स्मृति शेष : विश्वेंद्र सिंह ने कहा था आप तो सौ साल जीएंगे और हो गया सच, 105 वर्ष की उम्र में गिरिराज प्रसाद तिवारी का निधन

राजस्थान के गांधीवादी नेता गिरिराज प्रसाद तिवारी का जीवन सादगी, जिंदादिली और संघर्ष का प्रतीक था। उन्होंने राजनीति में लंबा समय बिताया और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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Gyan Chand Patni
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गुलाब  बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार

रंग-गोरा, श्वेत दाढ़ी और तिस पर कभी रंगीन-चश्मा-भगवा कुर्ता एवं लुंगीनुमा पोशाक में तख्त पर लेटे हुए। बातचीत के दौरान हंसी ठहाकों से माहौल को खुशनुमा बनाने में माहिर राजस्थान के वयोवृद्ध राजनेता एवं राज्य विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष 105 वर्षीय गिरिराज प्रसाद तिवारी इस दुनिया से अलविदा हो गए।

संयोगवश, वयोवृद्ध गांधीवादी तिवारी ने महात्मा गांधी की 156वीं जयंती पर 2 अक्टूबर, 2025 की रात्रि पौने बारह बजे भरतपुर में सेवर स्थित अपने फार्म हाउस पर अंतिम श्वास ली। सादगी और जिंदादिली के प्रतीक तिवारी ने अपने जवान पुत्र के निधन और बेटी के विधवापन के दुःख को भी सहज भाव से झेला। इसी धैर्य के साथ उन्होंने अपने सामाजिक-राजनीतिक जीवन की शतकीय पारी को भी हिम्मत से पार किया। 
 
अगस्त, 2016 में पूर्व मंत्री हरिसिंह की भरतपुर में शोकसभा के पश्चात् पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वेन्द्र सिंह ने हंसी-मजाक में टिप्पणी की थी कि तिवारी जी ने यमराज से कहकर अपना नाम कटवा लिया है। अब तो ये सौ साल पूरे करके जाएंगे। तब तिवारी जी 96 साल के थे। उन्होंने जिंदादिली से एक दशक का जीवन और जोड़ लिया।    

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गांधीवादी नेता गिरिराज प्रसाद तिवारी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। Photograph: (फाइल फोटो)

पहली बार विधायक बने 

भरतपुर जिले के बयाना क्षेत्र के गांव बिडियारी में 5 दिसम्बर, 1920 को जन्मे गिरिराज प्रसाद तिवारी ने विधि स्नातक होकर भरतपुर में वकालत की। गरीबों के दुखदर्द और सामाजिक सरोकारों से जुड़े तिवारी ने सार्वजनिक जीवन के साथ राजनीति के क्षेत्र को अपनाया। उनके बड़े भाई अंगद राम शास्त्री जयपुर के आमेर-चौमूं विधानसभा क्षेत्र से 1952 में विधायक निर्वाचित हुए। बीस साल बाद तिवारी 1972 में बयाना से कांग्रेस टिकट पर विधायक बने। वर्ष 1981 से 84 तक वे भरतपुर के जिला प्रमुख रहे तथा 1985 में भरतपुर से विधायक निर्वाचित हुए।

संसदीय परम्पराओं को प्रदान की गरिमा 

गिरिराज प्रसाद तिवारी 29 मार्च, 1985 को राजस्थान विधानसभा के उपाध्यक्ष चुने गए। परिस्थितियों ऐसी बनीं कि उन्होंने 31 जनवरी, 1986 को अपने पद से त्यागपत्र दिया और उसी दिन सर्वसम्मति से विधानसभा के अध्यक्ष बनाए गए। वह 11 मार्च, 1990 तक इस पद पर रहे। अपने कार्यकाल के उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रति नीर-क्षीर व्यवहार, अपनी शालीनता, मिलनसारिता से विधायकों के हृदय में अपना स्थान बनाते हुए संसदीय परम्पराओं को गरिमा प्रदान की।

लिया राजनीति से संन्यास

विधानसभा अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात् अगले चुनाव में भरतपुर की जातीय राजनीति के दलदल के खेल में तिवारी जी को टिकट नहीं मिल सका। इससे खिन्न होकर उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का निश्चय किया। यद्यपि वे कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में सम्मिलित होते रहे। भरतपुर के गांधी पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित किए जाने से क्रोधित तिवारी जी फिर कभी उस पार्क में नहीं गए। यद्यपि नगर परिषद ने गांधी जी की नई प्रतिमा लगवा दी थी।

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भरतपुर के बिडियारी ग्राम में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरिराज प्रसाद तिवारी के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देते मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा।

एकाकी जीवन में रमते चले

चुनावी राजनीति से संन्यास के पश्चात पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरिराज प्रसाद तिवारी एकाकी जीवन में रमते चले गए।समय चक्र में श्वेत दाढ़ी और बालों से वे बाबाजी से बन गए। अपने निवास पर मिलने आने वालों से प्रेम भाव से मिलते हुए पुरानी स्मृतियों के खो जाते। सेवर के फार्म हाउस पर गुरुवार की देर रात गांधीवादी गिरिराज प्रसाद तिवारी का निधन हुआ। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने 3 अक्टूबर को बिडियारी गांव में तिवारी जी के पार्थिव शव पर पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित की। 

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