राजस्थान में सिर्फ जिताऊ के फॉर्मूले ने बढ़ाई कांग्रेस विधायकों की धड़कनें, टिकट मापदण्डों पर अभी बीजेपी की चुप्पी

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Pratibha Rana
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राजस्थान में सिर्फ जिताऊ के फॉर्मूले ने बढ़ाई कांग्रेस विधायकों की धड़कनें, टिकट मापदण्डों पर अभी बीजेपी की चुप्पी

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में इस बार का चुनाव थोड़ा फंसा हुआ है, यही कारण है कि टिकट वितरण के मादण्डों को लेकर इस बार कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ही स्थिति साफ नहीं है। हालांकि कांग्रेस तो स्पष्ट कर चुकी है कि उनके यहां टिकट वितरण का एकमात्र मापदण्ड जिताऊ यानी विनेबल होना है। वहीं बीजेपी ने अभी चुप्पी साधी हुई है। इस मामले में सभी को आलाकमान से आने वाली गाइडलाइन का इंतजार है।



कांग्रेस ने कहा जिताऊ एक मात्र मापदण्ड, विधायकों की धड़कनें बढ़ी



राजस्थान में कांग्रेस पिछले चुनाव तक दो बार के हारे हुए और 30 हजार से ज्यादा के मार्जिन से हारे हुए प्रत्याशियों को टिकट नहीं देने का मापदण्ड रखती आई है। वहीं सिटिंग विधायकों में बहुत ज्यादा टिकट काटने की परम्परा यहां नहीं रही है। 2003 की बात करें तो पार्टी ने 156 में से मुश्किल से 2-3 विधायकों के टिकट काटे थे। हालांकि बहुत बुरी हार हुई थी और पार्टी 56 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं 2013 के चुनाव में पार्टी 96 विधायक थे, इनमें से 75 रिपीट कर दिए गए थे। इस बार और भी बुरी हार हुई थी और पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार पार्टी शुरूआत से ही सिर्फ जिताऊ को टिकिट देने की बात कर रही है। सीएम अशोक गहलोत ने तो हाल ही में यहां तक कह दिया था कि हमारे लिए सिर्फ जिताऊ एकमात्र मापदण्ड होगा। कोई 90 साल को होगा, लेकिन जिताऊ  होगा तो उसे भी टिकट मिलेगा। यानी इस मामले में कांग्रेस उदयपुर में 2022 में हुए चिंतन शिविर के फैसलों को भी दरकिनार करती दिख रही है, जिसमें तय किया गया था कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौके दिए जाएंगे।  



जिताऊ का मापदण्ड ऐसा, जिसकी कोई परिभाषा नहीं 



पार्टी के जिताऊ वाले मापदण्ड ने कई मौजूदा विधायको की धड़कनें बढ़ा दी हैं। पार्टी के अब तक तीन-चार सर्वे हो चुके हैं और सभी में यह आया है कि मौजूदा 102 विधायकों में से करीब 34-40 विधायकों की हालत खराब है। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिताऊ का मापदण्ड एक ऐसा मापदण्ड है जिसकी कोई परिभाषा नहीं है। ऐसे में पार्टी सर्वे रिपोर्ट का हवाला देकर जिसका टिकट काटना चाहेगी काट देगी और जिसे देना चाहेगी दे देगी। यही कारण है कि मौजूदा विधायकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। वैसे भी राजस्थान में पार्टी के पास फीडबैक यह है कि लोग सरकार से तो खुश है, लेकिन मौजूदा विधायकों से नाराजगी ज्यादा है। शायद इसीलिए पार्टी कोई निश्चित मापदण्ड लाने के बजाए “जिताउ“ जैसा अनिश्चित सा मापदण्ड लेकर टिकट देना चाहती है।



बीजेपी में अभी चुप्पी



टिकट वितरण के मापदण्डों को लेकर बीजेपी में अभी चुप्पी है। इसे लेकर सभी को पार्टी आलाकमान की गाइडलाइन का इंतजार है। राजस्थान को लेकर पार्टी आलकमान की अभी कोई बैठक हुई भी नहीं है। हालांकि माना जा रहा है कि यहां भी उम्र के अलावा यानी 75 पार से ज्यादा वालों को टिकट नहीं देने के अलावा कोई मापदण्ड लागू नहीं होगा और यह मापदण्ड लागू होता है तो दो विधायकों सूर्यकांता व्यास और पूर्व स्पीकर कैलाश चंद मेघवाल के ही टिकट कटेंगे।



वैसे राजस्थान में सत्ता में होते समय बीजेपी बिना किसी मापदण्ड के भी बड़े पैमाने पर टिकट काटती रही है। हालांकि इसके बावजूद पार्टी की हार टली नहीं, लेकिन इतना जरूर हुआ कि पार्टी की कांग्रेस की तरह शर्मनाक ढंग से नहीं हारी। पिछली बार यानी 2018 के चुनाव की बात करें तो पार्टी के 163 विधायक थे और पार्टी ने 69 टिकिट काट दिए थे, हालांकि जीत हासिल नहीं हुई, लेकिन पार्टी के 73 विधायक विधानसभा में पहुंच गए। इसी तरह 2008 में पार्टी के 120 विधायक थे और इनमें से पार्टी ने 52 टिकट काट दिए थे। पार्टी हारी लेकिन फिर भी 78 विधायक विधानसभा में पहुंचे।



टिकट वितरण का इससे आसान फार्मूला नहीं हो सकता



वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ओम सैनी कहते हैं कि जिताऊ के मापदण्ड तय करना किसी भी पार्टी के लिए सबसे आसान फार्मूला है। इससे टिकट देना भी आसान हो जाता है और काटना भी। वैसे देश के जो हालात हैं, उसमें किसी तरह के आदर्शवाद की स्थिति बनती भी नहीं है। एक तरफ फासिस्ट ताकतें है और दूसरी तरफ डमोक्रेटिक फोर्सेज, इसलिए इस समय जीत सबसे ज्यादा अहम है।


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