अंबिकापुर में कोयले के पानी से बंजर हो गया खेत, 500 एकड़ जमीन तबाह, तीन साल पहले बनी रोकने की योजना केवल कागजों पर 

author-image
Shivam Dubey
एडिट
New Update
अंबिकापुर में कोयले के पानी से बंजर हो गया खेत, 500 एकड़ जमीन तबाह, तीन साल पहले बनी रोकने की योजना केवल कागजों पर 

नितिन मिश्रा, SURGUJA. अंबिकापुर में किसानों के खेत में कोयले का पानी आ जाने से जमीन बंजर हो गई है। लगभग 3 सालों से किसानों को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कोयले के पानी को रोकने के लिए योजना बनाई गई थी लेकिन यह केवल कागजों तक सीमित रह गई। फलस्वरूप 200 किसानों की 500 एकड़ जमीन अब बंजर हो गई है। 





कोयले की डस्ट जम जाने से बंजर हुई जमीनें





जानकारी के मुताबिक अंबिकापुर जिले के भैयाथान ब्लॉक के बस्कर, खोढ़ और बड़सरा के किसानों की जमीन बंजर हो गई है। क्षेत्र में स्थित झिलमिल कोयला खदान से निकलने वाली डस्ट किसानों के खेतों में जम जा रही है। खदान पहाड़ में स्थित है और खेत नीचे है। जिससे अब कोयला युक्त पानी खेतों में घुसने लगा है। जिससे फसल की पैदावार में खासा असर पड़ा है। किसानों ने 3 साल पहले इस समस्या को लेकर एसईसीएल के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। जिसमें कोयला का पानी खेतों में जाने से रोकने के लिए योजना बनाने को कहा गया था। लेकिन यह योजना भी कागजों में सीमित रह गई। फलस्वरूप एक हजार किसानों की भूमि अब बंजर हो चुकी है। 





कोयला लोड कर बाहर कर रहे इकट्ठा





जानकारी के मुताबिक खदान से निकलने वाले कोयले को बाहर डम्प किया जा  रहा है। जिसकी डस्ट चार से पांच किलोमीटर के इलाके को प्रभावित कर रही है। यही डस्ट किसानों के खेतों तीन फिट मोटी परत में जमा हो जा रही है। इससे निपटने के लिए किसानों ने शुरुआत में मिट्टी को पलट कर खेती की। 25 सालों से ऐसा ही चलता रहा। लेकिन किसानों का अब कहना है कि मिट्टी पलटने से भी कोई फायदा नहीं हो रहा है। फसलों पैदावार में  भारी कमी आ रही है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता समाप्त हो गई है।





कागजों में योजना





3 गांवों के किसानों ने समस्या के निदान के लिए एसईसीएल के खिलाफ प्रदर्शन किया था। जिसके बाद प्रबंधन ने एक स्टॉप डैम बनाकर पानी को रोकने की योजना बनाई थी। लेकिन योजना केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गई। किसानों की समस्या का निपटारा नहीं हो पाया है। 





कार्बन से उपजाऊ क्षमता में होती है गिरावट





यदि मिट्टी में कोयले या कार्बन की मात्रा ज़्यादा होती है तो CN का अनुपात बिगड़ जाता है। जिससे फसलों में नाइट्रोजन की जरूरत ज़्यादा होने लगती है। धान, गेंहू, मक्का जैसी फसलों की पैदावार में भारी कमी आ जाती है। खेतों में कार्बन की मात्रा अधिक होने से स्वाइल की उपजाऊ क्षमता प्रभावित होती है। 





किसानों का ये कहना है 





बड़सरा की किसान राजवंती ने बताया कि मेड़ बनाकर कोयले के पानी को रोकने की कोशिश की जाती है लेकिन कहीं ना कहीं से कोयले का पानी खेतों में घुस जाता है। वहीं खोंडा के किसान राय सिंह का कहना है कि झिलमिल खदान से निकलने वाला पानी 25 साल से खेतों में आ रहा है। खेती करने के लिए बार मिट्टी की ऊपरी परत को पलटना पड़ता है। अब मिट्टी पलटने से भी कोई फर्क नहीं पद रहा है।



Raipur News रायपुर न्यूज Chhattisgarh News छत्तीसगढ़ न्यूज Surguja News सरगुजा न्यूज Jhilmil Coal Mines Farmers झिलमिल कोयला खदान किसान