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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर में स्थित जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय (Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University) से जुड़े निजी कॉलेजों में व्याप्त अनियमितता ने भ्रष्टाचार मुक्ति और पारदर्शिता के सरकारी दावों की पोल खोल कर रख दी है। संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध प्राइवेट कॉलेजों में उन्हें तय सीटों से ज्यादा विद्यार्थियों को परीक्षा दिलवा कर फर्जी तरीके से डिग्रियां बांटे जाने का मामला सामने आया है।
हाल ही में यह मामला उजागर हुआ कि निजी संस्कृत कॉलेजों ने तय सीटों से अधिक छात्रों को परीक्षा में बैठाया और अवैध रूप से डिग्रियाँ जारी कीं। यह गंभीर आरोप विश्वविद्यालय पर लगे हैं, जहां विवि की सिंडिकेट मीटिंग में इस बात को स्पष्ट किया गया कि नियमों का उल्लंघन हुआ था, लेकिन इसे स्वीकार कर लिया गया।
संस्कृत विवि में दे दी अवैध परीक्षार्थियों को मान्यता
जनवरी 2024 में कुलपति ने स्पष्ट रूप से उन परीक्षार्थियों को अवैध माना था, जिन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी। इसके बावजूद, इन परीक्षार्थियों से जुर्माना वसूलकर उन्हें वैध घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। इस निर्णय से यह सवाल उठता है कि जब कोई विद्यार्थी अवैध था, तो उसे जुर्माना देकर वैध कैसे घोषित किया जा सकता है?
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अवैध परीक्षार्थी को वैध घोषित करने पर उठ रहे सवाल
अगर हम विश्वविद्यालय की नियमावली पर गौर करें, तो इसमें कोई ऐसा प्रावधान नहीं है, जिससे किसी अवैध परीक्षार्थी को वैध घोषित किया जा सके। इस प्रक्रिया को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या अब सरकारी विश्वविद्यालय की डिग्री की कीमत केवल ₹5000 प्रति छात्र रह गई है?
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, कुलगुरु प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि सिंडिकेट मीटिंग में रजिस्ट्रार और उन्होंने स्पष्ट किया कि जुर्माना लगाने को लेकर कोई नियम नहीं है। इसके बावजूद सिंडीकेट के बाकी सदस्यों ने बहुमत से इस निर्णय को मंजूर कर दिया। इसके बाद कॉलेजों से जुर्माना वसूलने का आदेश निकाला गया।
बड़े पैमाने पर चल रहा अवैध डिग्री देने का खेल
वित्त विभाग द्वारा की गई जांच में यह सामने आया कि वर्ष 2019 से 2023 के बीच 1040 परीक्षार्थियों को पीजीडीसीए और पीजीडीवाईटी डिप्लोमा परीक्षा में सम्मिलित किया गया। इस प्रकार, अवैध डिग्री देने का खेल एक बड़े पैमाने पर चल रहा था। अब विश्वविद्यालय जुर्माना लगाकर अवैध डिग्री को वैध बना रहा है। इस मामले में कुल ₹52 लाख का जुर्माना बनता है, लेकिन अब तक केवल ₹20 लाख ही वसूले जा सके हैं।
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जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय
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राजभवन में शिकायत और जांच समिति की रिपोर्ट
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, शिकायत राजभवन में की गई। इसके बाद एक जांच समिति गठित की गई, जिसने इस बात को स्पष्ट किया कि निजी कॉलेजों और विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के बीच सांठगांठ से यह फर्जीवाड़ा संभव हो सका। यह दर्शाता है कि इस प्रक्रिया में उच्चस्तरीय अधिकारियों की संलिप्तता हो सकती है।
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दोषी कॉलेजों पर ₹5000 प्रति छात्र के हिसाब से जुर्माना
अप्रैल 2024 में सिंडिकेट मीटिंग में दोषी कॉलेजों पर ₹5000 प्रति छात्र के हिसाब से जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा गया। हालांकि, कुलगुरु प्रो. रामसेवक दुबे और रजिस्ट्रार ने इस प्रक्रिया का विरोध किया, लेकिन अन्य सदस्यों ने बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। इसके बाद विभाग ने भी इस मामले का निस्तारण जुर्माना लगाकर करने की सलाह दी।
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