बजरी खनन : राजस्थान में आंखें मूंदे बैठी सरकार, बिना पड़ताल 140 खानों को दे दी मंजूरी

राजस्थान में बिना पर्यावरण अध्ययन के बजरी खनन जारी, नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 140 बजरी खानों को दी स्वीकृति।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rajasthan) में बजरी खनन एक बड़ा मुद्दा है। एक ओर जहां लोगों को बजरी की जरूरत है तो दूसरी ओर इसकी उपलब्धता भी सीमित है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक आदेश के मुताबिक मानसून से पहले और बाद में नदियों में बजरी की उपलब्धता को लेकर व्यापक अध्ययन के बाद ही बजरी की खानें आवंटित की जा सकती हैं लेकिन, राजस्थान की भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) सरकार ने इन आदेशों की परवाह किए बिना ही करीब 140 नई बजरी खानों के लिए स्वीकृतियां जारी की हैं।

क्यों करना चाह रहे ज्यादा बजरी खनन?

राजस्थान में हर साल 700 लाख टन से अधिक बजरी की मांग रहती है। इस मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर बजरी का खनन हो रहा है, लेकिन यह अध्ययन नहीं किया जा रहा कि मानसून के दौरान नदियों में कितनी बजरी की आपूर्ति हो रही है। यह स्थिति नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का कारण बन सकती है।

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पर्यावरण के लिए खनन क्यों नुकसानदायक है?

कुछ साल पहले, कोठारी क्षेत्र में नदी का बहाव बदलने की घटनाएँ सामने आई थीं। ऐसे में यह चिंता का विषय है कि बिना उचित अध्ययन के खनन से नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इस मुद्दे पर सख्त निर्देश दिए हैं कि नए बजरी खानों के आवंटन के लिए पर्यावरणीय नियमों की कड़ी निगरानी की जाए।

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बजरी माफिया कैसे कमाई कर रहा है?

राज्य में बजरी की खपत को देखते हुए, चल रही खानों से इसकी आधी बजरी ही निकल पा रही है। इस स्थिति का फायदा  खनन माफिया उठा रहे हैं, जो अवैध तरीके से बजरी निकालकर मोटी कमाई कर रहे हैं।

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क्यों पूरी नहीं हुई सीएमपीडीआई की रिपोर्ट?

पिछले साल, मानसून के दौरान सीएमपीडीआई (Central Mine Planning and Design Institute Limited) को प्री और पोस्ट स्टडी के लिए काम सौंपा गया था। हालांकि, मानसून के बाद अध्ययन पूरा नहीं किया जा सका क्योंकि भुगतान में देरी हो गई। इस साल, किसी भी संस्था को इस अध्ययन का कार्य सौंपा ही नहीं गया। इससे तुलनात्मक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हो पाई।

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नदियों से बजरी कैसे निकाली जाती है?

रिपोर्ट के अनुसार, नदी पेटे में बजरी निकालने की अनुमति नमी के एक फीट ऊपर तक ही दी जा सकती है। उदाहरण के तौर पर, यदि बजरी में पानी 1.30 मीटर की गहराई तक है, तो खनन केवल 1 मीटर गहराई तक किया जा सकता है। लेकिन बनास नदी में खनन के दौरान 15 से 20 फीट तक गहरे गड्डे देखे जा सकते हैं।

राजस्थान में बजरी के स्रोत क्या हैं?

राज्य में बजरी के प्रमुख स्रोतों में बनास, लूणी, कोठारी, खाली, काटली और जवाई नदियाँ शामिल हैं। इनमें से अकेले बनास नदी से ही प्रदेश की कुल मांग का 70 प्रतिशत बजरी निकाली जाती है।

जानें कैसे अमानक और अवैध बजरी खनन खतरनाक है?

1. पर्यावरणीय प्रभाव

वैध: वैध खनन के दौरान पर्यावरणीय नियमों का पालन किया जाता है। खनन से पहले और बाद में पर्यावरणीय अध्ययन कराया जाता है ताकि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को कम से कम नुकसान हो।
अवैध: अमानक और अवैध खनन में पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन होता है। बिना किसी पर्यावरणीय अध्ययन या अनुमति के खनन किया जाता है, जिससे नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है। नदी के जलस्तर में गिरावट और जलचर प्रजातियों की मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।

2. सुरक्षा मानक

वैध: वैध खनन में सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है। खनन कार्य को नियंत्रित करने के लिए अधिकारियों की निगरानी होती है, जिससे खनिकों और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
अवैध: अमानक और अवैध खनन में कोई सुरक्षा मानक नहीं होते। मजदूरों को खनन क्षेत्र में खतरनाक स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि गहरे गड्ढों में गिरने का खतरा और खनन के दौरान दुर्घटनाएँ।

3. जलवायु और जलस्तर पर प्रभाव

वैध: वैध खनन के दौरान खनन की गहराई और क्षेत्र को नियंत्रित किया जाता है, जिससे नदियों के जलस्तर पर कम से कम प्रभाव पड़ता है। इससे नदी का पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षित रहता है।
अवैध: अमानक और अवैध खनन में नदियों से अधिक गहरी बजरी निकाली जाती है, जिससे नदी का जलस्तर घट सकता है। यह जलवायु असंतुलन और पानी की कमी का कारण बन सकता है।

4. नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा

वैध: वैध खनन में नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए मानदंड निर्धारित होते हैं, जैसे कि नदी के किनारे पर खनन की गहराई और दूरी तय की जाती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करता है।
अवैध:अमानक और अवैध खनन से नदियों के किनारों का अत्यधिक कटाव होता है, जिससे जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे नदी का प्राकृतिक बहाव और जलस्तर असंतुलित हो सकता है।

5. दीर्घकालिक प्रभाव

वैध: वैध खनन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से राज्य की विकास योजनाओं के अनुरूप होता है और इससे प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित होता है।
अवैध: अमानक और अवैध खनन दीर्घकालिक पर्यावरणीय नुकसान का कारण बन सकता है। यह नदियों की स्थिरता को खतरे में डालता है और भविष्य में जल संकट और पारिस्थितिकी तंत्र संकट का कारण बन सकता है।

 

FAQ

1. राजस्थान में बजरी खनन क्यों बढ़ रहा है?
राजस्थान में हर साल 700 लाख टन से ज्यादा बजरी की मांग रहती है, जिसे पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर खनन किया जा रहा है। हालांकि, इस खनन को लेकर कोई पर्यावरणीय अध्ययन नहीं कराया जा रहा है, जो नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
2. बजरी खनन के पर्यावरणीय असर क्या हो सकते हैं?
बिना पर्यावरणीय अध्ययन के बजरी खनन से नदियों का बहाव बदल सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है। इससे नदी के जीवों और आसपास के पर्यावरण पर नकारात्मक असर हो सकता है।
3. सरकार ने बजरी खनन के लिए क्या कदम उठाए हैं?
सरकार ने नए बजरी खानों के लिए स्वीकृतियाँ दी हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की सख्त सिफारिशों के बावजूद पर्यावरणीय अध्ययन नहीं कराया जा रहा। यह स्थिति नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल सकती है।

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