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Jaipur.राजस्थान में नि:शुल्क दवा योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबों तक गुणवत्तापूर्ण दवाइयां पहुंचाना था। लेकिन दवाइयों की पैकिंग और निर्माण में गुणवत्ता के स्तर पर काफी कमी दिखाई दे रही है। सरकारी अस्पतालों में भेजी जा रही दवाइयों में कई मानकों की अनदेखी हो रही है।
दवा निर्माता कंपनियां सरकारी सप्लाई के लिए अलग और निजी बाजार के लिए अलग बैच बना रही हैं, जिससे दवाइयों की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दवा दी जाती है, लेकिन इन दवाइयों की खराब पैकिंग के कारण मरीजों को खतरा बना रहता है। इय मुद्दे पर प्रमुख दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका ने वरिष्ठ पत्रकार विकास जैन की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
कमजोर प्लास्टिक की बोतलें
राजस्थान में सरकारी दवाइयों की पैकिंग के लिए इस्तेमाल किए जा रहे प्लास्टिक की बोतलें बेहद कमजोर हैं। ये बोतलें इतनी हल्की होती हैं कि हल्के दबाव में ही मुड़ जाती हैं और चिपक जाती हैं। यह पैकिंग राष्ट्रीय औषधि मानकों के खिलाफ है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी पैकिंग में दवाइयों की गुणवत्ता तो बनी रहती है, लेकिन वितरण के दौरान उनका सुरक्षित रहना मुश्किल होता है।
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पिचकी होती हैं सिरप की बोतलें
बच्चों के श्वांस संबंधी सिरप, जैसे कि सैल्बुटामोल, को ऐसी बोतलों में पैक किया जा रहा है जो पिचकी हुई होती हैं। यह पैकिंग दवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है और मरीज के लिए खतरनाक हो सकती है। इस प्रकार की पैकिंग से दवाइयों का संरक्षण ठीक से नहीं हो पाता और कई बार ये एक्सपायरी तारीख से पहले ही खराब हो जाती हैं।
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निर्माण लागत को कम करने की कोशिश
नि:शुल्क दवा योजना के तहत सप्लाई की जा रही दवाइयां निजी बाजार में बिकने वाली दवाइयों से दस गुना सस्ती होती हैं। राजस्थान के एक दवा कारोबारी का कहना है कि दवाइयों की गुणवत्ता पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन दवाओं की कम कीमत के कारण कंपनियां निर्माण लागत घटाने के प्रयास करती हैं, जिसमें पैकिंग को घटिया करना भी शामिल है। यह निश्चित रूप से स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन सकता है।
मुफ्त जांच और दवा योजना राजस्थान की प्रमुख योजनाओं में शामिल है, लेकिन सरकारी अस्पतालों की दवाइयों की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।