BHOPAL. मार्च 2020 में बीजेपी या शिवराज सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मंत्रियों भागीदारी 27 फीसदी थी, जबकि वर्तमान मोहन यादव सरकार में ये प्रतिशत घटकर 14 रह गया है। शिवराज सरकार के 33 मंत्रियों में सिंधिया खेमे से 9 मंत्री बने थे, लेकिन इस बार उनके सिर्फ 4 विधायकों को मंत्री बनाया गया है।
यहां बता दें, मार्च 2020 में सिंधिया गुट से 17 विधायक विधानसभा पहुंचे थे, जबकि इस बार विधायकों की संख्या केवल 6 रह गई है।
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मार्च 2020 में सिंधिया ने कमलनाथ सरकार से नाता तोड़ लिया और बीजेपी (शिवराज सरकार) में शामिल हो गए थे। जिससे मप्र में फिर बीजेपी की सरकार बहुमत में आ गई थी और शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बन गए थे। जिसके बाद शिवराज सरकार ने शेष कार्यकाल ( पौने चार साल) पूरा किया।
कैबिनेट मंत्री बनने वाले सिंधिया समर्थक-
प्रद्युम्न सिंह तोमर : ये सिंधिया भक्ति में कोई कसर नहीं रखते हैं। मौका मिलने पर उसे दर्शा भी देते हैं। उनकी मंत्रिमंडल गठन से पहले भोपाल एयरपोर्ट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के चरणों में लेट कर आशीर्वाद लेने वाली तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है। प्रद्युम्न सिंह तोमर कांग्रेस और शिवराज सरकार के बाद अब मोहन सरकार में भी कैबिनेट मंत्री बने हैं।
अच्छे परफॉर्मेंस का लाभ : शिवराज सरकार में ऊर्जा मंत्री रहते अच्छा परफॉर्मेंस रहा। ग्राउंड पर एक्टिव रहे। उनकी नाले में उतर कर सफाई और सरकारी टॉयलेट्स साफ करने की तस्वीरें खूब वायरल हुई हैं। सड़कें नहीं बनने तक चप्पल नहीं पहनने के बयान से शिवराज को चुनौती दी। इस सब के साथ सिंधिया का साथ मिलना उनके लिए ट्रम्प कार्ड की तरह है।
तुलसीराम सिलावट : ये इंदौर के सांवेर से विधायक हैं। ये भी सिंधिया के खास समर्थकों में शामिल हैं। पिछली बार जल संसाधन विभाग मिला था। मालवा से आने वाले सिलावट को इस बार भी मंत्री बनाया गया है।
पार्टी में घुल- मिल गए : सिंधिया खेमे के होकर भी बीजेपी में जल्दी घुल-मिल गए। शिवराज के नजदीकी रहे। संगठन में भी खुद को बीजेपी कार्यकर्ता के तौर पर प्रोजेक्ट करते हैं।
गोविंद सिंह राजपूत : ये सुरखी विधानसभा से विधायक हैं। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। कांग्रेस के बाद बीजेपी सरकार में भी मंत्री रहे। बुंदेलखंड के सागर जिले से आने वाले गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच के खींचतान सर्वविदित है। बीजेपी ने जातीय और क्षेत्रीय संतुलन के हिसाब से राजपूत मौका दिया है।
इसलिए मिला मौका : सागर से कद्दावर मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को कैबिनेट में शामिल नहीं करने से गोविंद की राह आसान हुई। सिंधिया खेमे से होने के साथ-साथ बीजेपी सरकार से अच्छा तालमेल बनाए रखा।
ऐदल सिंह कंसाना: ये सुमावली से विधायक हैं। 2020 में सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे और शिवराज सरकार में मंत्री बने थे। कांग्रेस सरकार में भी राज्य मंत्री रहे हैं। पांचवीं बार के विधायक हैं। ऐदल सिंह यूं तो दिग्विजय सिंह ने नजदीकी रहे हैं, लेकिन मार्च 2020 में सिंधिया के साथ आ गए थे। अब सिंधिया समर्थक माने जाते हैं।
गुर्जर चेहरा: ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में पार्टी का गुर्जन चेहरा हैं। मार्च 2020 में बीजेपी का साथ दिया। साथ में सिंधिया समर्थक होना।
प्रभु की यह 'राम कहानी':
डॉ. प्रभुराम चौधरी सिंधिया समर्थक हैं। रायसेन जिले की सांची सीट से विधायक बने हैं। सिंधिया के साथ ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। एससी समाज से अपने वाले प्रभुराम शिवराज सरकार में मंत्री थे। इस दौरान वे तबादलों को लेकर विवादों में रहे हैं। मोहन सरकार में एससी वर्ग से डिप्टी सीएम समेत पांच विधायक मंत्री हैं।
बृजेंद्र सिंह यादव भी सिंधिया समर्थक हैं, लेकिन उन्हें इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली।
सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्री जो इस बार हार गए
महेंद्र सिंह सिसोदिया (बमोरी), राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर), सुरेश धाकड़ (पोहरी) इस बार विधानसभा चुनाव में हार गए, जबकि ओपीएस भदौरिया को टिकट नहीं मिल सका।
शिवराज सरकार के 33 मंत्रियों का हिसाब
- 2 चुनाव नहीं लड़े
- 31 मंत्री चुनाव मैदान में उतरे थे
- 12 चुनाव हार गए
- 19 मंत्री जीते हैं। इनमें से मोहन यादव सीएम और जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ल डिप्टी सीएम बने।
ये 6 फिर मोहन सरकार में बने मंत्री
- तुलसी सिलावट
- विजय शाह
- गोविंद सिंह राजपूत
- विश्वास सारंग
- इंदर सिंह परमार
- प्रद्युम्न सिंह तोमर
10 पूर्व मंत्रियों को नहीं मिली जगह
- गोपाल, भार्गव
- मीना सिंह
- उषा ठाकुर
- हरदीप सिंह डंग
- बृजेंद्र प्रताप सिंह
- भूपेंद्र सिंह
- प्रभुराम चौधरी
- ओमप्रकाश सकलेचा
- बृजेंद्र सिंह यादय
- बिसाहूलाल