ग्वालियर में छात्रों को न्याय की दरकार, द सूत्र के अभियान को पब्लिक का भी समर्थन, जानें जनता की प्रतिक्रिया

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Vikram Jain
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ग्वालियर में छात्रों को न्याय की दरकार, द सूत्र के अभियान को पब्लिक का भी समर्थन, जानें जनता की प्रतिक्रिया

BHOPAL.ग्वालियर में कुलपति की जान बचाने के लिए एबीवीपी के दो छात्र हाईकोर्ट जज की कार छीन लेते हैं और उन्हे अस्पताल पहुंचे देते हैं, लेकिन उनकी जान नहीं बच पाती है। वहीं इस मामले में छात्रों के खिलाफ डकैती का केस हो गया हो जाता है। पुलिस दोनों को पकड़ कर जेल पहुंचा देती है। इन छात्रों को न्याय दिलाने के लिए द सूत्र ने अभियान चलाया है। जिसे जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। द सूत्र के 'छोड़िए शिकायत, शुक्रिया अदा कीजिए' इस अभियान से बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे हैं... और द सूत्र के अभियान की सराहना करते हुए अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं। कोई इस कार्रवाई को गलत बता रहा है तो कोई दोनों युवाओं के सम्मान की बात कह रहा हैं। आईए जानते है द सूत्र के अभियान के तहत लोगों की प्रतिक्रिया।

जुड़ें द सूत्र के अभियान से

मानवता की यदि ऐसी सजा मिलेगी तो आगे फिर कोई कैसे किसी की मदद करेगा। इस मामले में द सूत्र आपकी राय जानना चाहता है, कि अगर उन छात्रों की जगह आप होते तो क्या करते। इसके लिए आप हमें अपने विचार वॉट्सऐप नंबर 626830583 पर लिखकर या फिर 30 सेकंड का वीडियो बनाकर भेज सकते हैं। साथ ही अपना नाम और पता लिखना न भूलें। द सूत्र आपकी बात को प्रमुखता से उठाएगा।

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द सूत्र के 'छोड़िए शिकायत, शुक्रिया अदा कीजिए' अभियान से जुड़ कर बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। जानें किसने क्या कहा..

1. इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि उस जगह मैं होता तो मैं भी यही करता, मैं न्यायमूर्ति, चीफ जस्टिस ऑफ मप्र, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से एक अधिवक्ता होने के नाते अपील करता हूं कि भारत के कानूनों के मुताबिक अगर हम दूसरों की जान बचाने के लिए अगर हम कानून हाथ में लेते हैं तो वो अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। न्यायाधीश से इन छात्रों पर दर्ज मुकदमें को निरस्त किया जाए।

2. राजगढ़ के अनमोल व्यास कहते हैं कि ग्वालियर की ये घटना मानवता और सेवा करने वालों के लिए घातक है यदि सेवा का फल ऐसा हो तो हर तरफ सिर्फ स्वार्थ होगा, जो की मानवता को समाप्त कर देगा, हम हिमांशु और सुकृत के साथ खड़े है उनको इनाम मिलना चाहिए ना कि दंड।

3. संजय अग्रवाल का कहना है कि किसी की जान बचाने के लिए मजबूरी में उठाए गए कदम माफी लायक है, अपराध, अपराधी कहा जाना गलत है।

4. इंदौर निवासी दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस ने किसके कहने पर प्रकरण दर्ज किया, क्या जज को यह बात पता नहीं चली क्या की दोनों छात्रों ने किसी की जान बचाने के लिए इस घटना को अंजाम दिया। दोनों को सजा की बजाय प्रोत्साहन देना चाहिए, और गिल्टी जज को होना चाहिए कि मंशा स्पष्ट होने बाद भी प्रकरण समाप्त नहीं किया।

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 5. रतलाम निवासी तुषार शर्मा (कलम प्रेमी) का कहना है कि यह घटना एक अपराधिक प्रवृति की भी थी किंतु अपराधिक प्रवृति की घटना से ज्यादा महत्व मानवता की मिशाल है जो की वह सराहनीय है और प्रदेश के लोगों के लिए अच्छा संदेश है की मानवता आज भी जिंदा है, किंतु जज द्वारा कराई गई एफआईआर उनकी एक जिम्मेदारी भी थी जिस घटना को छात्र ने मानवता के खातिर अंजाम दिया था उसके लिए उन्हें एक ऐसी घटनाओं के लिए जिम्ममेदार ठहराया गया है ओर उन्हें कई दिनों से जेल में भेज दिया गया है, किंतु अब उन्होंने उनकी गलती मान ली है और अब कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश जारी कर देना चाहिए। अगर देश में मानवता के लिए लोगों को इतनी बड़ी सजा मिलेगी तो तो हर जगह से मानवता पर विराम लग जायेगा और ऐसे ही लोग वे मौत मर जायेंगे... और फिर कोई भी किसी की भी मदद नहीं करेगा इसलिए उन्हें रिहा करके कोर्ट को भी मानव हित और समाज हित में एक अच्छा संदेश देना चाहिए जिससे मानवता जिंदा रहे।

6. इंदौर के एस के जरिया एक कहानी का उदाहरण देते लिखते हैं कि एक कुत्ता समुद्र में गिर गया तो उसे डूबने से बचाने के लिए एक मछली ने अपनी पीठ पर लाकर जहाज पर छोड़ा। फिर दोनों ने खूब खुशियां मनाई। इंसान-इंसान से इंसानियत खत्म हो रही है और जीव-जन्तुओं में आ गई है। अब इसे इंसानियत नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?

7. शहडोल के रोहित राय ने कहा कि... हिमांशु सुक्रत ने वीसी सर के जान बचाने के लिए जो भी किया वो गलत नहीं है, कानून की नजर भले ये अपराध हो पर मानवता इंसानियत के नाते वो अपराधी नहीं, उनके स्थान पर कोई भी होता या खुद होता तो यहीं करता। दोनों के खिलाफ प्रशासन ने जो भी झूठे केस बनाए उन्हे वापस ले नहीं लिया गया तो भविष्य में कोई किसी की मदद नहीं करेगा, जब किसी की मदद करने पर दंड मिलता तो फिर कोई किसी की सहायता नहीं करेगा।

8. अंतर्राष्ट्रीय वास्तु एक्सपर्ट एवं कोच, जोन चैयरमेन डॉ. अवनीश जैन कहते हैं कि... यदि हिमांशु सुकृत की जगह मैं होता तो मैं भी यही करता, क्योंकि उस वक्त सामने जो कार खड़ी थी वही एक विकल्प था। जानकारी के अनुसार एंबुलेंस आ चुकी थी लेकिन क्या ऐसे वक्त में कार से निकाल कर एंबुलेंस तक ले जाने में वक्त मिलता है?, और यदि कार ले भी गए तो क्या डकैती की धाराएं लगानी सही है? नहीं बिल्कुल नहीं... मेरा मानना है कि जज साहब को खुद अपनी तरफ से संगठन से अपील करना चाहिए और इन दोनों छात्रों को बाइज्जत,ससम्मान बरी करना चाहिए, ग्वालियर की जनता को इनका सार्वजनिक सम्मान करना चाहिए।



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