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Photograph: (The Sootr)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण आयोग (राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग राजनीतिक प्रतिनिधित्व आयोग) का काम राजस्थान में अभी तक पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है। विभिन्न राज्यों में यह आयोग अपनी रिपोर्ट सौंप चुका है, लेकिन राजस्थान में इसका सर्वे तक शुरू नहीं हो पाया है। राज्य सरकार की ओर से आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का दर्जा व मानदेय तय नहीं किया गया है, जिससे आयोग के कार्यों में देरी हो रही है। आयोग के तीन महीने के कार्यकाल का समय भी खत्म हो चुका है, और अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी है। ऐसे में राजस्थान में पंचायतों व शहरी निकायों के चुनाव दिसम्बर तक होने पर संशय के बादल छाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे स्वतंत्र आयोग गठन के आदेश
दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन करने का आदेश दिया था। इसके बाद पिछले साल महाधिवक्ता ने राजस्थान सरकार को एक स्वतंत्र आयोग गठित करने की सलाह दी थी। हालांकि, सरकार ने इस साल मई में आयोग का गठन किया। इस आयोग को गठन के बाद भी कोई स्पष्टता नहीं दी गई थी, और दो सप्ताह से अधिक समय तक इसके अध्यक्ष और सदस्य भी अपनी स्थिति से अनजान रहे।
बजट की कमी और संसाधनों का अभाव
राजस्थान सरकार ने आयोग को न तो बजट (Budget) प्रदान किया और न ही उसे आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए। आयोग ने बार-बार अधिकारियों को पत्र लिखकर अध्यक्ष और सदस्यों का मानदेय तय करने की मांग की, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया। नतीजतन, आयोग के कामकाज में कोई प्रगति नहीं हो पाई। आयोग को कार्य करने के लिए कार्यालय में आवश्यक सुविधाएं जैसे कुर्सी-टेबल, स्टेशनरी आदि भी उपलब्ध नहीं हैं।
राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) राजनीतिक प्रतिनिधित्व आयोगआयोग का उद्देश्य
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राजस्थान सरकार ने नजरअंदाज किया सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में स्पष्ट किया था कि ओबीसी आरक्षण के निर्धारण के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए, जो पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों में सीटों का निर्धारण कर सके। यह आदेश काफी समय पहले आया था, लेकिन राजस्थान सरकार ने इसे नजरअंदाज किया। पूर्व सरकार और वर्तमान सरकार ने भी इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया, और आयोग को बजट व संसाधनों के बिना काम करने के लिए छोड़ दिया।
संसाधनों के बिना कैसे काम करे आयोग
राज्य सरकार के मंत्रियों ने हाल ही में मीडिया में कहा कि पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों के परिसीमन (Delimitation) का काम जल्द पूरा कर लिया जाएगा और दिसम्बर तक चुनाव करवा लिए जाएंगे। लेकिन वास्तविकता यह है कि आयोग को ओबीसी सीटों का निर्धारण करने के लिए सर्वे तक शुरू नहीं हो पाया है। सर्वे के लिए आयोग ने फॉर्मेट तैयार किया है, लेकिन सुविधाएं नहीं मिलने से कार्य शुरू ही नहीं हो पाया है। आयोग अध्यक्ष मदनलाल भाटी ने भी इस स्थिति पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि संसाधनों के बिना काम में तेजी कैसे लाई जा सकती है।
आयोग के लिए संसाधनों का टोटा
आयोग को इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान (Indira Gandhi Panchayati Raj Institute) परिसर में कार्यालय तो मिल गया है, लेकिन कुर्सी, टेबल, स्टेशनरी और बजट जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं। दूसरे राज्यों के आयोगों के काम का अध्ययन करने के लिए आयोग को यात्रा भी करनी थी, लेकिन बजट की कमी और अधिकारियों का दर्जा तय न होने के कारण यह कार्य भी स्थगित कर दिया गया।
पंचायतों और शहरी निकायों में चुनाव की स्थिति
राज्य सरकार ने हाल ही में कहा था कि पंचायतों और शहरी निकायों के चुनाव दिसम्बर तक होंगे, और परिसीमन का काम पूरा किया जाएगा। लेकिन आयोग के बिना ओबीसी आरक्षण का निर्धारण कैसे होगा, यह अभी भी सवालों के घेरे में है। आयोग ने अब तक केवल फॉर्मेट तय किया है, लेकिन कामकाजी संसाधन की कमी के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका।
राजस्थान सरकार की जिम्मेदारी
राजस्थान सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करे और आयोग को सभी जरूरी संसाधन प्रदान करें। राज्य के मंत्रियों को यह समझना होगा कि ओबीसी आरक्षण का मामला संवेदनशील है, और इसमें कोई भी देरी न्याय व्यवस्था पर सवाल उठा सकती है।
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