कम खर्च में बड़ी योजना से मोहन बनेंगे मिसाल? शिवराज पर पड़ेंगे भारी!

मोहन यादव को मुखिया का पद तो बहुत आसानी से मिल गया, लेकिन इस पर बने रहने के लिए उन्हें बड़े इम्तिहान से गुजरना है। क्योंकि उनसे पहले शिवराज सिंह चौहान इस पद पर 18 साल तक काबिज रहे। इस समय में उनके कुछ फैसलों की नजीर पूरे देश में दी जाती है। मध्यप्रदेश

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. मोहन यादव को मुखिया बने साठ दिन पूरे हो चुके हैं। हर गुजरते दिन के साथ उनकी छटपटाहट और बेचैनी बढ़ती जा रही है। वैसे मोहन यादव पर फिलहाल कोई प्रेशर नहीं है। बात करें समय की, तो उनका समय तो अभी शुरू ही हुआ है। आलाकमान की नजरों में खुद को बेहतर और मुनासिब साबित करने के लिए भी उनके पास भरपूर वक्त है। इसके बावजूद मोहन यादव को चैन नहीं है। उनके ताबड़तोड़ फैसले इसी बेचैनी का सबब हैं। कभी कुछ फैसले बेहतर साबित होते हैं और कभी उन्हें अपने फैसले वापस लेने की नौबत आ जाती है। अब आप जरूर पूछेंगे ऐसा क्यों। उनकी बेचैनी का सबब मैं आपको बताता हूं। मोहन यादव को मुखिया का पद तो बहुत आसानी से मिल गया है, लेकिन इस पर बने रहने के लिए उन्हें बड़े इम्तिहान से गुजरना है। उनसे पहले शिवराज सिंह चौहान इस पद पर अठारह साल तक काबिज रहे। इस लंबे कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान से बेशक कुछ गलतियां हुई होंगी। कुछ दाग भी लगे होंगे। और कुछ आलाकमान की नाराजगी भी मोल ली होगी। 

इसके बावजूद उनके कार्यकाल के ऐसे कुछ काम हैं जो आज भी मिसाल बने हुए हैं। जिनकी नजीर पूरे देश में दी जाती है।

मोहन और उनकी मशीनरी प्लानिंग पर कर रही मंथन 

शिवराज सिंह चौहान के कामों का और प्लानिंग का साया मोहन यादव सरकार पर भी मंडरा रहा है। इनके साये से उभरना है तो मोहन यादव को शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा बड़ी लकीर खींचनी होगी। ये बात वो खूब समझ चुके हैं और इस कवायद में जुट भी चुके हैं। अंदरखानों की खबर के मुताबिक मोहन यादव और उनकी पूरी मशीनरी इस मंथन में पूरी तरह जुट चुकी है। इस मशीनरी में कुछ आला अफसर शामिल हैं तो कुछ सीएम मोहन यादव के भरोसेमंद नेता भी शामिल हैं। ये सब मिलकर इस मंथन में जुटे हैं कि ऐसी कौन सी योजना का ऐलान किया जा सके या फैसला किया जा सके। जिसके जरिए मोहन यादव के नाम का डंका पूरे प्रदेश में बजने लग जाए। इस ख्वाहिश के साथ साठ दिनों में कुछ फैसले लिए गए। कुछ बदले गए और कुछ लेकर वापस कर दिए गए। इन कोशिशों के बाद अब कुछ नतीजे मिलने की गुंजाइश नजर आ रही है। आखिरकार मोहन यादव अपनी मंडली के साथ तीन ऐसे फैसले ले चुके हैं जिस पर उनकी वाहवाही की जा सकती है और सफल हुए तो आगे चलकर नजीर भी बन ही सकते हैं।

आखिर क्या हैं मोहन सरकार की प्लानिंग...

पहली प्लानिंगः इस फैसले के तहत प्रदेश में हेली सर्विस शुरू करने की प्लानिंग है। आप अगर वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गए हों, तो आपने देखा होगा वहां हेलिकॉप्टर से सफर कराने की सुविधा है। उसी तर्ज पर मोहन सरकार अब हेली दर्शन कराने वाली है। जिसका रूट इंदौर, उज्जैन, ओंकारेश्वर और आसपास के धार्मिक और पर्यटन स्थल होंगे। फिलहाल चुनाव सिर पर हैं और मोहन यादव की सरकार बजट की तंगी से जूझ रही है। ऐसे हालात में हेली दर्शन हींग लगे न फिटकरी जैसी योजना साबित हो सकती है। वैसे भी इंदौर और आसपास के शहर आर्थिक रूप से काफी सुदृढ़ हैं। इन स्थानों पर आने वाले अधिकांश सैलानी भी पैसे के मामले में कमजोर नहीं होते। मोहन सरकार की सोच ये है कि जो व्यक्ति पैसे खर्च करके, कैब के जरिए मंदिर से मंदिर जाता है। वो ये धार्मिक यात्रा हेलिकॉप्टर के जरिए पूरी कर सकेगा। हेलिकॉप्टर के जरिए सफर में समय की बचत भी होगी। पैसे कैब के मुकाबले थोड़े से ही ज्यादा खर्च होंगे और इसके अलावा पूरी यात्रा में लग्जरी और कंफर्ट का एलिमेंट भी जुड़ जाएगा। बिना लागत के मोहन सरकार टूरिज्म के जरिए कमाई कर सकेगी और इस कॉन्सेप्ट के लिए वाहवाही भी बटोर सकेगी।

दूसरी प्लानिंगः मोहन सरकार की दूसरी प्लानिंग है एयर एंबुलेंस शुरू करने की। इस योजना के तहत भी लंबी चौड़ी प्लानिंग की गई है और कामयाब हुए तो मरीज और उनके परिजनों की दुआएं भी मोहन सरकार को मिलेंगी। प्लानिंग ये है कि अब तक सिर्फ संपन्न लोगों तक सीमित एयर एंबुलेंस की सेवा आम जनों को भी मिल सके। मोहन सरकार के नुमाइंदे प्लान कर रहे हैं कि एयर एंबुलेंस लोगों के बजट में हो। जरूरी हुआ तो सरकार ये सेवा देने वाली कंपनी को कुछ कम टिकट पर एयर एंबुलेंस उड़ाने के लिए कहेगी और उसके किराए का कुछ हिस्सा खुद उठाएगी। प्लानिंग और भी कामयाब हुई तो सरकार के हवाई बेड़े में ही कुछ एयर एंबुलेंस शामिल कर दी जाएंगी। जो आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी। 

तीसरी प्लानिंगः मोहन सरकार की तीसरी प्लानिंग है उज्जैन में धर्मस्व विभाग ले जाना और महाकाल की राजधानी को धार्मिक राजधानी में बदल देना। ये योजना कामयाब हुई तो मोहन यादव की वाहवाही प्रदेश में तो होनी ही है। इसके अलावा उनके खुद के कार्यक्षेत्र में उनका गुणगान होगा और सियासी जमीन मजबूत होगी। महाकाल की नगरी महाकाल लोक बनने के बाद से ही नेशनल लेवल पर हाईलाइट हो चुकी है। इसे धार्मिक राजधानी में बदलकर मोहन यादव इसके महत्व को भी बढ़ा सकते हैं और आर्थिक रूप से भी मजबूत बना सकते हैं।

इन तीन फैसले से मोहन यादव सरकार की वाहवाही होना तो तय है, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि ये फैसले ऐसे मास्टर ब्लास्टर साबित हो ही जाएंगे कि शिवराज सिंह चौहान के अठ्ठारह साल के कार्यकाल की यादों पर भारी पड़ जाएंगे।

फाइलें साइन करने के मामले में शिवराज भारी पड़े

शपथ लेते ही कुछ बड़े और सख्त फैसले लेकर भी मोहन यादव ने कुछ अलग कर दिखाने की कोशिश जरूर की थी। वो कहते हैं न फर्स्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इंप्रेशन। इसी कहावत को फॉलो करते हुए डॉ. मोहन यादव ने शपथ लेते ही दो बड़े फैसले किए थे। एक फैसला तो ये कि प्रदेश में खुले में मास और अंडे की बिक्री नहीं होगी और दूसरा फैसला ये कि धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर नहीं बजाया जाएगा। इस फैसले पर पूर्व सीएम उमा भारती ने भी उनकी तारीफ करने में देर नहीं लगाई थी। इस फैसले के साथ मोहन यादव ने ये जताने की भरपूर कोशिश की कि वो हिंदुत्व की अलख को जलाकर रखेंगे। साथ ही सख्त फैसले लेने में और तेजी में कोई कमी नहीं दिखाएंगे। हालांकि, एक चूक ये हो गई कि शपथ लेते ही फाइलें साइन करने के मामले शिवराज उनसे पहले ही नजीर पेश कर चुके थे। सो मोहन यादव के इस फैसले को भी शिवराज सिंह चौहान के तरीके से कंपेयर किया गया और शिवराज सिंह चौहान भारी पड़ गए। 

मुआवजे व कार्रवाई के फैसले बताते हैं फास्ट डिसिजन की क्षमता 

अब मोहन यादव के सामने चुनौती ये भी है कि वो जो फर्स्ट इंप्रेशन बनाने की कोशिश कर चुके हैं। उसे कायम भी रख सकें। वैसे उन्होंने तेजी में कुछ फैसले लेकर ये जताया भी है कि लोगों के बीच पहुंचने में वो देर नहीं करेंगे। हाल ही में हरदा में हुई घटना के बाद उनका मुआवजे से लेकर कार्रवाई तक का फैसला और उसके बाद खुद घटनास्थल पर पहुंचना जताता है कि वो फास्ट डिसीजन वाली सरकार का चेहरा स्थापित करना चाहते हैं। बेमौसम बारिश और ओले की मार झेल रहे किसानों को भी उचित मुआवजा देने और सर्वे का ऐलान करने के साथ सीएम किसानों के हितैषी बनने की राह पर भी चल निकले हैं।

कुछ फैसलों से सुशासन के हिमायती भी दिखे

इसके अलावा अपने कुछ फैसलों से वो ये भी जता चुके हैं कि वो सुशासन के हिमायती हैं और जनता के साथ गलत बर्ताव करने वाले अफसरों को भी बख्शेंगे नहीं। इन साठ दिनों के भीतर ही कुछ ऐसे मामले सामने आए जहां अफसर खुले आम, लोगों के साथ बुरी तरह बर्ताव करते नजर आए। फिर वो चाहें ट्रक हड़ताल पर बैठे ड्राइवर के साथ कलेक्टर का उलझना हो या उमरिया में एसडीएम का महिला कर्मचारी से जूते के फीते बंधवाना हो, बांधवगढ़ में एसडीएम का दो लोगों को सिर्फ इसलिए पीटना हो क्योंकि उन्होंने कार ओवरटेक की थी या किसी महिला अफसर का किसानों से बुरी तरह पेश आना हो। हर मामले में सीएम कार्यवाही करने से नहीं चूके। और ये मैसेज देने की कोशिश की है कि वो जनता के हिमायती हैं और अफसरों की मनमानी नहीं चलेगी।

सीएम के फैसलों में जल्दबाजी किसी डेडलाइन का दबाव तो नहीं

लेकिन जिस पहचान का मोहन यादव को इंतजार है वो अब भी नहीं मिल पाई है। अब बहुत जल्द प्रदेश में इंवेस्टर समिट होना है। उसके जरिए मोहन यादव क्या हासिल कर पाते हैं ये भी देखने वाली बात होगी, लेकिन एक बात समझ से परे है। बतौर सीएम मोहन यादव का कार्यकाल तो अभी शुरू ही हुआ है। साठ दिन किसी भी सरकार के लिए खासतौर से नए चेहरे के लिए, काफी नहीं होते। वैसे भी अठ्ठारह साल लंबे कार्यकाल का मुकाबला सिर्फ साठ दिन या छह महीने में कर पाना आसान तो नहीं है। और, मोहन यादव के पास तो अभी पूरे पांच साल हैं। फिर उनकी इस जल्दबाजी और बेचैनी की वजह क्या है। क्या वो किसी डेडलाइन के दबाव में है। क्या आलाकमान ने उन्हें ऐसी कोई मोहलत दी है कि उस समय तक काम नहीं कर दिखाया तो वो कुर्सी गंवा भी सकते हैं। वजह जो भी हो फैसले लेते समय मोहन यादव को ये भी तो याद रखना होगा कि उनके किसी भी डिसिजन में इममैच्योरिटी नजर न आए और फैसला करने के बाद यूटर्न लेने की जरूरत न पड़े। तब ही तो वो सही ट्रैक पर आगे बढ़ पाएंगे और शिवराज से लंबी लकीर खींच पाएंगे।

शिवराज मोहन