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Photograph: (the sootr)
Kota. राजस्थान के किसानों पर सोयाबीन की फसल को लेकर संकट हैं। पहले बेमौसम बारिश ने उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाया और अब सरकारी खरीद के सख्त नियम उनकी स्थिति को और भी जटिल बना रहे हैं। सोयाबीन उत्पादक किसानों को उम्मीद थी कि उन्हें समर्थन मूल्य पर राहत मिलेगी। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है।
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समर्थन मूल्य और मंडी कीमतों का अंतर
सरकार ने सोयाबीन का समर्थन मूल्य 5,300 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। लेकिन मंडियों में किसानों को अपनी फसल मजबूरी में 4,000 से 4,200 रुपए प्रति क्विंटल में बेचनी पड़ रही है। कोटा संभाग में सोयाबीन की सरकारी खरीद के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया 18 नवंबर से शुरू हुई। लेकिन अब तक एक भी बोरी की खरीद नहीं हो सकी है।
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बेमौसम बारिश से फसल पर धब्बे
बेमौसम बारिश के कारण सोयाबीन की फसल में दाग-धब्बे आ गए हैं। इस वजह से गुणवत्ता मानक पूरे नहीं हो पा रहे हैं और कई राजस्थान के किसानों को अपनी फसल को सरकारी खरीद केंद्रों से वापस भेज दिया जा रहा है। खरीद केंद्रों पर नापास होने के बाद राजस्थान के किसानों को मजबूरी में अपनी फसल को खुली नीलामी में बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं। जिससे उन्हें 800 से 900 रुपए प्रति क्विंटल तक का नुकसान हो रहा है।
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नियमों में शिथिलता की उम्मीद
राजस्थान के किसानों का कहना है कि सरकार को प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए नियमों में शिथिलता देनी चाहिए। ताकि उन्हें राहत मिल सके। एशिया की बड़ी मंडियों में शामिल कोटा की भामाशाह अनाज मंडी में पहुंचे किसानों की यही पीड़ा है कि उन्हें मेहनत के मुताबिक उचित दाम नहीं मिल रहे। जिससे उनकी उम्मीदें टूट रही हैं।
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सरकार दे किसानों को राहत
किसानों का यह भी कहना है कि जब प्राकृतिक आपदाएं होती हैं, तो सरकार को न सिर्फ राहत प्रदान करनी चाहिए। बल्कि नियमों में लचीलापन भी लाना चाहिए। ताकि वे अपनी फसलों को सही मूल्य पर बेच सकें। इस समय किसानों के लिए राहत की आवश्यकता है और सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
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मुख्य बिंदु
बेमौसम बारिश: राजस्थान के किसानों को बेमौसम बारिश और फसल की गुणवत्ता खराब होने की वजह से सोयाबीन की कीमतें कम मिल रही हैं। सरकार ने समर्थन मूल्य तो निर्धारित किया है। लेकिन मंडियों में फसल की बिक्री कम कीमतों पर हो रही है।
पंजीकरण प्रक्रिया: सरकार ने 18 नवंबर से सोयाबीन की सरकारी खरीद के लिए पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन अब तक एक भी बोरी की खरीद नहीं हो पाई है। गुणवत्ता मानकों पर खरी न उतरने के कारण किसानों को वापस भेज दिया जा रहा है।
किसानों के विकल्प: किसानों के पास मुख्य रूप से दो विकल्प हैं। वे अपनी फसल सरकारी खरीद केंद्रों पर बेच सकते हैं या फिर खुली नीलामी में बेच सकते हैं। हालांकि नीलामी में भी उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
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