राजस्थान में फिर बदला इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना का नाम, अब पद्माक्षी पुरस्कार, स्कूटी मिलना बंद, पुरस्कार राशि भी घटाई

राजस्थान सरकार की बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना में हुई विवादास्पद कटौती: इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार से 'पद्माक्षी पुरस्कार' तक का सफर और छात्राओं को झटका

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Nitin Kumar Bhal
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Padmakshi Puraskar Yojna Rajasthan

Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rajasthan) की बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए वर्षों पहले शुरू की गई ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना’ एक ऐसी योजना बन कर रह गई है, जो अपने नाम से लेकर पुरस्कार राशि और छात्राओं को मिलने वाली सुविधाओं तक के बदलाव की वजह से विवादों में है। यह योजना जो कभी राज्य की मेधावी बालिकाओं को सम्मानित कर उन्हें शिक्षा की प्रेरणा देती थी, अब किरकिरी का पात्र बन रही है। राजस्थान की भाजपानीत मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकार (Bhajanlal Sharma) ने इसका नाम बदल कर एकबार फिर से ‘पद्माक्षी पुरस्कार योजना’ कर दिया है। साथ ही पुरस्कार राशि में भारी कटौती की गई है, वहीं छात्राओं को मिलने वाली स्कूटी योजना को भी खत्म कर दिया गया है।

नाम से लेकर पुरस्कार तक बदला

2010-11 में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा शुरू की गई ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना’ का उद्देश्य था मेधावी बालिकाओं को आर्थिक सहायता और सम्मान देकर उनके भविष्य को संवारना।

  • मूल योजना में 1200 से 1300 छात्राओं को नकद पुरस्कार और कक्षा 12 की टॉप छात्राओं को स्कूटी दी जाती थी।

  • योजना का आयोजन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जन्मदिन 19 नवंबर को हर जिले में समारोहों के माध्यम से होता था।

  • 2017-18 में वसुंधरा राजे सरकार ने इस योजना का नाम ‘पद्माक्षी पुरस्कार’ कर दिया।

  • 2019 में पुनः गहलोत सरकार ने इसे ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार’ नाम से पुनः शुरू किया।

  • अब फिर से तीसरी बार नाम ‘पद्माक्षी पुरस्कार’ किया गया है, लेकिन इस बार पुरस्कार की राशि और सुविधाओं में बड़ी कटौती हुई।

पुरस्कार राशि में कटौती करना क्या सही है?

पुरस्कार राशि में 15 से 25 हजार रुपए तक की भारी कटौती हुई है। नई राशि के अनुसार :

लाभ/सुविधा पहले (इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार) अब (पद्माक्षी पुरस्कार)
पुरस्कार राशि (8वीं) ₹40,000 ₹25,000
पुरस्कार राशि (10वीं) ₹75,000 ₹50,000
पुरस्कार राशि (12वीं) ₹1,00,000 ₹75,000
स्कूटी उपलब्ध समाप्त

पहले प्रोत्साहन के तौर पर मिलने वाली स्कूटी अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है। यह कदम खासकर उन छात्राओं के लिए निराशाजनक है, जो शिक्षा की चुनौतियों के बीच सामाजिक प्रोत्साहन से उनका मनोबल बढ़ाते हैं।

पुरस्कार में यह कटौती क्यों निराशाजनक है?

स्कूटी जैसी सुविधाएं बालिकाओं को न केवल शिक्षा में प्रोत्साहन देती थीं, बल्कि उनकी सामाजिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता में भी बढ़ोतरी करती थीं। राजस्थान जैसी प्रदेश में, जहां लड़कियों की शिक्षा अभी भी अनेक सामाजिक बाधाओं का सामना करती है, सरकार द्वारा इस प्रोत्साहन को खत्म करना निराशाजनक है। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब केंद्र और राज्य सरकारें लगातार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं को बढ़ावा देने की बात करती हैं। लेकिन जमीन पर यह नीति के विरुद्ध प्रतीत होता है।

पद्माक्षी पुरस्कार योजना किन छात्राओं के लिए है?

यह योजना सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, अल्पसंख्यक, बीपीएल और दिव्यांग छात्राओं को ही दी जाएगी।

  • इसमें माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 8, 10 और 12वीं की छात्राएं।

  • संस्कृत शिक्षा विभाग की प्रवेशिका परीक्षा के उत्तीर्ण छात्राप्राप्त छात्राएं।

  • स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल की 12वीं विज्ञान वर्ग की छात्राएं।

राजस्थान सरकार की नीतिगत दुविधा

सरकार ने इस योजना का संचालन राजस्थान बालिका शिक्षा फाउंडेशन को दिया है, लेकिन इतनी कटौती से सवाल उठता है कि क्या सरकार वास्तव में बालिकाओं की शिक्षा और विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं? नाम बदलना और पुरस्कार राशि घटाना केवल दिखावे की कोशिश नहीं, बल्कि शिक्षा को लेकर सरकार की प्राथमिकताएं बदलने का संकेत है।

बालिका शिक्षा पर पड़ेगा नकारात्मक प्रभाव

शिक्षा विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता इस बदलाव को नकारात्मक मानते हैं। उनका कहना है कि पुरस्कार राशि कम करने और स्कूटी योजना खत्म करने से छात्राओं के मनोबल पर असर पड़ सकता है और पढ़ाई से उनका जुड़ाव कमजोर हो सकता है। यह भी चिंता का विषय है कि इससे ग्रामीण और पिछड़े इलाकों की छात्राएं सबसे अधिक प्रभावित होंगी। आर्थिक प्रोत्साहन के बिना दूरदराज के इलाकों की छात्राओं के लिए उच्च शिक्षा अधूरा सपना बन सकता है।

 

राजस्थान में बालिका शिक्षा को लेकर क्या चुनौतियां हैं?

शिक्षा में असमानता : ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में लड़कियों के लिए शिक्षा की पहुंच बहुत सीमित है। खासकर दूर-दराज के गांवों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों को कम मौके मिलते हैं।

पारंपरिक सोच और सामाजिक दबाव : बहुत से परिवारों में यह धारणा है कि लड़कियों का मुख्य काम घर का काम करना है, न कि पढ़ाई करना। यही सोच बालिका शिक्षा में बाधा डालती है।

शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी : कई छोटे कस्बों और गांवों में लड़कियों की शिक्षा के महत्व को लेकर जागरूकता की कमी है। माता-पिता को यह समझ में नहीं आता कि उनकी बेटियों को पढ़ाई क्यों जरूरी है।

सुरक्षा की चिंता : खासकर ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के लिए स्कूल जाने में सुरक्षा एक बड़ी समस्या बन जाती है। लंबी दूरी और परिवहन की कमी के कारण माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने में हिचकिचाते हैं।

स्कूलों की कमी : आदिवासी और पिछड़े इलाकों में स्कूलों की कमी है। कई बार स्कूल बहुत दूर होते हैं, जिससे माता-पिता अपनी बेटियों को भेजने में संकोच करते हैं।

आवश्यक सुविधाओं का अभाव : कई स्कूलों में लड़कियों के लिए बुनियादी सुविधाएं, जैसे कि अलग शौचालय, पानी और सुरक्षा की व्यवस्था नहीं होती, जो उनकी शिक्षा में और भी बाधा डालती हैं।

शिक्षक और संसाधनों की कमी : कई स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होते, और शिक्षा की गुणवत्ता भी कमजोर होती है। लड़कियों को जरूरी अध्ययन सामग्री जैसे किताबें भी पर्याप्त नहीं मिल पातीं।

स्वास्थ्य और पोषण संबंधी समस्याएं : कई लड़कियां कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण स्कूल नहीं जा पातीं। खासकर, जब घर की स्थिति खराब होती है या परिवार शिक्षित नहीं होता है, तब वे घर के कामों में ही व्यस्त रहती हैं।

बाल विवाह : राजस्थान में बाल विवाह की दर अब भी बहुत ज्यादा है। एक बार शादी होने के बाद लड़कियों को अपनी पढ़ाई जारी रखने का कोई अवसर नहीं मिलता, जो बालिका शिक्षा के लिए एक बड़ा रोड़ा है।

सरकारी योजनाओं का असर सीमित : हालांकि सरकार द्वारा कई योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित ही दिखाई देता है। योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन न होने के कारण उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।

क्या सरकार बदल सकती है अपनी नीति?

अभी सवाल बना हुआ है कि राजस्थान सरकार क्या इस योजना पर पुनर्विचार करेगी? क्या फिर से छात्राओं को स्कूटी जैसी सुविधाएं दी जाएंगी? क्या पुरस्कार राशि को बढ़ाकर बालकाओं को पूरा सम्मान दिया जाएगा? ये सवाल केवल छात्राओं के नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहन ही आगे बढ़ाने का मूल आधार होता है।

यह करे सरकार

बार-बार नाम बदलने, पुरस्कार राशि में कटौती करने और स्कूटी योजना को खत्म करने से यह पहल कहीं खोती नजर आ रही है। सरकार को चाहिए कि सिर्फ नाम बदलने की बजाय वास्तविकता में शिक्षा को संवारे और बालिकाओं के लिए प्रेरणादायक वातावरण तैयार करे।

 

FAQ

राजस्थान की इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना क्या है?
यह योजना मेधावी बालिकाओं को पुरस्कार देने के लिए राज­स्थान सरकार द्वारा शुरू की गई थी।
भजनलाल शर्मा सरकार ने इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना में क्या बदलाव किए हैं?
योजना का नाम बदलकर पद्माक्षी किया गया, पुरस्कार राशि कम की गई और स्कूटी की सुविधा बंद कर दी गई है।
पद्माक्षी पुरस्कार राशि में कटौती कितनी हुई है?
8वीं, 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए 15 से 25 हजार रुपये तक की कटौती की गई है।
राजस्थान में पद्माक्षी पुरस्कार से स्कूटी योजना क्यों खत्म की गई?
आधिकारिक तौर पर कारण स्पष्ट नहीं, लेकिन बजट और नीति बदलाव के तहत इसे खत्म किया गया है।
कौन-सी छात्राएं पद्माक्षी पुरस्कार योजना से लाभान्वित हो सकती हैं?
सामान्य, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, बीपीएल, दिव्यांग और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की छात्राएं।

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