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Jodhpur. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा की याचिका को खारिज कर दिया है। उन्होंने राजस्थान सरकार द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति (प्रॉसिक्यूशन सैंक्शन) रद्द करने की मांग की थी, जो गेहूं के कथित दुरुपयोग से जुड़े एक घोटाले से संबंधित थी। मामले में न्यायाधीश सुनील बेनीवाल की अदालत ने यह फैसला सुनाया और कहा कि अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय न तो मनमाना था और न ही अवैध।
क्या था पूरा मामला?
निर्मला मीणा पहले जोधपुर में जिला रसद अधिकारी (डीएसओ) के पद पर तैनात थीं। उन पर 2017 में गेहूं के दुरुपयोग का आरोप लगा था। इस मामले में उन्हें और उनके निर्देश पर अतिरिक्त सप्लाई करने के कारण लाखों रुपए का घोटाला करने का आरोप था। 2 नवंबर 2017 को एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
चार्जशीट, क्लीनचिट और दूसरी एफआईआर
जब यह मामला सामने आया, तो पहले विभाग ने मीणा के खिलाफ चार्जशीट जारी की थी, लेकिन जांच अधिकारी ने यह कहा कि उन पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हो पाए। बाद में, मामले में एक और एफआईआर दर्ज की गई, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 109 के तहत थी। हालांकि, इसमें अभियोजन स्वीकृति के बिना चार्जशीट दाखिल की गई। 27 जनवरी 2025 को सरकार ने अभियोजन स्वीकृति दे दी। यह मामला तब का है जब वह जोधपुर जिला रसद अधिकारी थीं।
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अभियोजन स्वीकृति सात साल बाद
पूर्व IAS अधिकारी निर्मला मीणा के वकीलों ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस मामले में एफआईआर 2017 में दर्ज की गई थी और चार्जशीट 2018 में दाखिल की गई थी। उनके अनुसार, अभियोजन स्वीकृति सात साल बाद दी गई, जो पूरी तरह से मनमानी थी। इसके अलावा, अभियोजन स्वीकृति देने से पहले की गई अस्वीकृति पर विचार किए बिना नया आदेश पारित किया गया था।
सरकार का पक्ष और अदालत का फैसला
सरकार की तरफ से तर्क दिया गया कि पूर्व IAS अधिकारी निर्मला मीणा के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और उन्होंने अपनी पद के दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए के गेहूं का गबन किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला दिया कि अभियोजन स्वीकृति से इनकार का कोई औपचारिक आदेश नहीं था। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई ठोस आधार नहीं था, इसलिए इसे खारिज कर दिया।
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कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु
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