संजय गुप्ता@ INDORE
इंदौर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इंदौर के प्रधान जिला न्यायाधीश भगवती प्रसाद शर्मा को एक याचिकाकर्ता दीपक कासलीवाल ने सौ करोड़ की मानहानि दावा लगाने संबंधी सूचना पत्र भेजा है। साथ ही कहा है कि सात दिन में इस सूचना पत्र का जवाब नहीं दिया गया तो हाईकोर्ट में यह दावा लगाएंगे। इस सूचना पत्र का मूल कारण है कि हाल ही में याचिकाकर्ता की विविध सात याचिकाओं पर कोर्ट ने बेवजह समय जाया करने की बात कहते हुए एक लाख 10 हजार की कॉस्ट लगाई है। साथ ही याचिकाकर्ता के व्यवहार को लेकर टिप्पणी भी है। इसी से नाराज होकर याचिकाकर्ता ने यह सूचना पत्र भेजा है और कहा है कि आपके फैसले के कारण मुझे शर्मसार होना पड़ रहा है, मेरी मान प्रतिष्ठा पर गहरा असर हुआ है।
कासलीवाल ने भेजा है सूचना पत्र-
याचिकाकर्ता दीपक कासलीवाल ने यह सूचना पत्र भेजा है। उन्होंने द सूत्र को सूचना पत्र की कॉपी की जानकारी देते हुए बताया कि मैंने सात केस चतुर्थ न्यायाधीश की कोर्ट पर अविश्वास होने के चलते ट्रांसफर करने के लिए सीपीसी 24 के तहत आवेदन लगाए थे। इसमें तीन आवेदन पहले 14 सितंबर को खारिज हुए और इसमें दस-दस हजार की कॉस्ट लगाई गई और फिर चार आवेदन और निरस्त किए गए, जिसमें 20-20 हजार की कास्ट लगाई गई। कुल 1.10 लाख की कॉस्ट पर मुझ पर लगाई गई। जबकि यह मेरा संवैधानिक अधिकार है कि यदि मुझे कोर्ट पर अविश्वास है तो फिर मैं केस ट्रांसफर के लिए याचिका लगा सकता हूं।
सूचना पत्र में यह लिखा है-
कारण बताओ सूचना पत्र- क्यों ना मैं आपके विरूद्ध सौ करोड़ की क्षतिपूर्ति आपसे मुझे प्रदान करने हेतु मेरी मान को हानि पहुंचाने के एवज में निरंतर महत्वपूर्ण न्यायदृष्टांत की अवहेलना विलफुल डिसओबिडिएंस करने के एवज में सक्षम न्यायालय में दावा ना लगाउं जिसका जवाब मुझे सात दिन में नहीं आता है तो आगे की समस्त खर्च कार्रवाई की जवाबदारी आपकी होगी।
कोर्ट के आदेश में कासलीवाल को बताया आवेदन करने का आदि-
प्रधान जिला न्यायाधीश बीपी शर्मा द्वारा दीपक कासलीवाल विरुद्ध श्रीमती मणिप्रभा व अन्य के केस में याचिकाकर्ता कासलीवला की याचिका खारिज कर कॉस्ट लगाई गई। इसमें लिखा है कि याचिकाकर्ता ने चतुर्थ जिला न्यायाधीश के अमानवीय व अभद्र व्यवहार की बात ककरते हुए सात केस हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की बात कही है लेकिन इसमें तथ्य नहीं है। याचिका में औचित्यहीन और अप्रसांगिक बातें कही गई है जिसका केस से कोई वास्ता नहीं है। इसमें कहीं पक्षकारों की जांच तो कहीं पर एडवोकेट की जांच की बात हकै, तो कहीं पर ईडी से जांच कराने की बात है। यह सभी अप्रासंगिक बातें हैं। वहीं जब पक्षकारों को नोटिस ही हुए और अभी वह केस में आए ही नहीं तो फिर कोर्ट पर अविश्वास किस तरह हो गया है। आवेदक को विधि व प्रक्रिया का समुचित ज्ञान नहीं है, उन्होंने अभी तक इस तरह के 80 आवेदन दिए हैं, वह अनावश्यक प्रकरणों को एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट में अंतरित कराने का ना केवल आदि है बल्कि ऐसा कर वह विचारण न्यायालय पर दबाव भी बनाना चाहता है। इससे न्यायालय का महत्वपूर्ण समय व्यर्थ होता है।
हाईकोर्ट में भी अवमानना लगा चुके जो खारिज हो चुकी
कासलीवाल ने कुछ दिन पहले हाईकोर्ट में भी प्रधान जिला न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना याचिका लगाई थी जो खारिज हो चुकी है। इसमें भी हाईकोर्ट में लंबी सुनवाई हुई, और कासलीवाल को सुना गया। सुनवाई में सभी बातों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका 5535/2023 को 29 सितंबर को खारिज करने का आदेश जारी कर दिया।