होहिं सगुन सुभ बिबिधि बिधि जाजहिं गगन निसान।
पुर नर नारि सनाध करि भवन चले भगवान॥
प्राचीन काल से ही भारत में मन्दिर निर्माण की परम्परा रही है। गुप्तकालीन सांची मन्दिर से लेकर राम मन्दिर तक की यात्रा अविस्मरणीय रहेगी। राम मंदिर का इतिहास भक्ति, बलिदान, संघर्ष और प्रतीक्षा की गाथा है, जो 500 साल पुरानी है। यह प्रतीक्षा करोड़ों भारतीयों की पौराणिक,आध्यात्मिक और ऐतिहासिक खोज का केन्द्र रही है।
1855 से 2019 तक का सफर
राम मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई 1855 से चली आ रही है। 1949 में विवादित ढांचे में भगवान राम की खोज से शुरू हुई। लगभग 1980 से विभिन्न संगठन के जागरण से सन् 1992 में विवादित ढांचा गिराया जाना आदि, इतना संघर्ष प्रयागराज हाईकोर्ट का फैसला और फिर सुप्रीम कोर्ट तक की यात्रा के बाद वह सुखद स्वर्णिम अवसर 2019 में आया।
राम मंदिर की भव्यता
मंदिर अपनी भव्यता के साथ जहां पूर्व से पश्चिम 380 फीट लम्बाई, 250 फीट चैड़ाई, 161 फीट की भव्य ऊंचाई जो 3 स्तरों तक फैली है। मंदिर मजबूत 392 अलंकरित नक्काशीदार स्तंभों द्वारा समर्थित है। तो वहीं 44 अलंकृत दरवाजों से सजा हुआ है। मन्दिर के भूतल पर भगवान राम 5 वर्ष के बालक के रूप में विराजित होंगे तो वहीं प्रथम तल पर राम दरबार होगा। मंदिर में अलग-अलग नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा-प्रार्थना व कीर्तन मंडप जिनका सांस्कृतिक धार्मिक दोनों महत्व हैं। मंदिर के परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां अन्नपूर्णा, गणपति व भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का निर्माण होगा। वहीं मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप भी विद्यमान होगा। राम मंदिर वर्तमान समय में भारतीय वास्तुकला का अद्भुत नमूना है जो प्राचीनता और सांस्कृतिक महत्व को संजोने के साथ-साथ आधुनिकता को भी समेटे हुए हैं।
राम मंदिर ने संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधा
राम मन्दिर केवल आस्था का केन्द्र बिन्दु नहीं है बल्कि यह विविधता में एकता का सजीव चित्रण है। सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य करता है। मन्दिर निर्माण ने यह संदेश प्रस्तुत किया है कि भारत की अखण्डता एकता व समरसता इसी में निहित है। जिस प्रकार श्रीराम ने अपने लीलाकाल में प्रत्येक प्राणी को एकता के सूत्र में बांधा था, उसी प्रकार कलयुग में राम मन्दिर के निर्माण ने हिन्दू समाज को बांधा है।
नागर शैली में राम मंदिर
मंदिर नागर शैली में है जो उत्तर भारत में सभी मंदिर को देखने पर प्रतीत होता है तो वहीं मंदिर का परकोटा द्रविण शैली में है जो दक्षिण भारत के मंदिरों में देखने को मिलता है। राम मंदिर निर्माण में देश के सभी राज्यों या क्षेत्र का योगदान सहयोग देखने को मिलता है। जैसे राजस्थान से पत्थर तो पश्चिम बंगाल से कारीगर, महाराष्ट्र से लकड़ी तो उसकी नक्काशी हैदराबाद, बुन्देलखण्ड से स्टोन डस्ट, मूर्तियों का निर्माण उड़ीसा के कारीगरों का और ग्रेनाइट कर्नाटक का है। इस प्रकार उथल-पुथल में राममन्दिर ने एक सेतु का काम किया है। भारत की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ समरसता का प्रतीक श्री राम मंदिर, सहायक मंदिरों और महत्वपूर्ण तथ्यों की श्रृंखला से परे अपनी श्रृद्धा का विस्तार करता है। परिसर में प्रस्तावित मंदिरों में महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, निषादराज, माता शबरी व ऋषि पत्नी अहिल्या जो सभी भारतीयों हिन्दू में समरसता का भाव पैदा करेगा।
देशवासियों के लिए आस्था और खुशहाली का केंद्र बनेगा राम मंदिर
गुप्त, चोल, चन्देल, चालुक्य ,राजपूत सहित लगभग सभी हिन्दू शासक विशाल एवं भव्य मन्दिरों का निर्माण अपने राज्य में करवाते थे, क्योंकि मन्दिर आस्था व समरसता को जीवंत तो रखते ही थे, साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में भी बहुत बड़ा योगदान देते थे। यह सतत विकास के परिचायक रहे हैं। मन्दिर वर्तमान के अलावा भविष्य में भी अर्थव्यवस्था के केंद्र बिन्दु बने रहेंगे। मन्दिरों के होने से पर्यटन बढ़ता है। पर्यटन से क्षेत्रीय लोगों की बेरोजगारी और निर्धनता दूर होती है। वर्तमान में भारतीय मन्दिरों का जीडीपी में बहुत बड़ा योगदान है। राम मन्दिर निर्माण ने सिर्फ एक जाति और एक समुदाय को लाभ नहीं पहुंचाएगा। यह सम्पूर्ण देशवासियों के लिए आस्था व खुशहाली का केन्द्र बिन्दु बनेगा।
राष्ट्र उदय का जीवंत प्रमाण होगा राम मंदिर
मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा से 500 वर्ष के संघर्ष, प्रतीक्षा के परिणाम से राष्ट्र के गौरव का पुनः स्थापना हो रहा है, जिसमें भारतीय संस्कृति, सभ्यता व समाज के लिए गौरवशाली संघर्ष का सुन्दर प्रतिबिंब होगा, जो हमारी आने वाली पीढ़ी को धर्म के साथ राष्ट्र की एकता, अखण्डता व संस्कृति के पुनःस्थापना में सहायक व प्रेरणा साबित होगा। यह केवल मंदिर ही नहीं सभी हिन्दुओं के संघर्ष के सूरज का प्रतीक होगा, जिससे अब फिर से हजारों वर्ष भारत के धर्म, संस्कृति व समाज का स्थापना करने के साथ पुनःजागरण करेगा। यही तो विश्व गुरु बनने का पहला कदम होगा, यह मात्र मन्दिर नहीं राष्ट्र उदय का जीवंत प्रमाण होगा।
( रास बिहारी शरण पाण्डेय स्वत्रंत लेखक और रिसर्च स्कॉलर्स हैं, ये उनके निजी विचार हैं )