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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान में कई नेताओं के खिलाफ अदालतों की सख्ती बढ़ने के कारण उनके लिए समस्याएं और बढ़ गई हैं। अदालतों ने विभिन्न मामलों में नेताओं के खिलाफ राहत देने से इनकार कर दिया है। इन मामलों में भ्रष्टाचार, दंगे भड़काने, और चुनावी धांधली जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इस सख्ती ने राज्य के नेताओं के लिए बुरे दिन ला दिए हैं। खासकर पूर्व मंत्री महेश जोशी (Former Minister Mahesh Joshi) और आरएलपी के दो विधायकों (Two MLAs of RLP) के मामलों में अदालत ने सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है।
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भ्रष्टाचार और दंगे भड़काने पर सख्ती
राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मंत्री महेश जोशी (Former Minister Mahesh Joshi) के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में राहत देने से इनकार किया। यह मामला उन पर लगे आरोपों के तहत दर्ज किया गया था। महेश जोशी पर आरोप था कि उन्होंने भ्रष्ट तरीके से राज्य के विकास कार्यों में गड़बड़ी की थी। इसके अलावा, आरएलपी के तत्कालीन दो विधायकों (Two RLP Former MLAs) पर भी भीड़ उकसाकर दंगा भड़काने (Inciting Riot by Provoking Crowd) का आरोप था। इन मामलों में सरकार ने केस वापस लेने की कोशिश की थी, लेकिन उच्च न्यायालयों ने इस पर सख्त रुख अपनाया है।
विधायक पर मार्कशीट में हेराफेरी का आरोप
इसी बीच, राजस्थान के एक विधायक (MLA) पर आरोप है कि उन्होंने अपनी 10वीं कक्षा की मार्कशीट (10th Marksheets) में हेराफेरी (Forgery) कर जिला परिषद चुनाव (Zila Parishad Election) में भाग लिया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी विधायक या अच्छे आचरण का आधार केवल इस बात का कारण नहीं हो सकता कि केस वापस लिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक पदों और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग से जुड़े अपराधों में यदि व्यक्ति की छवि अच्छी है, तो भी सरकार को केस वापस लेने का अधिकार नहीं है।
इन मामलों में अदालतों की सख्ती ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना जरूरी है। किसी भी सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह कानून को अपने हित में मोड़े। इससे लोकतंत्र की मजबूती और जनता के विश्वास (Public Trust) को भी बढ़ावा मिलता है।
पूर्व मंत्री महेश जोशी की जमानत याचिका खारिज
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राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री महेश जोशी (Mahesh Joshi) की जमानत याचिका पर रिहाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मंत्री होने के नाते उनकी जिम्मेदारी अधिक थी और उन्हें इस मामले में राहत नहीं दी जा सकती। यह फैसला राज्य सरकार और उनके समर्थकों के लिए एक झटका था। राज्य सरकार ने इस मामले में महेश जोशी को राजनीतिक दबाव (Political Pressure) के तहत राहत देने की कोशिश की थी, लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि आरोपी का पद और उसकी जिम्मेदारी किसी भी न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकते।
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लोकतंत्र में न्याय का महत्व क्या है?राजस्थान में चल रहे इन मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून और न्याय से कोई भी ऊपर नहीं है। चाहे वह कोई मंत्री हो, विधायक हो, या आम नागरिक हो, सबके खिलाफ कानून समान रूप से काम करता है। उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि किसी भी भ्रष्टाचार, दंगे या चुनावी धांधली के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाएगी और यदि राज्य सरकार कोई गलत कदम उठाती है, तो अदालतों द्वारा उस पर भी कड़ी नजर रखी जाएगी। | |
आरएलपी के दो पूर्व विधायकों पर केस की स्थिति क्या है?
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सुप्रीम कोर्ट ने आरएलपी के तत्कालीन दो विधायकों (Two Former MLAs of RLP) पूर्व विधायक पुखराज गर्ग व पूर्व विधायक इंदिरा बावरी के खिलाफ दर्ज केस को लेकर राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा। यह केस भीड़ उकसाकर दंगा भड़काने (Inciting Riot by Provoking Crowd) के आरोप में था, जिसमें दोनों विधायकों के खिलाफ जांच जारी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य सरकार अब भी इन मामलों में केस वापस लेना चाहती है। राज्य सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलने के कारण कोर्ट ने इस पर अपना रुख सख्त किया।
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विधायक जयकृष्ण पटेल के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति
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राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी (Vasudev Devnani) ने भारत आदिवासी पार्टी के बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल (MLA Jaykrishna Patel) के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में अभियोजन स्वीकृति दी। विधायक पटेल (Patel) पर 20 लाख रुपये रिश्वत लेने (Taking Bribe of 20 Lakh Rupees) का आरोप था। इस मामले में विधायक के चचेरे भाई विजय पटेल (Cousin Brother Vijay Patel) को भी गिरफ्तार किया गया था, और विधायक के निजी सचिव रोहित मीणा (Rohit Meena) को भी गिरफ्तार किया गया था, जो पैसे से भरा बैग लेकर भाग गए थे।
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विधायक हरलाल सहारण के खिलाफ कार्रवाई
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राजस्थान हाईकोर्ट ने चूरू विधायक हरलाल सहारण (MLA Harlal Saharan) के खिलाफ 10वीं कक्षा की मार्कशीट में हेराफेरी (Forgery in 10th Marksheets) के मामले में राज्य सरकार का निर्णय रद्द कर दिया। राज्य सरकार ने यह केस वापस लेने का प्रयास किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया और टिप्पणी की कि सार्वजनिक पद (Public Office) और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग (Misuse of Public Funds) से जुड़े अपराधों में अच्छे आचरण के आधार पर केस वापस नहीं लिया जा सकता।
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