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JAIPUR. जयपुर नगर निगम हेरिटेज की मेयर मुनेश गुर्जर और एडिशनल कमिश्नर राजेन्द्र वर्मा विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। वर्मा ने मेयर मुनेश गुर्जर, उनके पति समेत 10 से ज्यादा पार्षदों के खिलाफ एससी-एससटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाने की तैयारी कर ली है। एडिशनल कमिश्नर राजेन्द्र वर्मा की शिकायत के बाद कमिश्नर नगर निगम हेरिटेज ने गहलोत सरकार को पत्र लिखकर मुकदमा दर्ज करवाने की अनुमति मांगी है। वर्मा ने इस पूरे घटनाक्रम में इन लोगों के अलावा कुछ बाहरी प्राइवेट व्यक्तियों पर भी जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने, गाली-गलौच करने और धमकाने के आरोप लगाए हैं।
पूरा घटनाक्रम 16 जून का है। जब मेयर मुनेश गुर्जर, उनके पति सुशील गुर्जर के साथ करीब 10-15 पार्षद और उनके परिचित और कुछ बाहरी लोगों ने अतिरिक्त आयुक्त को मेयर के ही चैम्बर में बंधक बनाकर रखा था। इस पूरे घटनाक्रम के बाद से मेयर और उनके समर्थित 10-15 पार्षद लगातार धरने पर बैठे हैं।
एडिशनल कमिश्नर वर्मा ने ने शिकायती पत्र में क्या लिखा
एडिशनल कमिश्नर वर्मा ने जो लेटर लिखा है उसमें पार्षदों और मेयर पर बंधक बनाने का आरोप लगाया है। वर्मा ने बताया कि 16 जून को हेरिटेज मुख्यालय मैं राजकीय कार्य कर रहा था, तभी दोपहर 3 बजे मेयर के यहां से मैसेज आया कि मेयर ने चैम्बर में बुलाया है। मैंने 10 मिनट में पहुंचने का मैसेज करवाया। लेकिन 5 मिनट बाद ही कुछ पार्षद और बाहरी प्राइवेट लोग आए और टेंडर की फाइल पर साइन नहीं करने की बात कहते हुए मेरे पर जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
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करीब 30 लोग मुझे मेयर के चैम्बर में ले गए
करीब 30 की संख्या में ये लोग मुझे मेयर के चैम्बर में ले गए, जहां इन्होंने मुझे रात 9 बजे तक बंधक बनाए रखा। जबकि मैंने वास्तविकता की जानकारी मेयर को दे दी थी कि मैं 30 मई को अवकाश पर था, इसलिए फाइल की कार्यवाही विवरण पर मैं हस्ताक्षर नहीं कर सकता। 15 जून को उपासना समिति की बैठक में इस फाइल को कमिश्नर के पास भिजवा दिया है। इसलिए फाइल मेरे पास पेंडिंग नहीं है।
शिकायत में इनके नाम
मेयर मुनेश गुर्जर, मेयर पति सुशील गुर्जर, उपमहापौर असलम फारूखी, पार्षद उमर दराज, नीरज अग्रवाल, शफी कुरैशी, सुनीता मावर, राबिया गुडएज, अंजली ब्रह्मभट्ट, आयशा सिद्धिकी, फरीद कुरैशी के अलावा वार्ड 12 पार्षद के पति मोहम्मद अख्तर, वार्ड 30 की महिला पार्षद का पुत्र, पार्षद का परिचित फूलचन्द और मेयर का परिचित बसन्त असवाल।
ये है पूरा विवाद
पूरे विवाद की जड़ अस्थायी कर्मचारी (बिट्स) सिस्टम है। 600 बिट्स के लिए पिछले दिनों टेण्डर किए गए, जिसकी मंजूरी के लिए मेयर और उनके पार्षद एडिशनल कमिश्नर राजेन्द्र वर्मा से साइन करवाना चाहते हैं। इसमें 5-5 बिट्स हर पार्षद को उपलब्ध करवाई जाएगी, जबकि 100 अतिरिक्त बिट्स कहां खपाई जाएंगी, इसका कोई जिक्र नहीं है। बताते हैं बिट्स सिस्टम में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार होता है। इसमें ना तो कर्मचारी का कोई रिकॉर्ड होता है और ना ही व्यक्ति की उपस्थिति। सबसे बड़ी बात इस मामले में पार्षदों को 5-5 कर्मचारी तो सफाई या दूसरे काम के लिए उपलब्ध करवा दिए जाते हैं, लेकिन वह मौके पर काम नहीं करते और उनका भुगतान उठा लिया जाता है। इसे देखते हुए ही जयपुर नगर निगम में बिट्स सिस्टम साल 2018 में हमेशा के लिए खत्म कर दिया था।