मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में नई सरकार बनने के बाद राजस्थान विधानसभा का पहला सत्र कल ( 20 दिसंबर) से शुरू होगा। राज्यपाल कलराज मिश्र ने 20 और 21 दिसंबर के लिए सत्र आहूत किया है। इस सत्र में 20 और 21 दिसंबर को नवनिर्वाचित विधायकों को विधायक पद की शपथ दिलाई जाएगी। इसके साथ ही स्पीकर का चुनाव भी होगा। राजस्थान विधानसभा में हमेशा नजर आने वाले कई चेहरे इस बार नजर नहीं आएंगे। नई सरकार के लिए सदन का फ्लोर मैनेजमेंट बड़ी चुनौती होगा क्योंकि पहले ही सत्र में सरकार को विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव का सामना करना पड़ेगा।
विधायकों को कराई जाएगी शपथ ग्रहण
राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा के नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर के रूप में सदन के सबसे वरिष्ठ विधायक कालीचरण सराफ को नियुक्त किया है। उनके साथ तीन अन्य वरिष्ठ विधायकों दयाराम परमार प्रताप सिंह सिंघवी और डॉक्टर किरोडी लाल मीणा को भी सभापति के रूप में नियुक्त किया गया है। सत्र के पहले दिन बुधवार ( 20 दिसंबर) को नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी और अगले दिन गुरुवार 21 दिसंबर को शेष बचे विधायकों की शपथ के साथ ही स्पीकर का चुनाव भी होगा।
बीजेपी के पास 200 विधायक, 5 निर्दलीय विधायक भी जुड़े
राजस्थान में अब तक स्पीकर का चुनाव आमतौर पर सर्वसम्मति से ही होता रहा है। ऐसे में इस बार भी चुनाव की संभावना नहीं बताई जा रही है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी के पास सदन में स्पष्ट बहुमत है। 199 विधायकों में से अभी पार्टी के 115 विधायक हैं। इसके अलावा पांच निर्दलीय विधायक भी पार्टी के साथ जुड़ चुके हैं। इन्हें मिलाकर 120 की संख्या हो रही है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो इसके पास खुद के 69 विधायक हैं और आरएलडी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था इसलिए एक विधायक आरएलडी का भी है। इस तरह कुल 70 विधायक कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के हैं। इनके अलावा बसपा भारतीय आदिवासी पार्टी और आरएलपी के साथ विधायकों को जोड़ लिया जाए तो भी संख्या 77 तक ही पहुंचती है। ऐसे में चुनाव होता भी है तो भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी वासुदेव देवनानी की जीत तय है।
कई चेहरे इस बार नहीं आएंगे नजर
राजस्थान में हालांकि हर 5 साल में सरकार बदल जाती है। इसलिए विधानसभा का स्वरूप भी बदलता है, लेकिन इस बार और भी बहुत कुछ बदला हुआ नजर आएगा। विधानसभा में पिछले कुछ समय से हर बार नजर आने वाले कई चेहरे इस बार सदन में नजर नहीं आएंगे। जैसे भारतीय जनता पार्टी की हर सरकार में संसदीय कार्य मंत्री का दायित्व संभालने वाले राजेंद्र राठौड़ इस बार चुनाव हार गए हैं। वे लगातार सात बार विधायक रह चुके हैं। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी की सात बार की विधायक सूर्यकांता व्यास को इस बार पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया इसलिए वे विधानसभा में नहीं दिखेंगे। लगातार भाजपा के विधायक रहे पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल भी इस बार चुनाव हार गए हैं। तीन बार के विधायक रामलाल शर्मा, वहीं कांग्रेस की बात करें तो 5 से 6 बार विधायक रह चुके पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी, अमीन खान, रामनारायण मीणा, पिछली विधानसभा में स्पीकर रहे सीपी जोशी, विधानसभा में दमदार मुद्दे उठाने वाले निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा भी इस बार विधानसभा में नजर नहीं आएंगे। इनके अलावा राजस्थान विधानसभा में वामपंथी दलों की आवाज भी बार सुनाई नहीं देगी क्योंकि इनका एक भी विधायक इस बार चुनकर नहीं आ सका है।
यह भी पहली बार ही होगा कि जब कोई सरकार बिना मंत्रियों के विधानसभा में पहुंचेगी। मौजूदा सरकार में अभी तक सिर्फ मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और दो उपमुख्यमंत्रियों दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा नी ही शपथ ली है। राजस्थान में आमतौर पर मंत्रिमंडल के गठन के बाद ही विधानसभा सत्र की शुरुआत होती रही है।
गहलोत वसुंधरा दोनों इस बार सामान्य विधायक
राजस्थान में पिछले 25 वर्ष से एक बार अशोक गहलोत और एक बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनते आए हैं। ऐसे में जब भी सदन की बैठक होती थी तो एक तो कम से कम मुख्यमंत्री के रूप में मौजूद रहता था, लेकिन इस बार दोनों ही सामान्य विधायक के रूप में सदन में मौजूद रहेंगे। गहलोत हालांकि नेता प्रतिपक्ष बनाए जा सकते हैं लेकिन उनका पिछला रिकॉर्ड यही रहा है कि वह नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार नहीं करते हैं।