राजस्थान में किताब पर सियासी बवाल! ढाई करोड़ रुपए बहेंगे पानी में

राजस्थान बोर्ड की किताब 'आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत' पर विवाद, शिक्षा मंत्री ने फैसला लिया कि यह किताबें नहीं पढ़ाई जाएंगी। इसे लेकर सरकार और विपक्ष में ठन गई है।

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Nitin Kumar Bhal
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Book Controversy in Rajasthan

Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rajasthan) के शिक्षा विभाग ने 'आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत' नामक किताब (Book Controversy in Rajasthan) के 2025 संस्करण को पढ़ाने पर रोक लगा दी है। इसे लेकर राजस्थान में सियासी बवाल शुरू हो गया है। सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर शब्दों के बाण चला रहे हैं।  यह किताबों का संस्करण करीब 2.50 करोड़ रुपए की लागत से 4.90 लाख किताबों में छापा गया था। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर किताबों की लागत बेकार हो जाती है, तो भी उन्हें पढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उनका कहना था, "बेकार जाएंगे तो चले जाएंगे पैसे, जहर थोड़े ही खाएंगे," यानी गलत जानकारियां बच्चों को नहीं दी जाएंगी। 

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कांग्रेस और सरकार के बीच सियासी आरोप-प्रत्यारोप

इस फैसले पर कांग्रेस ने जमकर हमला बोला है (राजस्थान में किताब पर सियासी बवाल)। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार इस कदम से शिक्षा व्यवस्था में आरएसएस (RSS) की विचारधारा थोपने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व शिक्षामंत्री गोविंदसिंह डोटासरा (Govind Singh Dotasara) ने सवाल उठाया कि नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह जैसे महान नेताओं के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। उनका कहना था कि इन किताबों में इन नेताओं के योगदान को सही तरीके से बताया गया था।

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शिक्षामंत्री मदन दिलावर (Madan Dilawar) ने स्पष्ट किया कि किताबों में कांग्रेसी नेताओं का गुणगान इसी साल उनकी नजर में आया, इसलिए इन किताबों को पढ़ाने का फैसला लिया गया। उन्होंने कहा, "जो लोग धारा 370 को समाप्त करने और अयोध्या में राम मंदिर के रास्ते को प्रशस्त करने वाली शख्सियतों का सम्मान नहीं करते, वे बच्चों को इतिहास की सही जानकारी नहीं दे रहे हैं।"

ढाई करोड़ रुपयों पर बहेगा पानी

पाठ्यपुस्तक मंडल के अधिकारियों के अनुसार, इस किताब के 4.90 लाख संस्करण की लागत लगभग ढाई करोड़ रुपये है। हालांकि, अब इन किताबों को पढ़ाने पर रोक लगने से किताबों की लागत बेकार हो जाएगी।

काम को पूरी ईमानदारी से किया

इस मामले में पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति के कन्वीनर प्रोफेसर बीएम शर्मा ने कहा कि उन्होंने इस काम को पूरी ईमानदारी से किया है और अब वे इस विवाद में शामिल नहीं होना चाहते।

जानें क्या हैं किताब पर विवाद के मुख्य बिंदु

  • किताब में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के बारे में 15 से ज्यादा तस्वीरें हैं, लेकिन पीएम मोदी का कोई फोटो नहीं है।
  • पुस्तक के संयोजक के प्राक्कथन में 80% हिस्सा राजीव गांधी के योगदान पर है।
  • किताब में अन्य कांग्रेसी नेताओं जैसे सोनिया गांधी और अशोक गहलोत की तस्वीरें हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य प्रधानमंत्रियों का योगदान नहीं दिखाया गया है।

 

जानें इस मामले में क्या बोले पूर्व सीएम गहलोत

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक अहलोत ने एक्स पर लिखा कि राजस्थान सरकार द्वारा "आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत" किताबों के पढ़ाने पर रोक लगाने का फैसला हास्यास्पद है। यह तथ्य है कि आजादी के बाद सबसे ज्यादा सरकारें कांग्रेस की रहीं और इस देश को ऐतिहासिक ऊंचाइयों तक ले जाने का श्रेय कांग्रेस सरकारों एवं प्रधानमंत्रियों को ही मिलेगा। भाजपा सरकार इस सच्चाई को छिपा नहीं सकती। कांग्रेस के शासन में वैज्ञानिकों ने चंद्रयान तक बनाया और इंजिनियरों ने बड़े-बड़े कारखाने, बांध, संस्थान बनाए। हमारे महान नेताओं इन्दिरा गांधी एवं राजीव गांधी ने इस देश के लिए अपनी जान तक दे दी। क्या भाजपा सरकार इन तथ्यों को भी बदल सकती है? 2.50 करोड़ रुपये की किताबों को व्यर्थ करने से अच्छा है कि यदि वो NDA शासन के बारे में पढ़ाना चाहते हैं तो स्कूलों में उनका योगदान बताते हुए स्कूलों में अतिरिक्त पृष्ट छपवाकर भेज दें परन्तु किताबों को रद्दी बनाकर जनता के पैसे को खराब करना कैसे उचित ठहराया जा सकता है?

बड़ा सवाल: क्या जिस पार्टी की सरकार है बच्चे सिर्फ उसके नेताओं के बारे में पढ़ेंगे?

यह सवाल बिल्कुल जायज़ है। अगर बच्चों को केवल एक पार्टी के नेताओं या विचारधाराओं के बारे में पढ़ने को मिलेगा, तो इससे शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को विविध दृष्टिकोणों से परिचित कराना और उन्हें आलोचनात्मक सोच के लिए प्रेरित करना होता है, न कि किसी एक विचारधारा या पार्टी के नेताओं के प्रति पक्षपाती रवैया अपनाना। अगर कोई किताब एक विशेष पार्टी या विचारधारा के पक्ष में ज्यादा जानकारी देती है और दूसरी विचारधाराओं को नजरअंदाज करती है, तो यह छात्रों के लिए सही नहीं होगा। बच्चों को यह समझने का अवसर मिलना चाहिए कि देश के इतिहास में विभिन्न नेताओं का योगदान रहा है, चाहे वह किसी भी पार्टी से हों। इस तरह की किताबों में सभी प्रमुख नेताओं के योगदान का संतुलित रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को किसी एक पक्ष को समझने में दिक्कत न हो और वे स्वतंत्र रूप से सोचने और विचार करने की क्षमता विकसित कर सकें। छात्रों को विविध दृष्टिकोण से जानकारी मिलनी चाहिए, ताकि वे किसी भी मुद्दे को समझने के लिए पूरी तरह से सशक्त और सचेत हो सकें।


FAQ

1. राजस्थान बोर्ड की किताब 'आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत' पर विवाद क्यों हुआ?
राजस्थान सरकार ने 'आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत' नामक किताब को पढ़ाने पर रोक लगा दी है, क्योंकि उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के योगदान को कमतर आंका गया है। वहीं, विपक्ष का कहना है कि किताब पर रोक लगाना आरएसएस (RSS) की विचारधारा को फैलाने का प्रयास है।
2. क्या राजस्थान सरकार ने इस किताब को वापस मंगवाने का आदेश दिया है?
हाँ, राजस्थान सरकार ने इस किताब के 2025 संस्करण को पढ़ाने पर रोक लगा दी है। इसके बाद शिक्षा विभाग ने इन किताबों को पढ़ाने के लिए कोई अनुमति नहीं दी है।
3. क्या इस किताब में नेहरू और गांधी परिवार के योगदान को सही तरीके से बताया गया था?
कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इस किताब में नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह जैसे महान नेताओं के योगदान को उचित स्थान दिया गया था। हालांकि, राजस्थान सरकार ने इसे शिक्षा में भ्रामक जानकारी फैलाने के रूप में देखा है।

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