MP: विश्व का सबसे बड़ा ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पैनल प्रोजेक्ट जमीनी विवाद में फंसा, अधिकारियों की लापरवाही से प्रोजेक्ट अटका

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Ruchi Verma
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MP: विश्व का सबसे बड़ा ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पैनल प्रोजेक्ट जमीनी विवाद में फंसा, अधिकारियों की लापरवाही से प्रोजेक्ट अटका

BHOPAL: अगस्त 2022 में भोपाल के मिंटो हॉल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट के अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए थे। इस अल्ट्रा सोलर मेगा पॉवर प्रोजेक्ट को मुख्यमंत्री ने जल पर बनने वाली विश्व की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर परियोजना बताया था। साथ ही कहा था कि इस प्रोजेक्ट की मदद से MP को सिर्फ 'हार्ट ऑफ इंडिया' ही नहीं बल्कि 'लंग्स ऑफ इंडिया' के रूप में भी जाना जाने लगेगा। ओंकारेश्वर बांध के बैकवॉटर में बनने वाले 600 मेगावॉट की क्षमता वाले इस फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट का काम दो चरणों में पूरा होना तय हुआ था। जिसके 300 मेगावॉट बिजली बनाने के पहले चरण का काम सितंबर-2023 तक पूरा होने की बात थी। लेकिन ऊर्जा विभाग के अफसरों की लापरवाही की वजह से अब 10 माह बाद इसके काम में अड़ंगा लग गया है। मामला प्रोजेक्ट की अप्रोच रोड और सबस्टेशन बनाने के लिए जो जमीन फाइनल की गई थी, उसके फॉरेस्ट क्लीयरेंस पर अटक गया है। दरअसल जब प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ तो प्रोजेक्ट की अप्रोच रोड और सबस्टेशन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन को वन विभाग ने अपनी बताते हुए FCA ( फारेस्ट कंज़र्वेशन एक्ट) के तहत आपत्ति लगा दी। जिसकी वजह से अब इस मामले मेें ऊर्जा विभाग द्वारा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अब अनुमति मांगी गई है।



पहले जानिये क्या है ओम्कारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पैनल प्रोजेक्ट



मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर ओंकारेश्वर बांध पर दुनिया की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर ऊर्जा परियोजना के अनुबंध पर अगस्त 2022 में हस्ताक्षर हुए। 3,600 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश वाली इस योजना से करीब 600 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का अनुमान है। इस परियोजना में 100 स्क्वायर किलोमीटर में फैले ओंकारेश्वर बांध में सोलर पैनल लगाकर करीब 2000 हेक्टेयर जल क्षेत्र में बिजली का उत्पादन किया जाएगा। राज्य सरकार की पॉवर कंपनी एमपीएमसीएल इस प्रोजेक्ट से बाने वाली बिजली खरीदेगी। बांध के बैकवॉटर में बनने वाले इस फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट का काम 300-300 मेगावाट के दो चरणों में पूरा होगा। पहले चरण के लिए निविदा नवंबर 2021 में जारी की गई थी। जिसके बाद NHDC लिमिटेड(नर्मदा हाइड्रो डेवलेपमेंट कार्पोरेशन) को 88 MW, AMP एनर्जी को 90 MW तथा SJVN लिमिटेड (सतलुज जल विद्युत् निगम  लिमिटेड) को 100 MW कैपेसिटी का काम पूरा करने का जिम्मा दिया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि ऊर्जा विभाग के पास इस वक़्त 278 मेगावाट का पीपीए (पावर परचेस एग्रीमेंट) है। 278 मेगावाट के पहले चरण में 3 जगह -इंधावड़ी, केलवा बुजुर्ग, एखंड - में प्लांट बनने हैं। इस वक़्त पहले चरण के अंतर्गत खंडवा से करीब 55 किमी दूर इंधावड़ी में बांध के बैकवॉटर में पेड़ों के ठूंठों को उखाड़ने का काम चल रहा है। केलवा बुजुर्ग में भी काम शुरू किया गया है।



प्रोजेक्ट की खासियत




  • प्रोजेक्ट से 1200-1400 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होगी। ये जमीन पर लगाईं जाने वाली सौर परियोजना के मुकाबले में लगभग 10% अधिक ऊर्जा उत्पादन होगा।


  • ओंकारेश्वर बांध के बैकवॉटर के जिस 12 वर्ग किमी पानी की सतह पर सोलर प्लेट लगेंगी, उस एरिया में 14.4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी सालभर में वाष्पित होता है। नवकरणीय विभाग के अनुसार 70% पानी यानी 10.08 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का वाष्पन सोलर प्लेटों से रुक जाएगा। एक मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में करीब 925 एकड़ में सालभर सिंचाई हो जाती है। इस तरह करीब 93 हजार एकड़ से ज्यादा में सिंचाई हो सकेगी।

  • प्रोजेक्ट से 5.56 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड में कमी आएगी, जो की लगभग 91 लाख बड़े पेड़ों द्वारा कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करने के बराबर है।

  • परियोजना से किसी भी प्रकार का विस्थापन नहीं होगा

  • 20016 किलो लीटर प्रति वर्ष भूमिगत जल की बचत होगी

  • कृषि / अन्य उद्योग हेतु उपयोगी लगभग 556 हेक्टेयर भूमि की बचत होगी

  • फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट के लिए फ्लोटर पानी की सतह पर लगाए जाएंगे। इनके ऊपर सोलर पैनल लगेंगे। फ्लोटर को आपस में एंकरिंग किया जाएगा। सतह पर हुक लगाया जाएगा, ताकि यह पानी के तेज बहाव या तूफान की स्थिति में बहें नहीं। हालांकि पानी का स्तर कम होने या बढ़ने की स्थिति में यह ऊपर नीचे तो होगा, लेकिन बहेगा नहीं।



  • मुद्दा क्या है?



    प्रोजेक्ट प्लान में बाँध के बैकवाटर में बड़े-बड़े पेनल लगाने के अलावा कंटिंजेंसी स्पेस, अप्रोच रोड, कण्ट्रोल रूम, सर्विस स्टेशन और सब स्टेशन बनाने का महत्वपूर्ण काम भी किया जाना है। इसके लिए ऊर्जा विभाग को 30-36 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है। और बांध के आस-पास सभी जमीन वन भूमि है। मामले में वन भूमि का सवाल उस वक़्त खड़ा हुआ जब कंपनियां प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए जमीन पर पहुंचीं। जैसे ही कंपनियों ने जमीन पर फेंसिंग करना शुरू किया, तभी वन विभाग के कर्मचारियों जमीन पर एक बोर्ड लगा दिया, जिसमें लिखा हुआ था कि ये वन भूमि है, जो संरक्षित वन में आती है। इसमें किसी प्रकार से निर्माण करना गैर कानूनी है। इसपर जब ऊर्जा विभाग ने वन विभाग से संपर्क किया तो विभाग ने जमीन का वो रिकॉर्ड सामने रख दिया जिसमे जमीन वन विभाग की थी। जबकि, प्रोजेक्ट प्लान में जहां सब स्टेशन सहित अन्य निर्माण कार्य किया जाना है, उसे कलेक्टर ने राजस्व भूमि बताया। अब वन विभाग द्वारा उसे वन भूमि बताए जाने से सब स्टेशन बनाने सहित अन्य निर्माण कार्यों को रोकना पड़ गया। जिसकी वजह से इस मामले मेें ऊर्जा विभाग को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मांगनी पड़ गई।



    केंद्र का ऊर्जा विभाग से सवाल: यही ज़मीन क्यों चाहिए?



    जमीन को लेकर ये विवाद दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार के पास पहुंचा। उसके बाद केंद्रीय स्तर की करीब 2-3 बैठकें हुईं। फरवरी 2023 में पहली बैठक में रीजनल एम्पॉवर्ड कमिटी (REC) ने ये ऊर्जा विभाग से ये सवाल किया की आखिर उसको यही जमीन क्यों चाहिए,जबकि उसी प्रोजेक्ट में वन भूमि के अगल-बगल में ही राजस्व की जमीन भी मौजूद है? इसके जवाब में रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड (RUMSL) ने कहा कि मांगी गई जमीन ही प्रोजेक्ट के लिए तकनीकी रूप से पूरी तरह उपयुक्त है क्योंकि...




    • प्रस्तावित सबस्टेशन के पश्चिमी तरफ की जमीन जल- जमा क्षेत्र है, इसलिए सब-स्टेशन और विद्युत सुरक्षा के मद्देनज़र उपयुक्त नहीं है।


  • वहीँ  प्रस्तावित सबस्टेशन स्थल का उत्तर भाग वन भूमि है, इसलिए वहां सबस्टेशन का निर्माण संभव नहीं है।

  • प्रस्तावित सबस्टेशन साइट के पूर्व और दक्षिण की ओर सबस्टेशन निर्माण करने पर ट्रांसमिशन परियोजना की लाइन की लंबाई में वृद्धि होगी, चूंकि परियोजना के विकास मानकों का चयन मई 2022 में किया जा चुका है इसलिए परियोजना में किसी भी तरह का तकनीकी बदलाव किया जाना भी संभव नहीं है।



  • क्या ऊर्जा विभाग ने प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले अपेक्षित जमींन के बारे में पुष्टि करना जरुरी नहीं समझा?



    वन विभाग जमीन देने के लिए राज़ी तो हो गया है, लेकिन अभी भी मामला केंद्र सरकार में पेंडिंग ही है। अब यहाँ सवाल ये उठता है कि जब ऊर्जा विभाग-RUMSL खुद कह रहे हैं कि चूंकि परियोजना के विकास मानकों का चयन मई 2022 में किया जा चुका है इसलिए परियोजना में किसी भी तरह का तकनीकी बदलाव किया जाना भी संभव नहीं है। तो क्या विकास मानकों के चयन के वक़्त उन्होंने प्रोजेक्ट के उपयोग में आने वाली जमींन के बारे में आधिकारिक रूप से पुष्टि करना जरुरी नहीं समझा? जब योजना के अनुबंध पर अगस्त 2022 में हस्ताक्षर हुए थे। तब ये कहा गया था कि पहले चरण के तीनों प्लांट से 300 मेगावॉट बिजली बनाने का काम सितम्बर 2023 तक शुरू कर दिया जाएगा। लेकिन यहाँ तो जमीनी विवाद के कारण जरुरी निर्माण कार्य अटक गया है। कुल मिलाकर प्रोजेक्ट की टाइमलाइन अब ऊर्जा विभाग और वन विभाग के जमीनी विवाद के कारण और अधिकारियों के लापरवाही के कारण खिंचती नज़र आ रही है।



    वन विभाग और ऊर्जा विभाग के अधिकारियों के जवाब 



    मुद्दे पर द सूत्र ने ऊर्जा विभाग और वन विभाग के अधिकारियों से बात की। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (भू-प्रबंध) सुनील अग्रवाल ने कहा कि प्रोजेक्ट के बिल्डिंग निर्माण के लिए जो जमीन लगेगी, वो वन विभाग की ही है। मामले में ऊर्जा विभाग से बातचीत की गई है। फ़िलहाल मामला केंद्र सरकार के पास अप्रूवल के लिए लंबित है।



    तो वहीं ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे से जब द सूत्र ने प्रोजेक्ट का करंट स्टेटस जाना तो उन्होंने पहले कहा कि हमको जो जानकारी देनी होगी वो या तो केंद्र सरकार को देंगे या फिर वन विभाग को। पर फिर बाद में खुद कहा कि कोई ख़ास जानकारी देने में खुद भी कहा, "प्रोजेक्ट के बिल्डिंग कंट्रक्शन का काम अभी अटका हुआ है। हालाँकि पेनल्स लगाने के लिए हमने पानी में से पेड़ों के ठूठ निकालने शुरू कर दिए है। उम्मीद है कि पूरा कार्य जल्द ही शुरू होगा।"



    ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि मध्य प्रदेश की लचर प्रसाशनिक प्रणाली जैसे वन भूमि और पर्यावरण अनुमति के अटकने के चलते बड़े और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स समयसीमा में पूरा न हो पाए हों। इसके पहले भी प्रशासनिक अदूरदर्शिता की कमी के चलते मध्य प्रदेश की बिना बिजली के उपयोग के खेतों में सिंचाई की पहली पंचम नगर माइक्रो इरीगेशन परियोजना में भी देरी हो चुकी है जिसके कारण मार्च 2023 में पूरा होने वाला प्रोजेक्ट अभी भी पूरा नहीं हुआ। ओम्कारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पैनल प्रोजेक्ट मुख्यमंत्री शिवराज का ड्रीम प्रोजेक्ट है। पर जमीनी विवाद के चलते जो हालात बने हैं, उसको देखते हुए ये ड्रीम प्रोजेक्ट समय पर पूराहो पाएगा या नहीं, इसी पर संशय है। बता दें कि प्रोजेक्ट की वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए पावर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड के अलावा 2 अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां  -इंटरनेशनल फाइनेंस कारपोरेशन और वर्ल्ड बैंक भी इन्वोल्वड हैं। यानि प्रोजेक्ट के समय पर पूरा न होने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी फजीते होंगे।


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