Kamalnath के इमोशनल कार्ड से क्या BJP को होगा नुकसान?

मध्यप्रदेश में 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने 12 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसके बाद से ग्राफ कुछ इस कदर तेजी से नीचे गिरा कि कांग्रेस संभल ही नहीं पा रही है। इस बार कांग्रेस की मजबूरी है संभलना, नहीं संभली तो प्रदेश से पूरी तरह सूपड़ा साफ हो जाएगा।

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. पिछले दो चुनाव से कांग्रेस का जो हाल है उसे देखते हुए तो लगता है कि नहीं। बीजेपी का मुकाबला किसी पार्टी से न हो कर सिर्फ एक चेहरे से है। इस चेहरे की हार हुई तो प्रदेश में बीजेपी की बड़ी जीत मान जाएगी और अगर ये चेहरा जीत गया तो बीजेपी जीत कर भी प्रदेश में हारी हुई ही मानी जाएगी। 

BJP वर्सेज सिंगल फेस

ये चेहरा कौन है और क्यों इसकी मौजूदगी से बीजेपी वर्सेज सिंगल फेस जैसा चुनाव नजर आ रहा है। ये बात तो करेंगे ही पहले आपको याद दिला दूं कि मध्यप्रदेश में लोकसभा सीटों का हाल क्या है। मध्यप्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से 28 सीटें बीजेपी के पास है और कांग्रेस के पास है सिर्फ एक सीट। इससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में कुल 2 ही सीटें आई थीं। हालांकि, इससे एक चुनाव पहले कांग्रेस का हाल जरा बेहतर था। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने 12 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसके बाद से ग्राफ कुछ इस कदर तेजी से नीचे गिरा कि कांग्रेस संभल ही नहीं पा रही है। इस बार संभलना सिर्फ जरूरत ही नहीं मजबूरी भी है क्योंकि जो नहीं संभली तो फिर प्रदेश से पूरी तरह सूपड़ा ही साफ हो जाएगा।

मप्र में इस बार भी लोकसभा चुनाव बीजेपी बनाम कमलनाथ ही है

हालात कुछ इसी तरफ इशारा कर भी रहे हैं। क्योंकि जिस चेहरे से बीजेपी की टक्कर है वो चेहरा भी कुछ डरा डरा सा है। वैसे मुझे उम्मीद है कि आप अब तक ये समझ गए होंगे कि मैं किस चेहरे की तरफ इशारा कर रहा हूं। अगर नहीं समझे तो बता देता हूं। मैं बात कर रहा हूं कमलनाथ की। मध्यप्रदेश कांग्रेस में सिर्फ वही एक नेता हैं जो मोदी की आंधी में अपनी सीट छिंदवाड़ा बचाने में कामयाब रहे थे। जिस पर फिलहाल उनका बेटा नकुलनाथ सांसद है। जो इशारे मिल रहे हैं उसके मुताबिक नकुलनाथ को ही एक बार फिर टिकट मिलना तय है। बीजेपी के लिए इस बार का लोकसभा चुनाव मप्र में बीजेपी बनाम कमलनाथ ही होने जा रहा है। मैं बार-बार ऐसा क्यों कह रहा हूं कि इस बार मुकाबला बीजेपी बनाम सिर्फ एक नेता है। उसकी वजह भी साफ किए देता हूं। इसकी वजह ये है कि प्रदेश की बाकी की सभी सीटें तो बीजेपी के खाते में ही हैं। जो कांग्रेस का हाल है उसे देखते हुए बीजेपी ये मानकर चल रही है कि 28 की 28 सीटें तो वही जीतने वाली है। अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के बजाए कांग्रेस में होते तो शायद ये माना जा सकता था कि उनकी सीट भी हाथ से निकलने की कुछ संभावनाए हैं, लेकिन अब वो डर भी खत्म हो चुका है। ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद बीजेपी का हिस्सा बन चुके हैं। टिकट मिला तो इस बार वो अपनी पारंपरिक लोकसभा सीट गुना शिवपुरी से जरूर जीत दर्ज करने में कामयाब रहेंगे।

छिंदवाड़ा सीट बीजेपी के लिए पीस ऑफ केक नहीं है

अब रही बात 29वीं सीट छिंदवाड़ा की। बीजेपी भले ही प्रदेश में बहुत दमदार है उसके बावजूद छिंदवाड़ा की सीट बीजेपी के लिए पीस ऑफ केक नहीं है कि जिसे जब चाहा उठा लिया और स्वाद ले लिया। बल्कि, ये सीट बीजेपी के लिए किसी पहाड़ की तरह है। जिसे काटने के लिए पूरे सालभर से प्रयास जारी हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक छिंदवाड़ा के दौरे करते रहे हैं। पीएम मोदी के तो कुछ भाषणों में भी कमलनाथ पर्सनली निशाने पर रहे। इतना ही नहीं बीजेपी ने अपने कद्दावर मंत्री गिरीराज सिंह को भी छिंदवाड़ा में तैनात कर दिया है, लेकिन छिंदवाड़ा में दाल नहीं गली। इसका अंदाजा बीजेपी को विधानसभा चुनाव से ही हो गया। जहां कमलनाथ एक बार फिर विधानसभा चुनाव तो जीते ही अपना गढ़ भी बचा लिया। ये बात अलग है कि हार जीत का फासला कुछ कम होता चला गया।

कमलनाथ को लेकर दलबदल का सियासी ड्रामा सप्ताहभर चला

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी को शायद ये अहसास हो चुका है कि छिंदवाड़ा के किले को भेदना सिंधिया के किले को भेदने से भी ज्यादा मुश्किल है। मंझे हुए सियासी खिलाड़ी कमलनाथ भले ही पूरा प्रदेश न बचा सके हों, लेकिन अपनी सीट बचाने में पूरी तरह से कामयाब हैं। शायद इसलिए बीजेपी ने हाथ घुमाकर कान पकड़ने की कोशिश भी की। जब ये नजर आया कि कमलनाथ का किला भेद पाना मुश्किल है तो सोचा कि किले के सरताज को ही अपना बना लिया जाए। इसके बाद खबरों ने जोर पकड़ना शुरू किया कि कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ समेत बीजेपी में शामिल होने वाले हैं। दलबदल का ये सियासी ड्रामा तकरीबन सप्ताहभर जारी रहा। कभी धवज लहराने को बीजेपी में जाना माना गया तो कभी ध्वज उतारने को कांग्रेस में ही ठहरना माना गया। नकुलनाथ ने अपने ट्विटर अकाउंट से कांग्रेस का लोगो हटा दिया और समर्थकों के सुर भी बदलने लगे, लेकिन जिस तेजी से अटकलों का ज्वार भाटा ऊपर चढ़ा तो उतनी ही तेजी से नीचे भी आ गया। कमलनाथ ने ऐसी हर खबर को अफवाह बताया और ठीकरा मीडिया के ही सिर फोड़ दिया।

कमलनाथ खुद सॉफ्ट हिंदुत्व के पैरौकार रहे हैं

खैर ये तो पुराना चैप्टर हो चुका है। अब बात ये करते हैं कि बीजेपी अगर छिंदवाड़ा नहीं जीती तो इसे उसकी बड़ी हार क्यों माना जाएगा। इसे ऐसे समझिए कि 28 सीटें तो बीजेपी खुद मानकर चल रही है कि वो जीत चुकी है। सारी ताकत और सारी रणनीति कांग्रेस से जीत के लिए बनाने के साथ साथ छिंदवाड़ा के लिए अलग से बनाई जा रही है। ताकि कमलनाथ को हराया जा सके। अगर कमलनाथ को नहीं हरा सकी तो बीजेपी की सारी कवायद बेकार जाना तय मानी जाएगी और इसे बीजेपी और उसके पूरे सिस्टम की हार मान लिया जाएगा। इसी हार से बचने के लिए बीजेपी पूरी तरह मुस्तैद है। कार्यकर्ताओं को ताकीद कर दिया गया है कि वो छिंदवाड़ा जाएं और मोदी की गारंटी का बखान करें और बीजेपी की डबल इंजन सरकार के फायदे गिनवाएं, लेकिन छिंदवाड़ा में हिंदुत्व के मामले में बीजेपी मात खा जाती है क्योंकि कमलनाथ खुद सॉफ्ट हिंदुत्व के पैरौकार रहे हैं। उन्होंने कभी अपने साथी दिग्विजय सिंह की तरह हिंदुत्व पर सख्त ब्यान नहीं दिया और न ही कभी सख्त रुख अपनाया।

कहीं कमलनाथ का ये इमोशनल स्टंट तो नहीं

कमलनाथ हनुमान मंदिर से जुड़ी भावुक अपील करते हैं तो इसे उनकी बड़ी सियासी रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर दौरे के दौरान उन्होंने कहा कि मैंने 12  साल पहले सबसे बड़ा हनुमान मंदिर छिंदवाड़ा में बनाया। हम राम को राजनीतिक मंच पर नही लाते है। इसके बाद वो भावुक हुए और कुछ यूं अपील की कि अगर आप मुझे विदा करना चाहते हो तो मैं तैयार हूं। मैं अपने आप को आप पर थोपूंगा नहीं, बीजेपी बहुत आक्रामक प्रचार कर रही है, लेकिन इनसे डरना नहीं है, यह सिर्फ इनका दिखावा होता है। मुझे आप पर पूरा विश्वास है छिंदवाड़ा की एक नई विकास यात्रा शुरू होगी इसकी मुझे उम्मीद है।

ये सिर्फ एक इमोशनल फेयरवेल स्पीच भर नहीं है न इसमें मायूसी है बल्कि, ये एक इमोशनल स्टंट माना जाना चाहिए। कई दशकों से छिंदवाड़ा से जीतते आ रहे कमलनाथ ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दौरान छिंदवाड़ा को बहुत सी सौगाते दीं हैं। जिसके बाद छिंदवाड़ा में उनकी पकड़ खासी मजबूत है। ऐसे में उनके चेहरे को हरा पाना इतना आसान नहीं है। अब इमोनल कार्ड खेलकर कमलनाथ जनता का पुराना प्यार जगाने की पूरी कोशिश में हैं। ठीक वैसे ही जैसे विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान ने कई बार भावुक अपील की। इतना तक कहा कि मैं चला जाउंगा तो बहुत याद आउंगा।

शिवराज सिंह का इमोनल कार्ड भी बीजेपी के लिए तुरूप का कार्ड साबित हुआ था। अब वही पैंतरा कमलनाथ ने आजमाया है। देखना ये है कि क्या उनका ये इमोशनल कार्ड भी जीत का इक्का साबित हो पाता है।

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