नर्मदापुरम में इलीगल ट्रांसपोर्टेशन, सीहोर और रायसेन जिले की सीमा पर जाते ही कैसे अवैध रेत हो जाती है वैध

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Rahul Sharma
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नर्मदापुरम में इलीगल ट्रांसपोर्टेशन, सीहोर और रायसेन जिले की सीमा पर जाते ही कैसे अवैध रेत हो जाती है वैध

BHOPAL. रेत का अवैध खनन मध्यप्रदेश के लिए कोई नई बात नहीं है। रह—रहकर यह मुद्दा सुर्खियों में बना रहता है, पर द सूत्र अब जो खुलासा करने जा रहा है वह कारनामा दिन के उजाले में नहीं बल्कि रात के अंधेरे में हो रहा है। नेशनल हाईवे—46 (NH—46) पर बुदनी (गडरिया नाले) से इटारसी के बीच नर्मदापुरम से रेत का अवैध परिवहन (illegal transportation) हो रहा है। नर्मदापुरम से निकाली गई अवैध रेत सीहोर और रायसेन जिले की सीमा पर जाते ही वैध हो जाती है। द सूत्र के कैमरे में यह पूरा खेल कैप्चर हुआ। 





भारी बारिश और घुप्प अंधेरी रात के बीच कवरेज





द सूत्र की टीम इस पूरे खेल को उजागर करने के लिए 17 जुलाई की शाम 7 बजे भोपाल से निकली। NH—46 पर मौजूद नर्मदा ​ब्रिज से होते हुए रात 9.30 बजे नर्मदापुरम (होशंगाबाद) पहुंची। इसके बाद टीम ने भारी बारिश और घुप्प अंधेरी रात के बीच रात 10 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक इस पूरे खेल को उजागर करने कैमरे के साथ मौके पर मौजूद रही।   





रात 12 बजे के बाद शुरू होता है खेल





नर्मदापुरम का मालाखेड़ी चौक रेत लाने ले जाने के वाले डम्फरों का एक प्रमुख स्थान है। यहां मौजूद एक व्यक्ति ने रात 10 बजे द सूत्र को बताया कि डम्फरों से रेत को लाने ले जाने का असली खेल रात 12 बजे के बाद शुरू होता है। उन्होंने यह भी बताया कि नर्मदापुरम में कई परिवारों के आय का साधन रेत का खनन ही है। इस बीच एक अन्य लोकल्स से भी संपर्क किया गया, जो रेत के इस कारोबार से ही जुड़ा था। उसने बताया कि नर्मदापुरम में करीब 2 साल से रेत की कोई खदान स्वी​कृत नहीं की गई है, यानी यहां से ले जाने वाली रेत अवैध ही है, भले वह किसी घाट या किसी स्टॉक से ही क्यों न ली जा रही हो। सूत्र ने हमें यह भी बताया कि नर्मदापुरम के अलग—अलग घाटों से डम्फर रेत को भरकर NH—46 पर आते हैं और फिर यहां से सीहोर—रायसेन की ओर चले जाते हैं, जहां इनकी रायल्टी बना दी जाती है। जिसके बाद यह रेत वैध हो जाती है। 





सच जानने 3 डम्फरों का किया पीछा 





द सूत्र ने सच जानने के लिए रात 12.30 बजे से रात 2 बजे तक अलग—अलग टाइम पर तीन डम्फरों का पीछा किया और जो सच निकलकर सामने आया वह बेहद चौकानें वाला है। डम्फर क्रमांक MP04—ZF8791, MP04—HE8972 और RJ09—GD3642 देर रात NH—46 पर नर्मदापुरम जिले की सीमा से सीहोर जिले की सीमा की ओर रेत ले जाते हुए मिले। ताज्जूब की बात यह है कि जिस जगह पर द सूत्र को ये डम्फर मिले उस जगह से 70 किमी दूर इन डम्फरों द्वारा रेत भरने की जगह रायल्टी में रायसेन जिले के सुल्तानपुर तहसील के गांव बम्होरी के आसपास की बताई गई है। इन डम्फरों की रायल्टी रात 2.35 से 2.45 के बीच बनी है, जबकि रेत से लोड ये डम्फर द सूत्र को नर्मदापुरम सीमा के अंदर रात 1 बजे से 2 बजे के बीच मिले हैं। जाहिर सी बात है नर्मदा ब्रिज क्रॉस करने के बाद सीहोर और रायसेन जिले की सीमा में बनी चौकियों में इन डम्फरों की रायल्टी बनाकर रेत और ट्रांसपोर्टेशन दोनो को वैध करने का काम किया जा रहा है। 





इस तरह से खेला जा रहा खेल





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रायल्टी के अनुसार डम्फर क्रमांक MP04—HE8972 और RJ09—GD3642 लीजधारी बृजेश चौकसे के सुल्तानपुर बम्होरी के स्टॉक से रेत भरकर भोपाल की ओर गए। गूगल मेप पर जब हम देखेंगे तो इसका सीधा सा एक रूट भोजपुर के पास से दिखाई देता है जिसकी कुल लंबाई 77.7 किमी है, पर डम्फर तो अपोजिट साइड 70 किमी दूर नर्मदापुरम की सीमा के अंदर मिले। इस पूरे खेल को कागजी अमलीजामा पहनाने के लिए रायल्टी में रूट में वाया गडरिया नाला शब्द जोड़ दिया जाता है। गडरिया नाला बुदनी (सीहोर जिला) में आता है। गडरिया नाला रूट में शामिल होने के बाद दूरी 77.7 किमी से बढ़कर 110 किमी हो जाती है, जिसके कारण ट्रांसपोर्टेशन का टाइम भी 5.41 घंटे मिल जाता है। पर सवाल यह उठता है कि इन डम्फरों ने गडरिया नाले को क्रॉस करीब रात 2.30 बजे के आसपास कर लिया, रायल्टी रात 2.40 पर बनी, ऐसे में रूट में गडरिया नाले को शामिल ही इस पूरे ट्रांसपोर्टेशन को वैध ठहराने के लिए किया गया। 





तवा की रेत की अधिक डिमांड





द सूत्र के पास एक सवाल था और सवाल ये कि अन्य जिलों में रेत की वैध खदाने हैं, जहां से आसानी से रेत मिल सकती है। ऐसे में दो साल से बंद पड़ी रेत खदानों से अवैध खनन और परिवहन करने का रिस्क लिया क्यों जा रहा है। जानकारी लेने पर पता चला कि अपनी खास गुणवत्ता के कारण प्रदेश में तवा की रेत की अत्याधिक डिमांड रहती है। तवा नदी तवा डेम से निकलकर बांद्राभान में नर्मदा नदी से जाकर मिलती है। 172 किमी लंबी यह नदी नर्मदापुरम जिले में ही आती है। ऐसे में यदि किसी को तवा की रेत चाहिए तो नर्मदापुरम के अलावा उसे ये कहीं और नहीं मिल सकती। यही कारण है कि दो साल से रेत की खदाने बंद होने के बाद भी यहां धड़ल्ले से रेत का अवैध खनन और परिवहन हो रहा है। 





नदी के बीच जेसीबी से निकाल रहे रेत





सच्चाई का पता लगाने द सूत्र की टीम रात 2.30 बजे नर्मदापुरम जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर पचमढ़ी की ओर तवा नदी के पुल पर पहुंची। यहां पुल के शुरू होने से ठीक पहले बांयी ओर एक रास्ता है, जो एक रेत खदान की ओर जाता है। डम्फर चालकों को खदाने तक पहुंचने में कोई दिक्कत न हो इसके लिए बकायदा एक ऐरो लगा बोर्ड भी लगा हुआ मिला, जिसमें लिखा था दिवलाखेड़ी रेत खदान चालू है। द सूत्र की टीम इससे आगे बढ़ी तो पुल के दूसरी ओर (बाबई की ओर) मंदिर के पास एक दर्जन डम्फर खड़े मिले। वहीं बांयी ओर ही बीच नदी में भारी बारिश के बीच 3 डम्फरों में जेसीबी की मदद से रेत भरी जा रही थी। सवाल यह कि जब रेत खदान ही लंबे समय से बंद है तो रेत खदान चालू है का बोर्ड और एक दर्जन डम्फर वहां कैसे खड़े थे। 





दो साल से बिना रायल्टी का दौड़ रहा डम्फर





द सूत्र की टीम ने तवा पुल से रेत भरकर निकले डम्फर MP05—G7992 का पीछा रात 3.30 बजे किया। यह डम्फर नर्मदापुरम के जिंदबाबा के पास से NH—46 पर गया और फिर वहां से होता हुआ बुदनी की ओर निकल गया। जब इस डम्फर की रायल्टी चेक की तो पता चला कि करीब दो साल से इस डम्फर ने कोई रायल्टी ही नहीं ली है। मतलब बिना रायल्टी के यह डम्फर रेत भरकर सड़कों पर फर्राटे से दौड़ रहा है। इस डम्फर की अंतिम बार रायल्टी 17 सितंबर 2020 को ली गई थी। इस रायल्टी के अनुसार रेत बुदनी जिला सीहोर के डोबी से भरी गई थी और इसे डंप गुना में करना था। इस रायल्टी के बाद डम्फर MP05—G7992 की कभी रायल्टी ही नहीं बनी। खास बात यह है कि नर्मदापुरम में अवैध खनन कर रेत का अवैध परिवहन कर रहे इन डम्फरों को चेक करने के लिए नर्मदापुरम जिले की सीमा के अंदर न तो कोई जांच चौकी दिखी और न ही कोई अधिकारी जो रात के अंधेरे में हो रहे इस खेल को रोकने के लिए कोई कदम उठाता।  





रायल्टी के नाम पर करोड़ों की अतिरिक्त कमाई





सवाल यह भी है कि नर्मदापुरम से लाई जा रही रेत अवैध रेत को रायल्टी देकर लीजधारी को क्या फायदा हो रहा है तो यहां हम आपको वह गणित भी समझा देते हैं। एक 12 चक्के डम्फर में यदि 12 घन मीटर रेत है तो उसकी रायल्टी करीब 15600 रूपए की बनती है, लेकिन नर्मदापुरम से जा रही रेत और उसके ट्रांसपोर्टेशन को वैध करने के लिए इसकी रायल्टी 16800 से लेकर 18 हजार रूपए तक की बनाई जाती है। मतलब 1200 से लेकर 2400 रूपए तक एक्स्ट्रा लिए जाते हैं। अब यदि कोई लीजधारी एक दिन में नर्मदापुरम से रेत लाने वाले 250 डम्फरों की रायल्टी बनाता है तो वह एक दिन में 3 से 6 लाख और 1 महीने में 90 लाख से लेकर 1.80 करोड़ तक की अतिरिक्त कमाई कर लेगा। 





भोपाल में एक डम्फर तवा रेत की कीमत 55 हजार रूपए





आपके मन में यह सवाल भी उठ सकता है कि निर्धारित रायल्टी से अधिक रायल्टी देने से रेत बेचने वाले को नुकसान हो जाता होगा तो ऐसा नहीं है। इसे भोपाल के ही एक उदाहरण से समझ लीजिए। भोपाल में एक डम्फर तवा की रेत की कीमत 55 हजार रूपए है। नर्मदापुरम में कोई रेत खदान स्वीकृत नहीं है, इसलिए वहां एक डम्फर में रेत 10 हजार रूपए में भरा जाती है। सीहोर और रायसेन जिले की सीमा में आने के बाद वह अधिक रायल्टी चुकाता है, जो कि करीब 18 हजार रूपए है। नर्मदापुरम से भोपाल पहुंचने में लगा डीजल और टोल टैक्स 6 हजार रूपए होता है। मतलब अब तक एक डम्फर में रेत का खर्चा हुआ सिर्फ 34 हजार रूपए। नर्मदापुरम से निकलकर जब एक डम्फर भोपाल पहुंचता है तो उसे तीन जिलों से होकर गुजरना होता है। इसके लिए उसे रिश्वत के तौर पर 6 हजार रूपए बांटने पड़ते हैं। मतलब इसे भी जोड़ लिया जाए तो कुल खर्चा 40 हजार रूपए होता है। रेत बेचने वाला अपना 15 हजार का प्रॉफिट जोड़कर इसे 55 हजार में बेचता है। 



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