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राजस्थान में जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में ग्रीन कवर एरिया डोल का बाढ़ संकट में है। यह दक्षिण राजधानी जयपुर का ऑक्सीजोन माना जाता है। करीब 100 एकड़ के इस जंगल में 2500 से ज्यादा पेड़ हैं। इन पर 60 से अधिक प्रजातियों के परिंदों का बसेरा है। राजधानी में प्रदूषण की बढ़ती मार के बीच राजस्थान सरकार इस जंगल पर कुल्हाड़ी चलाकर फिनटेक पार्क और पीएम यूनिटी पार्क बनाना चाहती है।
सरकारी जेसीबी और बलडोजर यहां रात-दिन जंगल को समतल करने में लगे हैं। सरकार की सक्रियता के बाद जयपुर के लोगों ने इसके विरोध में फिर से आंदोलन की राह पकड़ी हैं। उन्होंने यहां बेमियादी धरना शुरु किया है। उनका आरोप हैं कि सरकार ग्रीन क्षेत्र को उजाड़ कर लोगों का प्रदूषण से दम घोटना चाहती है। आंदोलनकारियों ने अब सुप्रीम कोर्ट जाने का भी निश्चय किया है।
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सरकार ने किया था अधिग्रहण
जयपुर में एयरपोर्ट के पास बी2 बाईपास पर स्थित इस ग्रीन एरिया को सरकारी औद्योगिक एजेंसी रीको ने 1980 के दशक में अधिग्रहण किया था। बरसों पहले यहां खाली जमीन और खेत हुआ करते थे। अक्टूबर 2018 में तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे ने यहां 16 किलोमीटर क्षेत्र में द्रव्यवती नदी सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट का फीता काटा था। इसके बाद आस-पास का यह इलाका अधिक हरा-भरा हो गया। डोल का बाढ़ क्षेत्र ने जंगल का रूप ले लिया।
जंगल में खेजड़ी, रोहिड़ा, देसी बबूल जैसी प्रजातियों के पेड़ हैं। यहां कई ऐसे पेड़ भी हैं, जो 100-125 साल से अधिक ज्यादा पुराने हैं। हरियाली होने की वजह से यहां पर विभिन्न प्रजातियों के पक्षी निवास करने लगे। आंकड़े बताते हैं कि शहर में वाहनों की रेलमपेल के कारण जब एक्यूआई का स्तर 150 से अधिक रहता है। यहां एक्यूआई मात्र 50 रहती है। यानी यह जंगल आसपास के इलाकों के लिए ऑक्सीजोन साबित हुआ है।
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गहलोत ने की थी बजट घोषणा
कांग्रेस की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने 24 फरवरी 2021 को बजट पेश करते हुए फिनटेक पार्क (फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी पार्क) की घोषणा की थी। तब गहलोत ने कहा था कि प्रदेश के बहुत सारे चार्टर्ड एकाउंटेंट और आईटी प्रोफेशनल्स देश भर में काम कर रहे हैं। ये लोग नोएडा, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलूरु और कोलकाता जैसे शहरों में बस गए हैं। इस टेक्नोलॉजी पार्क के जरिए हम उन्हें यहा बसाना चाहते हैं। सरकार की योजना थी कि यह फिनटेक पार्क 4.8 लाख वर्गमीटर के क्षेत्र में विकसित किया जाएगा। इसकी 55 प्रतिशत भूमि ग्रीन क्षेत्र होगा। इसी योजना को भाजपा सरकार ने भी आगे बढ़ाया।
ग्रीन एरिया की यह है कहानी
सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि डोल का बाढ़ क्षेत्र को राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1953 की सेक्शन 4(1) के तहत 1979 में औद्योगिक विकास के लिए अधिसूचित किया गया था। उस समय इस भूमि को 591 बीघा और 17 बिस्वा में नापा गया। इसके बाद यह भूमि अधिग्रहण कर 1982 में रीको को सौंप दी गई। सरकार ने इसे 1988 में जेम इंडस्ट्री स्थापना के लिए डायमंड एंड जेम डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को आवंटित कर दिया। लेकिन कॉरपोरेशन इस भूमि का उपयोग समय पर नहीं कर पाई। इसके कारण रीको ने 1996 में कॉरपोरेशन का आवंटन रद्द कर दिया। कंपनी ने आवंटन रद्द करने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट की शरण ली। अदालत ने इस जमीन पर कंपनी का कब्जा बहाल करने के आदेश जारी कर दिए। बाद में रीको ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। वर्ष 2013 में शीर्ष कोर्ट का फैसला रीको के पक्ष में आया।
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कांग्रेस शासन के समय से ही आंदोलन
पर्यावरण प्रेमियों ने डोल का बाढ़ जंगल बचाने के लिए 2021 से अभियान शुरू किया था। इस दौरान दीया कुमारी जब राजसमंद से सांसद थी, तब पर्यावरण प्रेमियों ने उनसे मुलाकात की थी। उन्होंने वादा भी किया था कि वह इस जमीन को बचाने के लिए पर्यावरणविदों का साथ देंगी। पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि उपमुख्यमंत्री बनने के बाद दीया कुमारी अब मौन साधे हैं। पर्यावरण प्रेमियों ने राज्यवर्धन राठौड़ से भी मुलाकात की थी। उन्होंने इसे बचाने के लिए तब उन्हें प्रपोजल बनाने का जिम्मा सौंपा था। पर्यावरण प्रेमियों ने जो प्रपोजल बनाकर उद्योग मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ को दिया। उसे अब दरकिनार कर दिया गया है। इस अभियान से जुड़े शौर्य गोयल बताते हैं कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को इस मामले से अवगत कराया था। उन्होंने इसे अभिज्ञता जताते हुए यह आश्वासन दिया कि वह इसके बारे में पता करके बात करेंगे। शौर्य का आरोप है कि इसके बाद उन्होंने कई बार सीएम से मिलने का प्रयास किया। लेकिन उनकी मुलाकात नहीं हो सकी
पीएम मोदी से करेंगे मुलाकात
डोल का बाढ़ जंगल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे पर्यावरण प्रेमियों का दावा है कि राज्य सरकार ने अगर उनकी बात नहीं मानी तो वह आगे पीएम मोदी तक अपनी बात को पहुंचाएंगे। केंद्र सरकार भी उनके मामले को सुलझाने का प्रयास नहीं करती है तो वह इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की शरण लेंगे। शौर्य गोयल बताते हैं कि डोल का बाढ़ जंगल को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन पर किसी एनजीओ या संस्था का दखल नहीं है। इस आंदोलन में जयपुर सहित देशभर के तमाम लोग भागीदार बनकर जंगल और पर्यावरण को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। जयपुर में चल रहे इस अनिश्चितकालीन धरने में आईआईटी, इंजीनियर, सीए, वकील जैसे प्रोफेशनल्स भी शामिल हैं। जंगल के बाहर लोगों ने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है।
डोल का बाढ़ में पेड़ों की कटाई जारी
राज्य सरकार ने प्रदर्शन को देखते हुए डोल का बाढ़ जंगल के बाहर बड़े स्तर पर पुलिस तैनात कर दी है। जंगल के भीतर जेसीबी और अन्य मशीनों से कटाई लगातार जारी है। इसके कारण यहां से पशु पक्षी अपना स्थान छोड़ने लग गए हैं। जंगल के बाहर प्रदर्शनकारी प्रदर्शन के लिए डटे हुए हैं। स्थानीय लोग प्रदर्शनकारियों को सहयोग कर रहे हैं। लोग उनके लिए खाने-पीने का सामान पहुंचा रहे हैं। प्रदर्शन में कई महिलाएं भी अपने बच्चों को साथ लेकर शामिल हो रही है।
शहर को कंक्रीट से होने से बचाएं
माकपा के जिला सचिव डॉ.संजय का कहना है कि सांगानेर का यह इलाका प्राकृतिक रूप से विकसित वन-क्षेत्र है। यहां बड़ी संख्या में दुर्लभ पेड़-पौधे, जड़ी बूटियां और वन्यजीव निवास करते हुए जयपुर की आबोहवा को बेहतर रखने में मददगार हो रहे हैं। जयपुर के नागरिकों और पर्यावरणविदों की मांग है कि इस प्राकृतिक संपदा की रक्षा की जाए और शहर को पूरा कंक्रीट जंगल में तब्दील होने से बचाया जाए।
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जयपुर ऑक्सीजोन | पर्यावरण आंदोलन | Jaipur
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