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राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) के चेयरमैन पद पर डीजीपी यूआर साहू की नियुक्ति की गई है। यह पद दस महीने से खाली था। राज्य सरकार ने साहू को चेयरमैन बना कर बड़ा सियासी कदम उठाया है। यह तीसरी बार है जब किसी आईपीएस अधिकारी को इस पद पर नियुक्त किया गया है। साहू की नियुक्ति आयोग की छवि सुधारने की कोशिश मानी जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत सरकार ने भी इसी रास्ते पर चलने का प्रयास किया था। विपक्ष और कुछ मंत्री इस नियुक्ति पर सवाल उठा रहे हैं। साहू की प्रधानमंत्री मोदी से नजदीकी भी चर्चा का विषय है। उन्होंने पारदर्शिता से परीक्षाएं कराने का वादा किया है। सवाल उठ रहे हैं कि नियुक्ति में दस महीने की देरी क्यों हुई। साहू इस पद पर एक साल तक रह सकते हैं, जो एक बड़ी चुनौती है।
भजनलाल सरकार का बड़ा फैसला
राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) जो पेपर लीक और भर्ती घोटालों के आरोपों से घिरा रहा है, अब नए चेयरमैन के अधीन है। मंगलवार को राज्य सरकार ने डीजीपी यूआर साहू को यह जिम्मेदारी दी। यह पद पिछले दस महीने से खाली था, और नियुक्ति पर सवाल उठ रहे थे। इसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की बड़ी प्रशासनिक रणनीति या राजनीतिक मजबूरी के रूप में देखा जा रहा है। यह तीसरी बार है जब किसी आईपीएस अधिकारी को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
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भर्तियों में गड़बड़ी की थी शिकायतें
ओडिशा मूल के 1988 बैच के आईपीएस यूआर साहू को फरवरी 2024 में डीजीपी नियुक्त किया गया था। उनकी छवि सख्त, ईमानदार और अनुशासन स्थापित करने वाले अधिकारी की रही है। उन्होंने खुफिया विभाग में लंबे समय तक काम किया, जिससे उनकी प्रशासनिक फैसलों पर गहरी पकड़ मानी जाती है।
सूत्रों के अनुसार, साहू की नियुक्ति में पीएम मोदी से उनकी निकटता और इंटेलिजेंस में दक्षता महत्वपूर्ण कारण रहे हैं। बीकानेर में प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के दौरान साहू उनके साथ विभिन्न स्थानों पर नजर आए थे, जिससे राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज़ हो गई कि उन्हें किसी बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है।
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गहलोत सरकार की राह पर चला भजनलाल मंत्रिमंडल
साहू की नियुक्ति को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। गहलोत ने पहले डॉ. भूपेंद्र यादव और फिर संजय क्षोत्रिय जैसे रिटायर्ड आईपीएस को चेयरमैन बनाया था। इन नियुक्तियों का उद्देश्य ओबीसी और प्रशासनिक पृष्ठभूमि को साधना था। उसी दिशा में भजनलाल सरकार ने भी एक प्रतिष्ठित आईपीएस अधिकारी पर भरोसा जताया है। हालांकि, आरपीएससी में पारदर्शिता को लेकर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं।
आयोग की साख को सुधारने की चुनौती
आरपीएससी पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और पेपर लीक के कारण विवादों में रहा है। एसआई भर्ती परीक्षा और शिक्षक चयन परीक्षा में अभ्यर्थियों ने विरोध किया है। हाल ही में मंत्री किरोड़ी लाल मीणा और सांसद हनुमान बेनीवाल ने आयोग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। किरोड़ी लाल ने तीन चेयरमैनों पर पैसे लेकर नियुक्तियां करने का दावा किया। इस बीच साहू के सामने सबसे बड़ी चुनौती आयोग की विश्वसनीयता को पुनः स्थापित करना होगी।
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नियुक्ति में देरी पर विपक्ष का वार
अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद यह सवाल उठ रहा है कि सरकार ने इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति में दस महीने क्यों लगाए। भाजपा सरकार को बने 18 महीने हो चुके हैं, लेकिन आरपीएससी अध्यक्ष का पद अगस्त 2024 से खाली था। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भाजपा सरकार न तो चेयरमैन की नियुक्ति कर पाई, न सदस्य पद भर सकी और न ही गिरफ्तार सदस्य को बर्खास्त कर पाई। इससे यह संदेश गया कि सरकार आयोग की समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही।
एक साल का कार्यकाल
यूआर साहू महज एक साल तक इस पद पर रह पाएंगे। आयोग चेयरमैन के लिए अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष है। साहू 20 जून 1964 को जन्मे हैं। इस कारण उनके पास सुधार के लिए सीमित समय है। उन्होंने कहा है कि वे पारदर्शिता और निष्ठा से आयोग का संचालन करेंगे। एसआईटी, एजेंसियों और पुलिस का समन्वय बना रहेगा। भविष्य की सभी परीक्षाएं निष्पक्ष तरीके से करवाई जाएंगी।
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