आगर मालवा में तीसरा बच्चा होने पर टीचर की गई नौकरी, टीचर की सफाई- गर्भपात में था जान का खतरा, अब अदालत से रहम की उम्मीद

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Chandresh Sharma
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आगर मालवा में तीसरा बच्चा होने पर टीचर की गई नौकरी, टीचर की सफाई- गर्भपात में था जान का खतरा, अब अदालत से रहम की उम्मीद

Agar Malwa. आगर मालवा में सरकारी स्कूल में संविदा वर्ग-2 की महिला शिक्षक ने सरकारी नौकरी में होने के बावजूद तीसरी संतान को जन्म दिया। जिसके बाद नियमों के तहत सरकार ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया है। अब टीचर का कहना है कि उन्हे टारगेट कर शिकायत की गई जिसके कारण उनकी नौकरी चली गई। महिला का दावा है कि ऐसे कई सरकारी कर्मचारी हैं जिनकी तीन संतानें हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। महिला ने यह भी कहा है कि उन्हें चाइल्ड पॉलिसी की जानकारी थी, लेकिन गर्भावस्था की जानकारी जब लगी, तब तक काफी देर हो चुकी थी। 



गुरूवार को मिला था आदेश




सरकारी स्कूल में केमिस्ट्री पढ़ाने वाली रहमत बानो आगर मालवा के बीजानगरी में सरकारी स्कूल में पदस्थ हैं। गुरूवार को उनके पास सेवा समाप्ति का आदेश आ गया। यह आदेश संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संभाग रविंद्र कुमार सिंह ने जारी किए हैं। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश शिक्षक कांग्रेस संघ ने रहमत की शिकायत की थी। 




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    दरअसल मध्यप्रदेश में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है। मध्यप्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत अगर सरकारी कर्मचारी का तीसरा बच्चा 26 जनवरी 2001 के बाद जन्मा है तो उसके माता/पिता को सरकारी नौकरी का पात्र नहीं माना जाएगा। यह नियम उच्च न्यायिक सेवाओं, पंचायतों और स्थानीय निकाय चुनाव में भी लागू होता था। बाद में इसे चुनावों में बंद कर दिया गया। लेकिन सरकारी नौकरी में यह लागू है।  



    अदालत का खटखटाएंगी दरवाजा




    रहमत का कहना है कि अकेले उनके जिले में ही एक दर्जन से ज्यादा सरकारी कर्मचारी मौजूद हैं जिनके यहां तीन-तीन संतानें हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रहमत के वकील अनिल गर्ग ने कहा है कि रहमत को नियम के तहत सेवा से बर्खास्त किया गया है, लेकिन मेडिकल एविडेंस अगर पुष्टि करते हैं कि गर्भपात की स्थिति में बच्चे और मां की जान को खतरा था तो अदालत में मजबूती से पक्ष रखा जा सकता है। बता दें कि इससे पहले भी इस प्रकार के मामले अदालत तक पहुंचे हैं। साल 2018 में दर्जन भर ऐसे सरकारी कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंचे थे। जिन पर अदालत ने फैसला दिया था कि ऐसे कर्मचारियों की वेतन वृद्धि रोकी जाए, पर नौकरी से न निकाला जाए। 


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