राजस्थान में विलुप्त हो रहे गोडावण को बचाने की पहल, जानिए क्या अपनाएंगे तरीके
राजस्थान के पक्षी गोडावण को बचाने के लिए कृत्रिम पहल शुरू की गई है। गोडावण के अंडों को घोंसले से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर कृत्रिम ऊष्मायन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है।
जैसलमेर जिले के डेजर्ट नेशनल पार्क में वन विभाग वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गोडावण (Great Indian Bustard) के अंडों को घोंसले से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर कृत्रिम ऊष्मायन की प्रक्रिया अपना रहा है। यह योजना अभी प्रारंभिक चरण में है। अब तक केवल दो अंडों पर ही यह तकनीक प्रयोग के तौर पर लागू की गई है। यदि यह प्रक्रिया सफल रहती है, तो आने वाले समय में इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा।
जेनेटिक पूल का आदान-प्रदान
अंडा प्रतिस्थापन तकनीक को तीन वैज्ञानिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाया जा रहा है। इनमें सबसे पहले अंडे को प्राकृतिक शिकारियों से बचाना है, ताकि अंडे का नाश होने से रोका जा सके। वहीं अंडों को संरक्षित कर कृत्रिम ऊष्मायन से चूजे तैयार करना और उनके माध्यम से प्रजाति की जेनेटिक विविधता को सुरक्षित करना है। तीसरा, कृत्रिम विधि से तैयार चूजों के माध्यम से जेनेटिक पूल का आदान-प्रदान संभव करना है।
अंतरराष्ट्रीय तकनीक का राजस्थान में प्रयोग
यह प्रक्रिया वैज्ञानिक और संरक्षित पद्धति से की जा रही है। जब किसी घोंसले में अंडा दिखता है, तो प्रशिक्षित टीम की ओर से उसे निकालकर वहां एक डमी अंडा रख दिया जाता है। इससे मादा गोडावण घोंसले को छोड़ती नहीं है और उसका प्राकृतिक व्यवहार बना रहता है। अंडे को रामदेवरा स्थित संरक्षण व ब्रीडिंग सेंटर भेजा जाता है, जहां उन्हें नियंत्रित तापमान में सेने की व्यवस्था की जाती है। इस अंतरराष्ट्रीय तकनीक का अब राजस्थान में भी प्रयोग हो रहा है।
मॉडल सफल होने पर किया जाएगा विस्तार
अभी तक केवल दो अंडों पर ही यह प्रक्रिया अपनाई गई है। दोनों मामलों में परिणामों पर तकनीकी निगरानी की जा रही है। फिलहाल यह पूरा प्रयास एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह है। यदि यह मॉडल सफल होता है, तो अगले वर्षों में इसे विस्तार से लागू किया जाएगा। विभाग का उद्देश्य है कि इस प्रयोग के जरिए गोडावण की प्रजनन दर में सुधार हो और उनके चूजे सुरक्षित रूप से तैयार होकर प्राकृतिक पर्यावास में वापस छोड़े जा सकें।
जैसलमेर में गोडावण की संख्या लगातार घट रही है। खुले घोंसलों में अंडे दिए जाने के कारण वे अक्सर सियार, लोमड़ी, कुत्ते जैसे शिकारियों का शिकार हो जाते हैं। यही वजह है कि लंबे समय से इनकी प्रजनन दर चिंताजनक बनी हुई है। अब अंडों को प्रारंभिक अवस्था में सुरक्षित करने की पहल से इन पक्षियों की प्रजातियों को बचाया जा सकेगा। इससे प्रजनन दर गिरावट को रोका जा सकेगा।
FAQ
1. गोडावण के अंडों को बचाने के लिए क्या तकनीक इस्तेमाल की जा रही है?
गोडावण के अंडों को बचाने के लिए कृत्रिम ऊष्मायन (Artificial Incubation) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अंडों को घोंसले से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर कृत्रिम रूप से सेने की प्रक्रिया की जा रही है।
2. इस प्रक्रिया से गोडावण की प्रजनन दर में क्या सुधार हो सकता है?
इस प्रक्रिया से गोडावण की प्रजनन दर में सुधार की संभावना है, क्योंकि अंडों को प्राकृतिक शिकारियों से बचाकर सुरक्षित रखा जा रहा है और कृत्रिम ऊष्मायन से चूजों को स्वस्थ रूप से तैयार किया जा रहा है।
3. क्या यह प्रयोग सफल हो सकता है?
यह प्रयोग फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। यदि यह सफल होता है, तो इसे राजस्थान में व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा, जिससे गोडावण की प्रजनन दर में सुधार हो सकता है।