BHOPAL. मप्र टाइगर ही नहीं गिद्ध संरक्षण में भी देश में अव्वल है। साल 2021 में हुई जनगणना के मुताबिक एमपी में 10 हजार से ज्यादा गिद्ध हैं। बता दें कि इसकी संख्या को बढ़ाने के लिए वन विभाग जल्द ही गिद्ध रेस्टोरेंट खोलने जा रहा है। जानकारी के मुताबिक वीरांगना टाइगर रिजर्व यानी नौरादेही अभयारण्य में इस रेस्टोरेंट की शुरुआत होने वाली है। बताया जा रहा है कि इन गिद्धों को ताजा मांस परोसा जाएगा। इस मांस से गिद्धों को किसी तरह का नुकसान ना पहुंचे इसके लिए पहले इसे लैब में टेस्ट किया जाएगा। वन विभाग ने रेस्टोरेंट के लिए जमीन की तलाश कर ली है और इसी अप्रैल में इसकी शुरुआत की जाएगी। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक एक्शन प्लान-2030 के तहत इस इलाके को गिद्धों के लिए सेफ जोन बताया गया है।
वन विभाग ने दी जानकारी
बता दें कि टाइगर रिजर्व एमपी के तीन जिले सागर, दमोह और नरसिंहपुर में फैला हुआ है। क्षेत्रफल के हिसाब से ये देश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। वहीं 2023 में इसे मप्र का 7वां टाइगर रिजर्व घोषित किया गया, क्योंकि यहां बाघों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। बाघों के साथ-साथ अब गिद्धों को भी अब यहां का हवा-पानी पसंद आने लगा है। वन विभाग ने गिद्ध रेस्टोरेंट के लिए टाइगर रिजर्व की नरसिंहपुर और डोंगरगांव रेंज में दो जगहों को चुना है। यहां करीब दो हेक्टेयर क्षेत्र में तारों की बाड़ लगाकर उसे सेफ किया जाएगा।
सबसे पहला वल्चर रेस्टोरेंट महाराष्ट्र के रायगढ़
वन विभाग अधिकारियों का कहना है अभी मवेशियों की मौत होती है, तो उन्हें जमीन में दफन कर दिया जाता है, लेकिन अब इन मृत मवेशियों को रिजर्व में रखा जाएगा। उसके बाद उनके मांस की लैब में जांच की जाएगी कि कहीं उनके शरीर में जहरीला पदार्थ तो नहीं है और जब मांस पूरा सेफ होगा तो मवेशियों की बॉडी को वल्चर रेस्टोरेंट में डाल दिया जाएगा। टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्ट अब्दुल अंसारी के मुताबिक वल्चर रेस्टोरेंट में गिद्धों को अच्छी क्वालिटी का मांस मिलेगा जिससे उनकी फैट, मिनरल्स और कैल्शियम की जरूरतें पूरी होंगी। इसका सकारात्मक असर उनकी ब्रीडिंग पर पड़ेगा और उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी। वल्चर रेस्टोरेंट का ये कॉन्सेप्ट सबसे पहले महाराष्ट्र के रायगढ़ में साल 2012 में शुरू किया गया था। यहां इसके नतीजे बेहतर मिले हैं।
रेस्टोरेंट की वजह से पौंगडेम में गिद्धों की संख्या में इजाफा
अंसारी का कहना है कि हिमाचल के पौंगडैम वैटलेंड के पास सुखनारा स्थान पर भी वल्चर रेस्टोरेंट शुरू किया गया है। 100 बाई 100 वर्ग मीटर एरिया में खोले गए इस वल्चर रेस्टोरेंट में 7 मीटर ऊंची जाली भी लगाई गई है, ताकि इसमें अन्य जंगली जानवर प्रवेश न कर सकें। ये वल्चर रेस्टोरेंट हिमाचल के जिस जिले में शुरू किया गया है वहां सबसे ज्यादा मवेशी हैं। गांव के लोग सुबह 10 से 4 बजे तक यहां अपने मरे हुए पशुओं को छोड़कर जाते हैं। अंसारी बताते हैं कि इस रेस्टोरेंट की वजह से पौंगडेम में गिद्धों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। यहां गिद्धों की 8 प्रजाति देखी गई हैं। अंसारी कहते हैं कि गिद्धों के संरक्षण में वल्चर रेस्टोरेंट शानदार उपाय है।
सर्दियों में क्यों की जाती है गिद्धों की जनगणना
बता दें कि एमपी में कुल 7 प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें से चार स्थानीय और तीन प्रजाति प्रवासी हैं, जो शीतकाल समाप्त होते ही वापस चली जाती है। इसलिए गिद्धों की जनगणना सर्दियों के मौसम में की जाती है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में सबसे अधिक पन्ना, मंदसौर, नीमच, सतना, छतरपुर, रायसेन, भोपाल, श्योपुर और विदिशा में गिद्ध पाए गए हैं। मप्र के पन्ना टाइगर रिजर्व में 2020-21 गणना के तहत प्रदेश भर में सबसे ज्यादा 722 गिद्ध पाए गए। पन्ना टाइगर रिजर्व के अलावा उत्तर वन मंडल में 438 और दक्षिण वन मंडल में 614 गिद्धों की गणना की गई। कूनो नेशनल पार्क में 381 और वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व में 300 गिद्ध पाए गए थे।
गिद्ध कभी शिकार नहीं करते
गिद्धों की आबादी कम होने की सबसे बड़ी वजह डायक्लोफेनिक दवा है, जिसका इस्तेमाल मवेशियों के इलाज में किया जाता है। टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर अब्दुल ने बताया कि गांवों में मवेशी रखने के पैटर्न में बदलाव आया है। गाय-भैंसों को होने वाली कुछ बीमारियों के इलाज के लिए डायक्लोफेनिक जैसी दवा इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे मवेशियों का शव खाना गिद्धों के लिए जानलेवा होता है। इसके इस्तेमाल पर 2006 में रोक लगा दी गई है। हालांकि, अभी भी ऐसी दवाइयां मवेशियों को दी जा रही हैं और ऐसे शवों का मांस खाने पर गिद्ध बीमार होकर मर जाते हैं। अंसारी कहते हैं कि गिद्ध कभी शिकार नहीं करते, वह केवल मरे हुए जीव ही खाते हैं। उनके मुताबिक गिद्धों की आबादी बढ़ना स्वस्थ पर्यावरण के लिहाज से जरूरी है। उनके न होने या कम होने से इंसानों को नुकसान है। गिद्ध ऐसे पक्षी हैं जो पर्यावरण की गंदगी साफ कर वातावरण को इंसानों के रहने लायक बनाए रखता है।
भारत का पहला वल्चर रेस्टोरेंट 1983 में बना
भारत में पहला वल्चर रेस्टोरेंट 1983 में मुंबई से 150 किलोमीटर दूर रायगढ़ इलाके में बनाया गया था। यह फसंध वाइल्ड लाइफ पार्क में है, जहां के मेन्यू में गाय, भैंस और दूसरे जानवरों के शव मुहैया कराए जाते हैं। इसका मकसद किसानों को मरे हुए जानवरों से इनकम कराना भी है। ये रेस्टोरेंट दो एकड़ में फैला है। इसके आसपास तारों का एक बाड़ा बनाया गया है, ताकि इन्हें खाना खाते वक्त परेशानी न हो। इस रेस्टोरेंट का खर्च महाराष्ट्र फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने ईएलए फाउंडेशन के साथ मिलकर उठाया।