संजय गुप्ता, INDORE.राज्य सेवा परीक्षा 2022 की प्री को लेकर नया संकट खड़ा होने जा रहा है। आयोग द्वारा प्री की जारी की गई फाइनल आंसर की में दो सही सवाल जो भारत छोड़ो आंदोलन और राज्य निर्वाचन आयोग के गठन से जुड़े हैं के डिलीट कर देने से कई उम्मीदवार नाराज है और इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उम्मीदवारों ने भारत छोड़ो आंदोलन के नाम से ही नया ग्रुप बना लिया और 150 से ज्यादा उम्मीदवारों में याचिका लगाने के लिए सहमति बन गई है।
क्यों है इन दो सवालों को लेकर विवाद-
मप्र लोक सेवा आयोग द्वारा पूर्व में जारी की गई आंसर की में भारत छोडो आंदोलन कब शुरू हुआ था इस सवाल के जवाब में 9 अगस्त 1942 को सही माना गया, साथ ही एक अन्य सवाल कि मप्र राज्य निर्वाचन आयोग कब अस्तित्व में आया का सही जवाब एक फरवरी 1994 को सही माना गया। लेकिन, कुछ उम्मीदवारों ने इसे लेकर आपत्ति लगाई और बाद में दो दिन पहले जब फाइनल आंसर की जारी हुई तो आयोग ने विवादों को देखते हुए दोनों ही सवाल रद्द कर दिए। जबकि अधिकांश दस्तावेजों में दोनों के ही जवाब मौजूद है, भारत छोड़ो आंदोलन की तारीख आठ या नौ अगस्त को लेकर विवाद भी है तो भी सवाल में आठ अगस्त का विकल्प था ही नहीं। इसलिए विवाद की बात नहीं थी, वहीं राज्य निर्वाचन आयोग संबंधी सवाल तो पीएससी राज्य सेवा परीक्षा 2020 की प्री में भी पूछ चुका है और इसका जवाब तब भी एक फरवरी 1994 माना गया और इसे तब डिलीट भी नहीं किया गया।
उम्मीदवार क्यों जाना चाहते हैं हाई कोर्ट
इसके पहले भी प्री के सवालों को लेकर उम्मीदवार हाई कोर्ट जा चुके हैं। उम्मीदवारों का कहना है कि एक-एक नंबर को लेकर पीएससी में फाइट है, यह सवाल सही करने वाले उम्मीदवारों की दावेदारी पर झटका लगेगा और वहीं गलत जवाब देने वालों को फायदा होगा। लेकिन, यह भी उतना ही सही है कि आयोग ने इन सवालों को उम्मीदवारों द्वारा बुलाई गई आपत्ति के आधार पर ही हटाया है। ऐसे में कह सकते हैं कि यह लड़ाई पीएससी और उम्मीदवारों के बीच नहीं होकर उम्मीदवार विरुद्ध उम्मीदवार ही है।
सभी के जुटाए जा रहे नंबर, राशि जमा कर लगाएंगे याचिका-
साल 2019 की परीक्षा को लेकर ही लगातार विवाद चल रहा है और इसमें कई केस उम्मीदवार दायकर चुके हैं और इसके चलते लाखों रुपए का खर्चा उम्मीदवार केवल कानूनी लड़ाई में ही खर्च कर चुके हैं। वहीं कुछ उम्मीदवार तो पढ़ाई छोड़कर नेता की भूमिका में आ गए है और लगातार वह याचिका करने, आयोग के यहां धरना देने, आंदोलन करने पर अधिक ध्यान देते हैं। ओबीसी आरक्षण को लेकर पहले ही मामला कानूनी लड़ाई में उलझा हुआ है और उधर लगातार याचिकाओं के चलते आयोग की हर परीक्षा में देरी हो रही है।