संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर की अयोध्यापुरी कॉलोनी, 1-2 नहीं 27 साल से वैध होने की लड़ाई यहां के प्लॉटधारक लड़ रहे हैं। अब इनका सब्र जवाब देने लगा है और इसी लेटलतीफी से परेशान होकर प्लॉटधारकों ने रविवार को सड़कों पर उतरकर कॉलोनी में रैली निकाली। हाथों में तख्तियां लेकर अपना विरोध जताया।
भूमाफिया अभी भी सिस्टम पर हावी
प्लॉटधारकों का कहना है कि भूमाफिया अभी भी सिस्टम पर हावी हैं और नगर निगम से लेकर आईडीए, प्रशासन सभी इस कॉलोनी के मुद्दे सुलझाने की जगह उलझाने में ज्यादा लगे हैं। आईडीए इसकी एनओसी जारी कर चुका है, लेकिन फिर उसे होल्ड कर दिया है और जो साल 2001 में संकल्प पास हुआ था, फिर से उसे पास करने की बात कही जा रही है। नगर निगम लगातार ऐसे विवादित पत्राचार कर रहा है कि जिससे वो समस्या सुलझाने की जगह उलझा ज्यादा रहे हैं। उधर प्रशासन अलग जांच कर रहा है, जिसमें सहकारिता विभाग भी शामिल है।
1-2 नहीं 27 साल लंबी है लड़ाई
अयोध्यापुरी कॉलोनी में करीब 400 प्लॉटधारक हैं। आज ये जमीन इंदौर के पॉश एरिया में आ चुकी है। ये कॉलोनी निजी जमीन पर है और यहां 370 से ज्यादा के पास रजिस्ट्री है। विकास कार्य भी कॉलोनी के लोगों ने खुद की राशि से कराया है। लेकिन निगम में 2 बार पहले फाइल वैध करने की चली, लेकिन दोनों बार इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब तीसरी बार वैध करने की फाइल चली है, जिसमें भूमाफिया सुरेंद्र संघवी के बेटे प्रतीक और भूमाफिया दीपक मद्दा, मुकेश खत्री के डायरेक्टर वाली कंपनी सिम्लपेक्स मेगा फाइनेंस ने निगम में आपत्ति लगा दी गई और कहा गया कि इसमें 4 एकड़ जमीन हमारी है। इसके बाद निगम ने भी इस आपत्ति को मानते हुए विविध विभागों से जवाब मांगना शुरू कर दिया। इसके चलते वैध होने की कहानी फिर अटक गई। इसके साथ ही निगम ने अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के नाम पर इसकी वैध होने की प्रक्रिया अटका दी है।
इसमें संघवी, मद्दा, सूदन हर कोई शामिल
इस कॉलोनी पर हर भूमाफिया की नजर रही है। रणवीर सिंह सूदन ने सुरेंद्र संघवी के बेटे प्रतीक और मद्दा, खत्री की कंपनी सिम्पलेक्स को जमीन बेची। इसमें जो सौदा हुआ, उसकी राशि भी संस्था के पास पूरी नहीं पहुंची, इसके चलते रजिस्ट्री वैध ही नहीं है। इस रजिस्ट्री को शून्य कराने की लड़ाई अलग से जिला कोर्ट में चल रही है।
माफिया अभियान में मुक्त कराई, फिर न्याय नहीं मिला
जनवरी-फरवरी 2021 में इस जमीन को भी भूमाफिया अभियान के दौरान मुक्त कराया गया और लोगों को उनके प्लॉट पर बाउंड्रीवॉल बनाकर सुरक्षित रखने की मंजूरी मिली। सुरेंद्र संघवी, प्रतीक संघवी, दीपक मद्दा, मुकेश खत्री, सूदन सभी पर एफआईआर भी हुई। लेकिन इसके बाद रहवासियों को न्याय नहीं मिला है।
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पीड़ित बोले लग रहा है कि सिस्टम हमारे साथ है ही नहीं
पीड़ितों ने बताया कि ऐसा लग रहा है कि सिस्टम और इसमें बैठे अधिकारी हमारे मुद्दे को सुलझाना ही नहीं चाहते हैं। साल 2001 में आईडीए से हमारी कॉलोनी को स्कीम से मुक्त करने का संकल्प पास हुआ था, फिर हमे कुछ महीने पहले NOC दी गई, लेकिन अब इसे ये कहकर होल्ड कर दिया कि शासन ने पुराने संकल्प को पास ही नहीं किया, तो फिर इतने 22 साल तक सरकार और अधिकारी कर क्या रहे थे ? अब फिर संकल्प भेजने की बात की जा रही है। हमारे प्लॉट की रजिस्ट्री है, लेकिन जिला प्रशासन, सहकारिता विभाग ने जांच बैठा दी है, जबकि कायदे से शिकायत कुछ प्लॉट को लेकर हुई थी, लेकिन जांच पूरी कॉलोनी की बैठा दी गई है। जो पूरे इंदौर में और किसी की नहीं की जा रही है। विकास काम पीड़ित अपनी राशि से कर चुके हैं, लेकिन नगर निगम वैध होने से पहले 10 तरह के पत्र चला रहा है और प्रक्रिया सरल करने की जगह जटिल कर रहा है। इसलिए हमे मजबूर होकर सड़कों पर उतरना पड़ा है। सीएम शिवराज सिंह चौहान की मंशा के बाद भी अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है।