/sootr/media/media_files/2025/08/13/bharthari-dham-2025-08-13-13-43-53.jpg)
Photograph: (The Sootr)
सुनील जैन
राजस्थान में खैरथल-तिजारा जिले का नाम भर्तृहरि नगर रखने से सरिस्का में बसा भर्तृहरि धाम चर्चाओं में है। लाखों लोगों की आस्था से जुड़े इस धाम की यह स्थिति है कि यहां पहुंचने के लिए न तो अच्छी सड़क है और श्रद्धालुओं के लिए कोई बेहतर सुविधा। इसी महीने के आखिरी सप्ताह में यहां भर्तृहरि का सालाना मेला जुड़ेगा, लेकिन सरकार की तरफ से धाम में सुविधाओं को लेकर कोई वादा नहीं किया गया है।
अलवर-जयपुर मार्ग पर बने स्वागत द्वार से ही भर्तृहरि धाम के खराब हालत दिखने लगते हैं। यहां से मंदिर तक की करीब तीन किलोमीटर की सड़क पर बेशुमार गड्ढे हैं। इन्हें पार करना किसी खतरे से कम नहीं है। धाम पर आने वाले श्रद्धालु कहते हैं कि खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण भर्तृहरि नगर करने से पहले इस धाम के हालात सुधारने की जरूरत थी। सरकार ने दशकों से धामकी सुध नहीं ली है।
यह खबर भी देखें ...
यहां न शौचालय, न स्नानघर
भर्तृहरि धाम के एक पुराने सेवक बताते हैं कि यहां जितने भी विकास कार्य हैं, वह पुराने समय के हैं। महिलाओं के लिए न स्नान घर हैं और न ही शौचालय सुविधा। कोई भी श्रद्धालु जब यहां आता है तो सबसे पहले जल स्नान करता है। महिलाओं को खुले में नहाना पड़ता है। शौचालय की यह स्थिति है कि सभी को खुले जंगल में शौच के लिए जाना पड़ता है। यहां पर कुछ धर्मशालाएं बनी हैं, जो समाज द्वारा या व्यक्तिगत रूप से स्मृति में बनाई गई है। ये धर्मशालाएं दशकों पुरानी है। इन धर्मशालाओं की बरसों से मरम्मत नहीं है। मरम्मत के अभाव में कई धर्मशाला जीर्ण क्षीण अवस्था में पहुंच गई हैं। लोग इनकी छतों पर भी चढ़ते हैं तो इनके गिरने की आशंका बनी रहती है।
/filters:format(webp)/sootr/media/media_files/2025/08/13/bharthari-dham-2025-08-13-13-48-07.jpg)
सवाल: फिर अलवर का नाम क्यों नहीं बदला
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पिछले सप्ताह अलवर जिले से अलग हुए खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण भर्तृहरि नगर करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी है। इस नामकरण के बाद नए जिले के लोग आंदोलन के रास्ते पर हैं। उनका कहना है कि जब भर्तृहरि धाम अलवर जिले में है तो खैरथल-तिजारा जिले को नाम भर्तृहरि नगर क्यों रखा गया। जन-जन की आस्था के प्रतीक भर्तृहरि को लेकर सरकार अगर गंभीर है तो उसे अलवर का नामकरण बदलना चाहिए। भाजपा सरकार लोकदेवता भर्तृहरि को अनावश्यक रूप से राजनीति से जोड़ रही है।
दोनों मंत्री अलवर से तो विकास में क्या दिक्कत
भर्तृहरि धाम सरिस्का नेशनल पार्क में आता है। माधोगढ़ के सरपंच प्रतिनिधि पेमाराम सैनी बताते हैं कि हर साल धाम पर लाखों की श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सरकार यहां उन्हें कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराती है। यह इलाका सरिस्का में होने के कारण वन विभाग ने विकास कार्यों में अड़ंगा लगा देता है। वे सवाल करते हैं कि जब देश के अन्य भागों में विकास के नाम पर पर्यावरण स्वीकृति मिल सकती है तो फिर भर्तृहरि धाम में विकास के लिए क्यों नहीं। भर्तृहरि धाम को विकसित करने के लिए किसी तरह के जंगल काटने की भी जरूरत नहीं है। भर्तृहरि धाम उस स्थिति में उपेक्षित है, जब केंद्र और राज्य में वन व पर्यावरण मंत्री अलवर जिले से हैं। लेकिन, वे भर्तृहरि धाम की आस्था में वोटबैंक की राजनीति देखते हैं।
/filters:format(webp)/sootr/media/media_files/2025/08/13/bharthari-dham-2025-08-13-13-50-02.jpg)
लोकदेवता भर्तृहरि के बारे में महत्वपूर्ण बातें
| |
पांच करोड़ स्वीकृत, नहीं हो पाए खर्च
पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने 2023 के बजट में भर्तृहरि धाम की सुविधाओं के लिए 5 करोड रुपए स्वीकृत किए थे। इसकी कार्यकारी एजेंसी वन विभाग को बनाया था। लेकिन, वन विभाग ने कोई निर्माण कार्य नहीं कराया। इससे उस राशि का कोई उपयोग नहीं हुआ। इसी तरह अमर गंगा नाले की मरम्मत के लिए 233 लाख रुपए स्वीकृत हुए।इसका भी निर्माण नहीं हो सका। एक अधिकारी का कहना है कि अगर इस नाले का निर्माण हो जाता तो बिल्कुल साफ पानी समाधि स्थल आता।
वन विभाग को लेकर ग्रामीणों में उबाल
माधोगढ़ के सरपंच प्रतिनिधि के अनुसार हमने वन विभाग से कई बार कहा कि जो पहाड़ी इलाके में सिवाय चक जमीन है, यह खातेदारी की जमीन है। उसको आप पहाड़ में दर्ज कर उसके बदले यहां भर्तृहरि धाम में फॉरेस्ट नियमों को हटा दिया जाए। इससे यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए सुविधा उपलब्ध कराने में सुविधा हो जाएगी। स्वागत द्वार से मंदिर तक के लिए डबल लाइन सड़क स्वीकृत हुई। दोनों तरफ इंटरलॉक टाइल्स लगनी थी लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने इसमें रोड़ा अटका दिया। ना सड़क बनने दी और ना कोई कार्य हुआ। आज यहां लाखों भक्त आते हैं, वह कितने यहां परेशान होते हैं, इसका अंदाजा अलवर के दोनों मंत्रियों को नहीं है।
इंदौक के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि आजादी से पहले भरतपुर और अलवर महाराज ने भर्तृहरि की ख्याति देखकर इस धाम को वन क्षेत्र में नहीं रखा। रेवन्यू कोर्ट भरतपुर में हुआ करती थी। उसके दस्तावेज में भर्तृहरि धाम को फॉरेस्ट एरिया में नहीं माना गया। इसके विपरीत फॉरेस्ट विभाग अब भर्तृहरि धाम की जमीन को अपनी बताता है। सरिस्का के एक अधिकारी कहते हैं कि भर्तृहरि धाम सरिस्का नेशनल पार्क का हिस्सा है। इसमें किसी भी कार्य के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी है।
धाम में उज्जैन जैसी सुविधा क्यों नहीं
भरथरी धाम से जुड़े इंदौक के ग्रामीणों का आरोप है कि भाजपा इस धाम के उत्थान के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं। कभी कॉरिडोर बनाने का वादा करती है तो कभी उज्जैन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने की। लेकिन बातें सिर्फ हवा-हवाई हैं। उन्हें दुख है कि भरथरी धाम को नेताओं ने राजनीति का हिस्सा बना दिया है।
ऐसा कहा जाता है कि उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने राजपाट छोड़ने के बाद यहां बरसों तप किया था। उनकी भर्तृहरि धाम में समाधि बनी हुई है। यहां उन्हें लोग लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। हाल में दो बरस पहले बनाए गए खैरथल-तिजारा जिले का नाम भर्तृहरि नगर रखने से यहां सियासी माहौल गरम है।
FAQ
thesootr links
- मध्यप्रदेशकी खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- राजस्थान की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक
- जॉब्स औरएजुकेशन की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
- निशुल्क वैवाहिक विज्ञापन और क्लासिफाइड देखने के लिए क्लिक करें
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧👩
राजा भर्तृहरि की कहानी | खैरथल—तिजारा जिला नामकरण विवाद | भर्तृहरि नगर नाम का राजनीतिक महत्व | खैरथल तिजारा जिले में सियासी मतभेद | खैरथल-तिजारा जिला नामकरण विवाद | भर्तृहरि नगर जिला नामकरण विवाद खैरथल—तिजारा जिला नामकरण विवाद