राजस्थान में खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर क्यों, क्या है इसके पीछे राजनीति, जानिए पूरी कहानी

राजथान में खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण अब भर्तृहरि नगर होगा। सरकार के इस प्रस्ताव से सियासी खेमों में बवाल मचा है। यह सवाल भी उठ रहा है कि लोकदेवता के नाम पर ही क्यों नाम रखा जा रहा है।

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Nitin Kumar Bhal
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Khairthal Tijara

Photograph: (The Sootr)

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सुनील जैन

राजस्थान में दो साल पहले बनाए गए खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण भर्तृहरि नगर और मुख्यालय भिवाड़ी रखने के प्रस्ताव को लेकर सियासी बवाल मच गया है। भाजपा सरकार के इस प्रस्ताव के बाद यह बहस का विषय बन गया कि आखिर इस जिले का नामकरण अलवर के लोकदेवता भर्तृहरि के नाम पर क्यों रखा गया। सवाल यह भी खड़ा हुआ कि क्या भाजपा लोकदेवता के नाम पर कोई राजनीतिक फायदा लेना चाह रही है।

भर्तृहरि का संबंध अलवर जिले से है। इस जिले का एक बड़ा हिस्सा भर्तृहरि को लोकदेवता के रूप में पूजता है। उनकी समाधि सरिस्का के जंगलों में भर्तृहरि धाम में है। लेकिन, अलवर जिले को तोड़कर बनाए गए नए जिले खैरथल-तिजारा में इनकी मान्यता बहुत कम है। कहा जाता है कि उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने राजपाट छोड़कर तिजारा में तपस्या की थी। बाद में वे सरिस्का के जंगल में आ गए थे, जहां उनकी समाधि भर्तृहरि धाम के यप में पूजी जाती है।

तिजारा में भर्तृहरि की गुंबद, जिसका पुरातत्व महत्व

हालांकि, तिजारा में जहां भर्तृहरि ने तपस्या की थी, वहां ऐतिहासिक गुंबद बनी हुई है। लेकिन, इसका ज्यादा महत्व धार्मिक की बजाय ऐतिहासिक है। फिलहाल यह गुंबद पुरातत्व विभाग के अधीन है। बताते हैं कि इस गुबंद का निर्माण सिकंदर लोदी के भाई अलावलदीन लोदी ने करवाया था। यह 32 खंभों वाला गुंबद है और वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें 32 छतरियां हैं। 8 दीवारें हैं यानी आठ दरवाजे। 

तिजारा के कुछ जानकार लोग बताते हैं कि भर्तृहरि पहले तिजारा में ही तपस्या करने आए थे। बाद में वे सरिस्का में माधोगढ़ के घने जंगल में तपस्या करने लगे। तब से उस स्थान का नाम भर्तृहरि धाम रखा गया। जहां उनकी समाधि है।

 

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राजस्थान के तिजारा में स्थित मुस्लिम शासकों द्वारा बनाई गई गुंबद। इसे ही भर्तृहरि की गुंबद के रूप में जाना जाता है। Photograph: (The Sootr)

गुंबद देखने आते हैं पर्यटक

तिजारा के लोग बताते हैं कि भर्तृहरि की गुंबद को धार्मिक से अधिक पुरातत्व महत्व के रूप में देखा जाता है। इसका पुरातत्व विभाग ने कायाकल्प भी कराया है। गुंबद की ऊंचाई 240 फीट है। आठ दरवाजे 8 दिशाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसका अर्थ है कि ईश्वर हर दिशा में मौजूद रहे और प्रार्थना हर दिशा में सुनी जा सके। यह गुंबद राजस्थान के सबसे बड़े गुंबदों में से एक मानी जाती है। लोगों के अनुसार इस गुम्बद को देखने हर साल हजारों पर्यटक आते हैं, जो इसकी वास्तुकला से प्रभावित होते हैं।

 

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अलवर के भरथरी धाम में भर्तृहरि की प्रतिमा, जिसे लोकदेवता के रूप में पूजते हैं Photograph: (The Sootr)

वोट ध्रुवीकरण के लिए लिया निर्णय

स्थानीय लोग यह भी बताते हैं कि गुंबद का संबंध भर्तृहरि से होने के बावजूद यहां उन्हें कम लोग ही लोक देवता के रूप में मानते हैं। इसके विपरीत अलवर जिले में भर्तृहरि को बड़ा तबका लोक देवता के रूप में स्वीकार करता है। ऐसे में कांग्रेस और उससे जुड़े लोग

अलवर को तोड़कर बनाए नए जिले का नामकरण भर्तृहरि के नाम पर करने के प्रस्ताव को सियासी निर्णय के रूप में देखते हैं। उनका दावा है कि वोट ध्रुवीकरण के जरिए चुनाव में फायदा लेने के लिए खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण भर्तृहरि के नाम पर किया गया है।  

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो अलवर जिले और खैरथल-तिजारा जिले का अधिकांश भाग अलवर लोकसभा क्षेत्र में आता है, जहां भाजपा से केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव सांसद हैं। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि खैरथल-तिजारा जिला मेव-यादव बहुल है। इस जिले का नामकरण सरकार के प्रस्ताव के हिसाब से होता है तो निश्चित रूप से वोट ध्रुवीकरण में भाजपा को फायदा मिलेगा।

 

लोकदेवता भर्तृहरि के बारे में महत्वपूर्ण बातें

  1. उज्जैन के महान राजा

    • भर्तृहरि उज्जैन के शासक थे, और उनके पिता का नाम महाराज गंधर्वसेन था।

    • वे राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे और अपने भाई के पक्ष में राजगद्दी छोड़ दी थी।

  2. संन्यास की कहानी

    • भर्तृहरि ने अपनी पत्नी की बेवफाई के कारण सांसारिक जीवन से विरक्ति महसूस की और संन्यास लेने का निर्णय लिया।

  3. गुरु गोरखनाथ से दीक्षा

    • भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ली और उनके शिष्य बन गए।

  4. लोकप्रियता और लोकगीत

    • भर्तृहरि की कहानियां और लोकगीत आज भी राजस्थान और अन्य उत्तरी भारतीय राज्यों में लोकप्रिय हैं।

  5. समाधि स्थल

    • उनकी समाधि राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है, जहां हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी को मेला लगता है।

  6. साहित्यिक योगदान

    • भर्तृहरि संस्कृत के महान कवि थे और उनके "शतकत्रय" (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) में नीति, शृंगार और वैराग्य पर insightful बातें लिखी हैं।

  7. लोककथाएं

    • भर्तृहरि के जीवन से जुड़ी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक प्रसिद्ध कथा में उनकी पत्नी पिंगला के साथ उनके प्रेम और संन्यास का वर्णन है।

    • एक और कथा में भर्तृहरि को अमरता देने वाला फल दिया गया, लेकिन उन्होंने उसे अपनी पत्नी को दे दिया। फल के साथ हुई घटना से निराश होकर उन्होंने संन्यास ले लिया।

  8. दर्शन - शब्द-ब्रह्म

    • भर्तृहरि का दर्शन "शब्द-ब्रह्म" की अवधारणा पर आधारित था, जिसका मतलब है कि परम सत्य शब्दों के माध्यम से व्यक्त होता है।

    • उन्होंने भाषा और अनुभूति के बीच संबंध पर जोर दिया और व्याकरण के ज्ञान के माध्यम से आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने की बात की।

 

जिले का नाम बदलने की यह है प्रक्रिया

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भर्तृहरि नगर के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। अब यह प्रस्ताव मंजूरी के लिए कैबिनेट बैठक में आएगा। बाद में राजस्थान विधानसभा इस पर मुहर लगाकर केंद्र सरकार को भेजेगी। केंद्र से अनुमोदन के बाद खैरथल-तिजारा का नाम बदल जाएगा। उधर, किशनगढ़बास के कांग्रेस विधायक दीपचंद खैरिया ने कहा कि अगर ​इस जिले का मुख्यालय भिवाड़ी किया तो उसका विरोध किया जाएगा। हम इस निर्णय का बहिष्कार करेंगे, क्योंकि यह प्रस्ताव खैरथल की पहचान को खत्म करने के लिए लाया गया है।

बाबा बालकनाथ और दीपचंद खैरिया आमने-सामने

दरअसल, भिवाड़ी को मुख्यालय को लेकर किशनगढ़बास के कांग्रेस विधायक दीपचंद खैरिया और तिजारा से भाजपा विधायक बाबा बालकनाथ के बीच जबर्दस्त खींचतान हैं। दोनों ही विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में नए जिले का मुख्यालय चाहते हैं। सरकार ने खैरथल की बजाय भिवाड़ी में मुख्यालय बनाने का प्रस्ताव बनाया है। फिलहाल, इस नए जिले का मुख्यालय खैरथल में है। यहां नई कृषि उपज मंडल में एग्रो टावर में कलेक्ट्रेट चल रहा है।

खैरथल में प्रस्ताव के विरोध में समिति बनी

कांग्रेस विधायक दीपचंद खैरिया का कहना है कि कलेक्ट्रेट के लिए यह जगह प्रदेश के सभी नए जिलों के मुख्यालय भवनों से बेहतर है। हमारा विरोध यह है कि आखिर मुंडावर या उसके आसपास के लोग भिवाड़ी कैसे पहुंचेंगे। खैरथल के मंडी व्यापारियों ने सरकार के प्रस्ताव के विरोध में बड़ी सभा कर संघर्ष समिति गठित की है। सभा में यह आरोप भी लगाए गए कि भिवाड़ी में जिला मुख्यालय रखने का निर्णय भाजपा के कुछ नेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। इन नेताओं की भिवाड़ी के आसपास जमीनें हैं, जिनके भाव बढ़ाने के लिए यह प्रस्ताव तैयार किया गया है। मुख्यालय भिवाड़ी बनने के बाद जमीनों के भाव आसमान छू जाएंगे।

 

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खैरथल में सरकार के प्रस्ताव के विरोध में सभा हुई। इसमें विरोध के लिए संघर्ष समिति गठित की गई, जो आंदोलन की रूपरेखा बनाएगी। Photograph: (The Sootr)

 

FAQ

1. खैरथल-तिजारा जिले का नामकरण भर्तृहरि नगर क्यों किया जा रहा है?
भर्तृहरि को अलवर इलाके के लोकदेवता माना जाता है, इसलिए भाजपा सरकार ने नए जिले का नामकरण भर्तृहरि नगर के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, यह नामकरण राजनीतिक लाभ के इरादे से भी जुड़ा माना जाता है।
2. भर्तृहरि की समाधि कहां स्थित है और इसका महत्व क्या है?
भर्तृहरि की समाधि अलवर जिले के सरिस्का जंगल में भर्तृहरि धाम के रूप में प्रसिद्ध है। उनका धार्मिक और लोकदेवता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान है।
3. खैरथल-तिजारा जिले का मुख्यालय भिवाड़ी बनाया जाना क्यों विवादित है?
मुख्यालय को भिवाड़ी रखने का प्रस्ताव खैरथल क्षेत्रवासियों और कांग्रेस नेताओं के विरोध का सामना कर रहा है। वे चाहते हैं कि मुख्यालय खैरथल में ही रहे क्योंकि भिवाड़ी मुख्यालय प्रस्ताव से स्थानीय जमीन के दाम बढ़ने और भाजपा नेताओं को फायदा पहुंचने की आशंका है।
4. तिजारा में भर्तृहरि की गुंबद का इतिहास और विशेषता क्या है?
तिजारा में भर्तृहरि की तपस्या स्थल पर सिकंदर लोदी के भाई अलावलदीन लोदी द्वारा निर्मित 32 खंभों वाला गुंबद है, जिसमें 8 दरवाजे हैं। यह वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
5. खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलने की आधिकारिक प्रक्रिया क्या है?
नामकरण के लिए मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट में भेजा जाता है। मंजूरी के बाद वह विधानसभा में जाता है। अंत में, केंद्र सरकार से अनुमोदन के बाद नया नाम आधिकारिक रूप से लागू होता है।

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