/sootr/media/post_banners/3beb4ab4867c7d51a67cab566004467156f6425cff841ad5604d6d042afcdd48.jpeg)
मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी का आरक्षण 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की घोषणा तो कर दी है, लेकिन कानूनी जानकारों की मानें तो ये आसान नहीं है। ये सब चुनाव से पहले होना तो बहुत ही मुश्किल है। ना सिर्फ इसकी प्रक्रिया लम्बी है, बल्कि इसमें कई ऐसे पेंच हैं जिनके चलते इस घोषणा का पूरा होना आसान नहीं है। इस बीच सीएम की घोषणा सामने आते ही इसके विरोध की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। ये तय माना जा रहा है कि यदि सरकार ने ऐसा कुछ किया तो मामला कोर्ट में जरूर जाएगा।
राजस्थान में कुल 64 प्रतिशत आरक्षण है
इस मामले को समझने के लिए पहले ये जान लेते हैं कि अभी राजस्थान में आरक्षण की स्थिति क्या है। राजस्थान में अभी कुल 64 प्रतिशत आरक्षण हैं। इसमें 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए, 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लिए, 21 प्रतिशत ओबीसी के लिए, 5 प्रतिशत गुर्जर सहित 5 अति पिछड़ा वर्ग जातियों के लिए और 10 प्रतिशत आर्थिक पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण है।
अब 32 प्रतिशत होगा ओबीसी का आरक्षण
गुर्जरों सहित 5 अति पिछड़ा वर्ग की जातियां ओबीसी में ही शामिल थी और अभी भी हैं, लेकिन गुर्जर आरक्षण को लेकर चले बड़े आंदोलन के बाद अब इन्हें अलग से 5 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है। यानी एक तरह से देखा जाए तो ओबीसी का आरक्षण राजस्थान में पहले ही 26 प्रतिशत है और अब यदि 6 प्रतिशत बढ़ाया जाता है तो ये 32 प्रतिशत हो जाएगा।
ये है मुख्यमंत्री की घोषणा
सीएम अशोक गहलोत ने हाल में राजस्थान में ओबीसी आरक्षण 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की घोषणा की है। ये घोषणा उन्होंने मानगढ़ में मंगलवार को राहुल गांधी की सभा में की और इसके बाद रात में इसके बारे में ट्वीट भी किया। उन्होंने लिखा है कि ओबीसी के लिए वर्तमान में जारी 21 प्रतिशत आरक्षण के साथ 6 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण दिया जाएगा। जो ओबीसी वर्ग की अति पिछड़ी जातियों के लिए रिजर्व होगा। ओबीसी की अति पिछड़ी जातियों के लिए ओबीसी आयेाग द्वारा सर्वे किया जाएगा और आयोग समयबद्ध तरीके से रिपोर्ट देगा।
आरक्षण बढ़ाना क्यों चाहते हैं ?
आरक्षण बढ़ाने की घोषणा के पीछे सीएम गहलोत ने ये तर्क दिया है कि ओबीसी की आबादी बढ़ गई है और इसलिए इनका आरक्षण बढ़ाने की मांग लगातार सामने आ रही है। इस तर्क के अलावा एक बड़ा राजनीतिक कारण भी है। राजस्थान में जाट ओबीसी में शामिल हैं और जाट समुदाय बहुत बड़ा वोट बैंक है जो प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी राजस्थान की ज्यादातर सीटों का प्रभावित करता है। इस समुदाय की ओर से मुख्यतौर पर ओबीसी आरक्षण की मांग आ रही है। जयपुर में इस साल 5 मार्च को जाट महाकुंभ में ये मांग पुरजोर ढंग से उठाई गई थी। सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस के बड़े नेता हरीश चौधरी खुद अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को इस बारे में ज्ञापन भी दे चुके हैं। जाटों का तर्क है कि ओबीसी समुदाय की जनसंख्या के अनुपात में 21 प्रतिशत आरक्षण कम है। इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
सीएम की घोषणा का आधार क्या है ?
सीएम अशोक गहलोत ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत करते हुए अपनी इस घोषणा का आधार भी बताया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई सीलिंग के कारण हम पहले 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकते थे। राजस्थान में भी एससी-एसटी और ओबीसी का आरक्षण 49 प्रतिशत तक ही था, लेकिन अब आर्थिक पिछड़ा वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण केन्द्र सरकार ने दे दिया है। इसलिए अब 50 प्रतिशत की सीमा लागू नहीं होती। इसी कारण हम अब ओबीसी का आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं।
लेकिन इस आधार में बड़ा पेंच है ?
सीएम गहलोत ने आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण का जो आधार बताया है, उसमें एक बड़ा पेंच है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए जो 50 प्रतिशत की सीमा निर्धारित की हुई है, वो जातिगत आधार पर आरक्षण के मामले में है और आर्थिक आधार पर आरक्षण आधार जातिगत नहीं है। इसके अलावा आबादी के बढ़ने के कारण आरक्षण बढ़ाए जाने के तर्क में भी झोल है।
आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे समता आंदोलन के अध्यक्ष
राजस्थान में आरक्षण के खिलाफ न्यायालयों में लड़ाई लड़ रहे समता आंदोलन के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा का कहना है कि संविधान की धारा 16 (4) के तहत पिछड़ों का आरक्षण का प्रावधान है और जातिगत आधार पर आरक्षण इसी धारा के तहत दिया गया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था संविधान की धारा 16 (6) के तहत है। ऐसे में सीएम गहलोत आर्थिक आधार पर आरक्षण बहाना लेकर यदि जातिगत आरक्षण बढ़ाना चाहेंगे तो ये मामला कोर्ट में टिकेगा नहीं।
नौकरियों के आरक्षण न बढ़ाने पर उठे सवाल
समता आंदोलन के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा का कहना है संविधान के अनुसार आबादी के आधार पर राजनीतिक आरक्षण यानी लोकसभा और विधानसभा की सीटों का आरक्षण तो बढ़ाया जा सकता है, लेकिन नौकरियों का आरक्षण नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस सबंध में स्पष्ट प्रावधान हैं कि यदि नौकरियों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है, तो आरक्षण नहीं बढ़ाया जा सकता है और ऐसा हो चुका है। शर्मा कहते हैं कि सरकार ने आरक्षण बढ़ाने का प्रयास किया तो हम सड़क से लेकर कोर्ट तक इसे चैलेंज करेंगे।
गुर्जरों को दिए गए आरक्षण का मामला ही कोर्ट में चल रहा है
राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण देने की लड़ाई लंबी चली और काफी चर्चित भी रही। गुर्जर आरक्षण आंदोलन ने विश्व भर में सुर्खियां बटोरीं और इसी के चलते बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सरकारों ने 50 प्रतिशत की सीमा लांघते हुए इन्हें 5 प्रतिशत आरक्षण देने की कवायद की। इस बारे में राजस्थान की सरकारें 3 बार बिल पारित कर चुकी हैं, लेकिन 3 में से 2 बार न्यायालय कानूनों को रद्द कर चुका है और तीसरी बार जो बिल पारित किया गया है, वो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है और बिल को चुनौती देने वालों को पूरा भरोसा है कि फैसला उनके पक्ष में ही आएगा।
आयोग में 20 महीने से सिर्फ अध्यक्ष काम कर रहे हैं
इस घोषणा के चुनाव से पहले पूरी होने में सिर्फ कानूनी पेंच ही नहीं बल्कि और बड़ी अड़चन है। कानूनी प्रावधान ये है कि राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष के अलावा एक समाज वैज्ञानिक, 2 व्यक्ति जिन्हें पिछड़े वर्ग से सबंधित मामलों का विशेष ज्ञान हो और एक सदस्य सचिव भी होना चाहिए। लेकिन, पिछले 20 माह से यहां सिर्फ अध्यक्ष ही काम कर रहे हैं। आयोग में सदस्यों की नियुक्ति अभी तक नहीं की गई है। ऐसे में सरकार चुनाव से पहले कैसे अध्ययन कराकर इस घोषणा को लागू कर पाएगी। इस बारे में आयोग के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश भवरूं खान से संपर्क करने का प्रयास किया था, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
बीजेपी कह रही है आरक्षण बढ़ाने का विरोध नहीं, लेकिन होगा कैसे
इस मामले में प्रतिपक्ष में बैठी बीजेपी का कहना है कि हम आरक्षण बढ़ाने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि ये होगा कैसे? नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ का कहना है कि आरक्षण बढ़ाने के लिए पुख्ता आधार चाहिए और इसके लिए क्वांटिफायबल डाटा और अध्ययन जरूरी है। आयोग में अध्यक्ष के अलावा कोई है ही नहीं। ऐसे में ये कैसे संभव हो पाएगा। इसके अलावा सरकार 6 प्रतिशत अति पिछड़ी जातियों के लिए बढ़ाने का तर्क दे रही है, लेकिन राजस्थान में नहीं कहीं भी ओबीसी में शामिल जातियों का वर्गीकरण ही नहीं किया हुआ है। ऐसे में सरकार कैसे तय करेगी कि अति पिछड़ी जातियां कौनसी हैं और उसका आधार क्या होगा। उनका कहना है कि ये सिर्फ चुनावी घोषणा है जो पूरी नहीं हो पाएगी।
जातिगत जनगणना के लिए केन्द्र पर दबाव
सूत्रों का कहना है कि इस घोषणा के जरिए गहलोत कहीं ना कहीं केन्द्र पर जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने का दबाव भी बना रहे हैं। केन्द्र सरकार ने 2011 में सामाजिक आर्थिक जनगणना कराई थी, लेकिन इसके आंकड़े अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए मांग उठा रही है, वहीं राजस्थान में गहलोत ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के नाम पर जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने को चुनावी मुद्दा बना सकते हैं।