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राजस्थान के जयपुर में स्थित रामगढ़ बांध क्षेत्र में मंगलवार को ड्रोन के माध्यम से कृत्रिम बारिश का प्रयोग शुरू किया जाएगा। यह प्रयोग देश में पहली बार हो रहा है, क्योंकि अब तक कृत्रिम बारिश के लिए प्लेन की मदद ली जाती रही है। कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा इस कार्यक्रम की शुरुआत मंगलवार को दोपहर 2 बजे करेंगे।
पहले क्यों टला था प्रयोग
इस प्रयोग की शुरुआत पहले 31 जुलाई को होनी थी, लेकिन उस समय भारी बारिश की चेतावनी के कारण इसे टाल दिया गया था। अब यह प्रयोग रामगढ़ बांध में किया जा रहा है। इस प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों की टीम कई दिनों से जयपुर में स्थित है और ड्रोन से कृत्रिम बारिश का परीक्षण कर रही है। इस प्रयोग के मौके पर एक बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित किया गया है, जिसे देखने के लिए आसपास के लोग भी बुलाए गए हैं।
मंजूरी और तैयारियां
रामगढ़ बांध पर ड्रोन से कृत्रिम बारिश के प्रयोग के लिए केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों ने मंजूरी दे दी है। कृषि विभाग और मौसम विभाग ने पहले ही अपनी मंजूरी दे दी थी। इसके बाद जिला प्रशासन और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने भी इस प्रयोग के लिए अपनी मंजूरी दी है।
60 क्लाउड सीडिंग टेस्ट ड्राइव
इस प्रयोग में अमेरिका और बेंगलुरु की एक टेक्नोलॉजी कंपनी, जेन एक्स एआई, कृषि विभाग के साथ मिलकर 60 क्लाउड सीडिंग टेस्ट ड्राइव कराएगी। इस परियोजना के तहत ड्रोन के माध्यम से कृत्रिम बारिश करने का प्रयास किया जाएगा। अब तक प्लेन से ही क्लाउड सीडिंग करवाई जाती रही है, लेकिन ड्रोन से यह पहला प्रयोग होगा। इस प्रयोग का दायरा छोटे इलाके तक सीमित रहेगा, जबकि आमतौर पर बड़े इलाकों में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता था।
प्रयोग का फायदा क्या
रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश का प्रयोग सफल रहा, तो राजस्थान के विभिन्न इलाकों में इसका बड़ा फायदा हो सकता है। राज्य के कई इलाके मानसूनी बादल होने के बावजूद सूखे रहते हैं। इस तकनीक से इन इलाकों में कृत्रिम बारिश कराकर फसलों को सूखने से बचाया जा सकता है।
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है
कृत्रिम बारिश क्लाउड सीडिंग के माध्यम से करवाई जाती है। खास तरह के रसायन बादलों में छोड़े जाते हैं। इन रसायन के कण बादलों में मिलकर पानी की छोटी-छोटी बूंदों का निर्माण करते हैं, जो धीरे-धीरे भारी होकर बारिश के रूप में गिरती हैं।
बादलों में नमी का होना क्यों जरूरी
कृत्रिम बारिश के लिए यह जरूरी है कि बादलों में पर्याप्त नमी हो। यदि बादलों में नमी नहीं है, तो रसायन छिड़कने के बावजूद बारिश नहीं हो पाती। इसका उदाहरण चित्तौड़गढ़ के भैसुंदा बांध पर दो साल पहले हुआ था, जहां 10 करोड़ की लागत से कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया गया था, लेकिन बारिश नहीं हुई थी।
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