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नटनी का बारा में पानी का विभाजन। Photograph: (the sootr)
सुनील जैन
राजस्थान में अलवर की लाइफलाइन माने जाने वाले दो ऐतिहासिक बांध जयसमंद और सिलिसेढ़ अतिक्रमण की भेंट चढ़े हुए हैं। हालत यह है कि अच्छी बारिश के बावजूद इन दोनों बांधों में पानी नहीं के बराबर आ रहा है। अलवर शहर सहित आसपास की जनता की प्यास बुझाने के लिए ये बांध बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अतिक्रमण के कारण इन बांधों का गला घुट रहा है।
सबसे ज्यादा हालत खराब जयसमंद बांध की है। जयसमंद बांध में पानी दो जगह से आता है। एक रूपारेल नदी से और दूसरा सिलीसेढ़ बांध के ऊपरा चलने के बाद, लेकिन रास्ते में बनी होटलें और नदियां व नालों पर हुए कच्चे-पक्के अतिक्रमण के कारण जयसमंद तक पानी ही नहीं पहुंच पा रहा है। जयसमंद बांध 2009 में भरा था। उसके बाद इसमें कभी भी इतना पानी नहीं आया। इस बांध का भूजल स्तर भी लगातार नीचे होता जा रहा है।
रूपारेल का पानी भी जयसमंद तक नहीं
रूपारेल नदी का पानी भी इस बांध में नहीं जा पा रहा है। सरिस्का की वादियों से निकलने वाली ये नदी अलवर-जयपुर रोड पर अलवर शहर से 23 किलोमीटर दूर नटनी के बारा पर विभाजक के रूप में बहती है। इस नदी के विभाजन के एक हिस्से का पानी भरतपुर जाता है, जबकि दूसरे हिस्से का पानी जयसमंद बांध में आता है। रूपारेल नदी सरिस्का के थानागाजी तहसील के टोडी जोधावास के पास उदयनाथ की पहाड़ी से निकलती है, जो भरतपुर के रास्ते यूपी की यमुना नदी की सहायक नदी भी कही जाती है।
क्या है विभाजन
नटनी का बारा रियायतकालीन जगह है, जो सरिस्का की सुंदर वादियों में स्थित है। यह अलवर की रूपारेल नदी पर बना जल विभाजक स्थान (पानी का बंटवारा) है। जानकारी के अनुसार, 1924 में अलवर महाराज जय सिंह और भरतपुर महाराज कृष्ण सिंह के बीच जल समझौता हुआ था। उस वक्त नटनी का बारा का निर्माण करवाया गया था। इस जल विभाजक स्थल (नटनी का बारा) से रूपारेल नदी का 55 प्रतिशत पानी भरतपुर और 45 प्रतिशत पानी अलवर के जयसमंद बांध में आता है।
सौ साल से सुध नहीं
100 साल बाद भी इस नटनी के बारा की सुध नहीं ली गई। नदी में बहकर आने वाली मिट्टी और इस रूपारेल नदी के किनारे बने होटल और पक्के निर्माण के कारण जयसमंद में पानी वाले रास्ते पूरी तरह अवरुद्ध हो गए हैं। मानसून में इस नदी में कई बार पानी की आवक होती है, लेकिन अलवर के हिस्से का पानी भी भरतपुर चला जाता है। जयसमंद बांध में पानी आए इसके लिए गत भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के दौरान दोनों जिलों के विधायकों की एक कमेटी भी बनाई गई, जो इस समझौते को लेकर समीक्षा करती, लेकिन वह कमेटी भी कागजों तक ही सीमित रही।
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पक्के निर्माण हटाए, फिर पानी की आवक नहीं
जयसमंद बांध में पानी की आवक को लेकर पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान अलवर शहर से भाजपा विधायक संजय शर्मा ने नटनी के बारा में प्रदर्शन किया था। उसके बाद दोबारा जीतने पर सिलीसेढ़ से पानी की आवक जयसमंद बांध तक लाने के लिए बहाव क्षेत्र में बने पक्के निर्माण को हटाया गया, लेकिन समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकला। जयसमंद बांध में पानी लाने का स्थाई समाधान नटनी का बारा में जल विभाजन स्थल से जयसमंद बांध तक के रस्ते को दुरुस्त करने से ही निकल सकता है। इस बांध में पानी आने के बाद जब यह लगातार भरा रहेगा, तो जल स्तर भी बढ़ेगा और अलवर शहर को जल आपूर्ति भी हो सकेगी।
बांध के लिए होटल बन रहे बाधक
सिलीसेढ़ बांध के इर्दगिर्द कई होटल और रिजॉर्ट बन गए, जो पूरी तरह सिलीसेढ़ के किनारे पर ही बने है। इनके खिलाफ एक्शन के कई बार प्रयास हुए, लेकिन यह दो कदम भी नहीं चल पाई। बांध के चारों तरफ पहाड़ियां हैं, लेकिन इन होटलों के कारण बांध में पानी भी कम आता है।
बोरिंग को लेकर सिलीसेढ़ सुर्खियों में
राजस्थान की भजनलाल सरकार ने अलवर विधायक और वन मंत्री संजय शर्मा की अनुशंसा पर अलवर शहर की पानी की समस्या को दूर करने के लिए इस बांध के पेटे में 35 बोरिंग लगाने की पेयजल योजना को मंजूरी दी थी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इसका वर्चुअल शिलान्यास भी कर दिया, लेकिन इसके विरोध में ग्रामीण सड़क पर उतर आए। 20 दिन तक आंदोलन किया। बोरिंग नहीं होने दी। मशीनों को वापस लाना पड़ा। जिस इलाके में ये बांध है, वो राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता टीकाराम जूली का विधानसभा क्षेत्र है।
कांग्रेस बोरिंग के खिलाफ
वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा का कहना है कि बोरिंग तो वही कराई जाएगी। इस बारे में ग्रामीणों से बात की जा रही है, लेकिन अंदरखाने प्रतिपक्ष नेता जूली इन बोरिंग के खिलाफ हैं। वह भी इस बात को कहते हैं कि विजय मंदिर और जयसमंद बांध में लगी बोरिंग के कारण दोनों बांधों की दुर्दशा हो गई है। अब सिलीसेढ़ बांध में भी बोरिंग लगने के बाद यहां भी यह बांध सूख जाएगा और किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या पैदा होगी।
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