JABALPUR. मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में 19 साल से पागलपन का नाटक कर हत्या के आरोप में सजा से बचने का प्रयास कर रहे अपराधी का झूठ न्यायालय ने पकड़ लिया। इस मामले में अभियोजन और फरियादी पक्ष ने यह साबित किया कि आरोपी पागल नहीं है। कोर्ट ने पागलपन का नाटक कर बचने वाले हत्यारे को आजीवन कारावास और 6 लाख रुपए अर्थदण्ड से दण्डित किया है।
दो व्यक्तियों में झंडा लगाने को लेकर विवाद हुआ था
अभियोजन की ओर से विशेष लोक अभियोजक संदीप जैन और फरियादी की ओर से अधिवक्ता केशव प्रताप सिंह तथा संदीप पटेल ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दल में आस्था रखने वाले दो व्यक्तियों में झंडा लगाने को लेकर विवाद हुआ था।
नंदू ने रविंद्र की गोली मारकर की थी हत्या
इसी दौरान आरोपी नंदू ने राइफल से गोली मारकर रविंद्र की दिन-दहाड़े हत्या कर दी थी। चूंकि आरोपी रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखता था। अतः उसने स्वयं को पागल घोषित कर सजा से बचाव की जुगत भिड़ाई थी। विशेष लोक अभियोजक संदीप जैन के तर्कों से सहमत होते हुए न्यायालय विवेक कुमार अपर सत्र न्यायाधीश, पाटन जिला जबलपुर के द्वारा आरोपी नन्दू ऊर्फ घनश्याम को दोषी मानते हुए धारा 302 भादवि में आजीवन कारावास एवं 27 आयुध अधिनियम में 3 वर्ष का सश्रम कारावास और 5000 रुपए जुर्माने से दंडित किया गया है।
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मानसिक कमजोर होने भर से दोषमुक्ति मिलना विधि सम्मत नहींः कोर्ट
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति विकृत है या नहीं, यह साबित करने का दायित्व उसी पर है। मानसिक रूप से कमजोर होने भर से अपराध से दोषमुक्ति मिलना विधि सम्मत नहीं है। यदि ऐसा होने लगे तो प्रत्येक अपराधी स्वयं को मानसिक विकृत करार देकर सजा से बचने लगेगा। अदालतों का दायित्व है कि वे न्यायदान की प्रक्रिया में तथ्यों का विवेचन कर दूध का दूध और पानी का पानी करें। न्याय की अवधारणा समाज में दोषी को दंड देने पर आधारित है, चाहे वह कितनी ही प्रभुत्वशाली क्यों न हो।