संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर विधानसभा एक के विधायक कैलाश विजयवर्गीय अब एक व्यक्ति एक पद की बात कहते हुए जुलाई 2015 की तरह राष्ट्रीय महामंत्री पद से इस्तीफा देने जा रहे हैं, इस्तीफा तैयार है बस उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के इशारे का इंतजार है। साल 2015 में उन्होंने सीएम शिवराज सिंह चौहान सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री होते हुए कहा था कि- ठाकुर के हाथ बंधे हुए हैं, उन्हें खोल दो…लेकिन आखिर में उन्हें लगा कि हाथ बंधे ही हुए हैं, तब मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर केंद्र की राजनीति में चले गए थे। तब पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री बनाया था और उस समय भी एक व्यक्ति एक पद की बात कही थी। लेकिन इन सारे घटनाक्रम के बीच यह तय है कि अब पूरा फोकस मप्र और इंदौर पर ही है। इंदौर में अब सत्ता का केंद्र फिर विजयवर्गीय होने जा रहे हैं। मंत्री पद भले ही उनके कद से हिसाब से नहीं हो, लेकिन समर्थक नारा दे रहे हैं… बॉस इज बैक।
विजयवर्गीय इस तरह सत्ता से हुए दूर
विजयवर्गीय प्रदेश में 2003 से बीजेपी की सरकार बनने से ही जुलाई 2015 तक विविध विभागों के मंत्री रहे हैं। पहला कार्यकाल 2003-2008 ठीक गया लेकिन 2008 से 2013 वाले शिवराज सरकार के समय का कार्यकाल में उनके हाथ बंधने लगे। वह महू विधानसभा से भी चुनाव में आए तो शहरी कामों में दखल कम हो गया। फिर 2013 में उनका मनचाहा विभाग नगरीय प्रशासन विभाग मिला, लेकिन काम करने की स्वतंत्रता नहीं मिली, जिसके बाद वह केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए और जुलाई 2015 में इस्तीफे के साथ ही प्रदेश में शिवराज सरकार दौर में सत्ता से दूर हो गए। केंद्र में पश्चिम बंगाल लोकसभा 2019 चुनाव तक तो ठीक था लेकिन विधानसभा में हार के बाद केंद्र में भी बहुत ज्यादा काम नहीं बचा।
तब नहीं मिली तरजीह...
साल 2015 से 2023 के दौर में विजयवर्गीय गुट को ज्यादा तरजीह नहीं मिली। इस दौर में शिवराज सिंह चौहान के करीबी लोगों को मौके मिले, और उनकी एकतरफा चली, हालत यह रही कि ब्यूरोक्रेसी तक ने विजयवर्गीय गुट को अनसुना करना शुरू कर दिया। बाद में मार्च 2020 में सत्ता पलट के साथ आए तुलसी सिलावट का राजनीतिक रूतबा अधिक बढ़ गया और वह इंदौर में शिवराज सरकार के सबसे करीबी हो गए।
विजयवर्गीय के आने से यह होगा राजनीतिक असर
- सांसद शंकर लालवानी और मंत्री तुलसी सिलावट का राजनीतिक असर घटेगा और इंदौर में सत्ता केंद्र फिर विजयवर्गीय होंगे। पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन अब राजनीतिक रूप से रिटायर हैं, ऐसे में ताई गुट अब नहीं बचा है। शिवराज सिंह चौहान के जाने के बाद उनके गुड लिस्ट की विधायक मालिनी गौड़, मनोज पटेल भी अब मजबूत नहीं होंगे। महेंद्र हार्डिया न्यूट्रल हैं। गोलू शुक्ला पहले ही विजयवर्गीय के साथ हैं, मेंदोला उन्हीं के मित्र हैं, मधु वर्मा सभी के साथ हैं, उनसे किसी को समस्या नहीं है। उषा ठाकुर के संबंध विजयवर्गीय से मधुर नहीं हैं, लेकिन अब वह मंत्री भी नहीं तो उनका भी प्रभाव खत्म सा है।
- सांसद लालवानी को फिर लोकसभा चुनाव लड़ना और जीतना है तो विजयवर्गीय के साथ की जरूरत होगी ही, ऐसे में वह विजयवर्गीय के साथ ही रहेंगे, मंत्री सिलावट जानते हैं विजयवर्गीय और सिंधिया के संबंध मधुर हो चुके हैं, और वैसे भी वह ग्रामीण विधानसभा से हैं, तो शहरी सीमा में दखल वैसे ही कम होगा। ऐसे में उनके लिए भी विजयवर्गीय के साथ चलना मजबूरी है।
- महापौर पुष्यमित्र भार्गव, चुनाव लड़ने के समय से ही विजयवर्गीय के साथ हैं, वह उन्हें बड़े भाई के रूप में ही मानते हैं। इस तरह विजयवर्गीय पहले ही नगर निगम में मजबूत हैं। निगम और स्मार्ट सिटी के कामों में विजयवर्गीय की शहर के विकास के हिसाब से अहम भूमिका होगी। वहीं आईडीए चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा भी वक्त की नजाकत समझते हुए उनसे परे नहीं जाएंगे, यह मंत्री पद की शपथ लेने के पहले ही विजयवर्गीय द्वारा आईडीए में बैठक लेने से साफ हो चुका है।
कोई अधिकारी पैदा नहीं हुआ जो मेरे फोन नहीं उठाए
अब बात प्रशासनिक ताकत और ब्यूरोक्रेसी पर कंट्रोल की है, तो शिवराज सरकार में अधिकारियों ने विजयवर्गीय और उनके गुट को बिल्कुल तवज्जो नहीं दी है। चाहे मामला कलेक्ट्रेट का हो या फिर नगर निगम का या फिर अन्य विभाग का। अधिकारियों को पता था कि भोपाल उनके साथ है, लेकिन अब स्थितियां वैसी नहीं रहेंगी। विजयवर्गीय ब्यूरोक्रेसी पर नकेल कसने वाले नेता के रूप में पहचान रखते हैं। उनके पुराने बयान- अधिकारियों की मालिश करना बंद कर दो। मैं भोपाल से इशारा करूंगा और काम हो जाएगा, ऐसा अधिकारी पैदा नहीं हुआ कि मैं फोन करूं और नहीं उठाए, के मायने साफ हैं, वह बोलेंगे और ब्यूरोक्रेसी को करना ही होगा। विजयवर्गीय किसी भी वक्त दिन हो या रात, रेसीडेंसी में या कहीं भी अधिकारियों की बैठक बुलाकर समीक्षा करने में देरी नहीं करते हैं, निश्चित ही जब भी इंदौर आएंगे वह यहां की समीक्षा करते रहेंगे। नाइट कल्चर के जरिए लॉ एंड आर्डर व्यवस्था पर भी नजर रखेंगे।
अब विजयवर्गीय के विभाग पर है सभी की नजरें
विजयवर्गीय सीएम पद की दौड़ में थे, वह नहीं तो प्रदेशाध्यक्ष वाली बात चली, लेकिन मंत्रिमंडल में लिया गया है। हालांकि, यह उनके कद के मुताबिक नहीं माना जा रहा है, लेकिन सत्ता की धारा में जुड़ गए हैं। सीएम डॉ. मोहन यादव उन्हें भाई साहब और जननायक कहते हैं, यानी संबंध मधुर हैं। अब सारी नजरें उनके विभाग को लेकर हैं। वह उद्योग मंत्री, संसदीय, जनकार्य, आईटी मंत्री, पीडब्ल्यूडी मंत्री, नगरीय प्रशासन सहित करीब दस विभागों के मंत्री रह चुके हैं। अब गृहमंत्री एक बड़ा विभाग है, जो उनके कद के मुताबिक माना जा रहा है। वहीं नगरीय प्रशासन विभाग के मंत्री पद को लेकर भी दिग्गज नेताओं के बीच पेंच फंसेगा।