सुप्रीम कोर्ट ने 53 वर्षीय दोषी को भेजा बाल सुधार गृह, राजस्थान हाई कोर्ट का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के रेप केस में राजस्थान हाई कोर्ट की ओर से आरोपी को सुनाई गई 5 साल की सजा को पलटते हुए उसे बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया। आरोपी का दावा था कि वह अपराध के समय किशोर था।

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Amit Baijnath Garg
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Supreme Court of India

Photograph: (the sootr)

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सुप्रीम कोर्ट ने 1988 में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा दी गई 5 साल की जेल सजा को पलट दिया। यह केस करीब 37 साल पुराना था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला था कि आरोपी अपराध के समय किशोर था, इस कारण उसे बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया गया।

क्या था मामला?

1988 में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को लेकर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। आरोपी ने दावा किया था कि वह अपराध के समय किशोर था। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे किशोर मानते हुए सजा को बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, आरोपी को जेल भेजने की बजाय बाल सुधार गृह भेजा जाएगा, जहां उसे किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) के तहत दंडित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह शामिल थे, ने कहा कि नाबालिग होने की दलील किसी भी अदालत में पेश की जा सकती है। इस प्रकार, आरोपी की किशोर होने की दलील को मंजूरी देते हुए उसे किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया गया। अदालत ने इस मामले में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 और 16 के अनुसार आदेश पारित करने के लिए मामले को बोर्ड के समक्ष भेजा और आरोपी को 15 सितंबर को बोर्ड के सामने पेश होने का निर्देश दिया।

राजस्थान हाई कोर्ट ने सुनाई थी 5 साल की सजा

राजस्थान उच्च न्यायालय ने जुलाई, 2024 में मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई दोषसिद्धि और 5 साल की सजा को बरकरार रखा था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलटते हुए कहा कि वह आरोपी किशोर था, इस कारण उच्च न्यायालय का फैसला सही नहीं था। इस मामले में आरोपी की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया।

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किशोर न्याय अधिनियम: एक महत्वपूर्ण कानून

किशोर न्याय अधिनियम, 2000 (Juvenile Justice Act, 2000) के तहत, 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को किशोर माना जाता है और उनके खिलाफ अपराध के मामले में नरम दंड देने का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम का पूरी तरह से पालन करते हुए आरोपी को बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया। इस प्रकार, आरोपी को अब सुधारात्मक प्रक्रिया से गुजरने का अवसर मिलेगा।

किशोरों के अधिकारों की रक्षा में अदालत की भूमिका

भारत में किशोरों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें सुधारात्मक मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए अदालतें विशेष ध्यान देती हैं। किशोर न्याय अधिनियम के तहत, ऐसे मामलों में न्यायिक प्रणाली को आरोपी की उम्र और अपराध के समय की परिस्थितियों का सही आकलन करना होता है। बलात्कार और किशोर अपराध पर विशेष सुनवाई भी की जाती है।

FAQ

1. सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था?
सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के बलात्कार मामले में आरोपी को किशोर मानते हुए उसकी जेल सजा को पलटते हुए उसे बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया।
2. किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) क्या है और यह कैसे काम करता है?
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को किशोर माना जाता है और उनके खिलाफ अपराध के मामलों में नरम दंड का प्रावधान है। यह कानून बालकों की सुरक्षा और संरक्षण के अधिकारों को सुनिश्चित करता है।
3. राजस्थान उच्च न्यायालय का क्या फैसला था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे क्यों पलट दिया?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने आरोपी को 5 साल की सजा दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे किशोर मानते हुए सजा को पलट दिया और उसे बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया।

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