी शुरू की थी और 9 अक्टूबर को राज्य की राजधानी पहुंची थीं। सीएम हाउस की ओर बढ़ने से पहले, वो बीआर अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के लिए भोपाल के बोर्ड ऑफिस चौक पहुंचीं, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 10 अक्टूबर को जमानत मिलने से पहले उन्होंने एक रात जेल में बिताई। 20 अक्टूबर को, सरकार ने अदालत के सामने स्वीकार किया था कि उनके इस्तीफे पर 23 अक्टूबर तक निर्णय लिया जाएगा।
उठापटक के बावजूद निशा बांगरे को टिकट नहीं मिल सका
हालांकि, 23 अक्टूबर को उन्हें निर्णय की जानकारी नहीं दी गई, भले ही उनके वकील देर रात तक इंतजार करते रहे। उस समय तक कांग्रेस ने 23 अक्टूबर की रात को आमला निर्वाचन क्षेत्र से अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी थी, जबकि 23 अक्टूबर की सरकारी आदेश की जानकारी बांगरे को 24 अक्टूबर को दी गई थी। इस सारी उठापटक में निशा बांगरे को टिकट नहीं मिल सका। अब जो आस लोकसभा से थी वो भी नहीं रही। हालांकि, वो कांग्रेस प्रवक्ता बनाई जा चुकी थीं, लेकिन उनके लिए इतना काफी नहीं था। कुछ हल्कों में ये सुगबुगाहट भी है कि निशा बांगरे कमलनाथ के कहने पर राजनीति में आई थीं। विधानसभा चुनाव में हार के बाद खुद कमलनाथ की हालत सियासी तौर पर कमजोर चल रही है इस वजह से कांग्रेस में निशा बांगरे की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।
अब सवाल ये उठता है कि राजनीति नहीं तो फिर क्या। निशा बांगरे के पास अब क्या विकल्प बचे हैं
कुछ सियासी हलकों में चर्चा है कि निशा बांगरे अब बीजेपी में शामिल हो सकती हैं और नकुलनाथ के खिलाफ ही चुनाव प्रचार कर सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो निशा बांगरे बीजेपी के लिए तुरूप का इक्का साबित हो सकती हैं। जो अभी कमलनाथ के खिलाफ बिना किसी लाग लपेट के नेचुरल गुस्सा उगलती नजर आएंगी। ये भी खबर है कि निशा बांगरे ने जिस इस्तीफे को एक्सेप्ट करवाने के लिए इतना जोर लगाया था। वो अब उसी इस्तीफे को रद्द कर नौकरी वापस हासिल करना चाहती है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है वापस नौकरी हासिल करने के नियम बेहद पेचिदा है। आईएएस और आईपीएस की दोबारा ज्वाइनिंग को लेकर नियम स्पष्ट हैं। पहले उन्हें समझ लेते हैं। अगर ऑल इंडिया सर्विसेज के अफसर IAS या IPS इस्तीफा वापस लेना चाहते हैं तो उन्हें 90 दिनों के अंदर इस्तीफा वापस लेना होगा। इसके लिए उन्हें लिखित में आवेदन करना होगा। इस दौरान गुंजाइश होती है कि इस्तीफा वापस लेकर प्रशासनिक सेवा में वापस लौट सकें, लेकिन इस्तीफा मंजूर होने के बाद वह अधिकारी कुछ नहीं कर सकता।
कुछ ऐसी स्थितियां भी जब इस्तीफा वापस नहीं लिया जा सकता
ऑल इंडिया सर्विस रूल्स के अनुसार अगर कोई अधिकारी इस सोच के साथ इस्तीफा देता है कि वो पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ना चाहता है या फिर चुनाव में हिस्सा लेगा तो उसे इस्तीफा वापस लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। हालांकि, कुछ ऐसे मामले भी सामने हैं जब इस्तीफा वापस लेने की अवधि पूरी होने के बाद भी उस अधिकारी की प्रशासनिक सेवाओं में वापसी हुई है। जैसे आईएएस अधिकारी शाह फैसल। 2022 में उनकी प्रशासनिक सेवा में वापसी हुई। उन्हें केंद्रीय पर्यटन विभाग में उप सचिव के पद पर नई जिम्मेदारी सौंपी गई। वह सिविल सर्विस एग्जाम 2010 के बैच में टॉप थे। उन्होंने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा देकर जम्मू-कश्मीर में राजनीति जॉइन की थी। हालांकि, कहा गया था कि सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार ही नहीं किया था। ये तो बात हुई भारतीय प्रशासनिक सेवा की। अब समझते हैं कि राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी निशा बांगरे के लिए क्या उम्मीद बची है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की तरह राज्य प्रशासनिक सेवाओं में जब भी कोई अधिकारी इस्तीफा देता है तो उसके पास एक तय समय तक वापसी करने का मौका रहता है। अगर एक बार सरकार इस्तीफे को स्वीकार कर लेती है, तो फिर वापसी संभव नहीं हो पाती। निशा ने करीब 6 माह गुजरने के बाद दोबारा सरकारी नौकरी में वापसी के लिए आवेदन किया है। उनका इस्तीफा राज्य सरकार ने स्वीकार भी कर लिया था। ऐसे में वापसी मुश्किल है।
अब निशा बांगरे का भविष्य बीजेपी के हाथ में है... !
ऐसे मामलों में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी कोर्ट नहीं जा सकता। अगर वो कोर्ट जाता है तो ज्यादा से ज्यादा नियमों पर गौर किया जा सकता है। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारी की सरकारी नौकरी में वापसी होगी या नहीं, यह सरकार पर निर्भर है। अगर राज्य सरकार चाहे तो उनकी वापसी करा सकती है। यह सरकार के पास अधिकार होता है और सरकार बीजेपी ( bjp ) की है। तो अब अगर ये कहें कि निशा बांगरे का सियासी भविष्य हो या प्रशासनिक भविष्य हो। दोनों ही बीजेपी के हाथ है तो कुछ गलत नहीं होगा।