महाकाल लोक में शुरूआती जांच में ही धांधली उजागर हुई, हद दर्जे की लापरवाही पर लोकायुक्त भी चकराए, उज्जैन स्मार्ट सिटी को भेजा नोटिस

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Chandresh Sharma
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महाकाल लोक में शुरूआती जांच में ही धांधली उजागर हुई, हद दर्जे की लापरवाही पर लोकायुक्त भी चकराए, उज्जैन स्मार्ट सिटी को भेजा नोटिस

Ujjain. महाकाल लोक में मात्र 55 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चली हवाओं में धराशाई सप्तर्षि की मूर्तियों के मामले में लोकायुक्त को शुरूआती जांच में ही धांधली के सबूत मिल चुके हैं। इस काम में हुई हद दर्जे की लापरवाही से स्वयं लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता भी इस बात पर चकरा चुके हैं, कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के काम में अधिकारी इतनी लापरवाही कैसे बरत सकते हैं। दरअसल शुरूआती जांच में ही यह पता लगा है कि महाकाल लोक में लगी हुई मूर्तियों का न तो डिजाइन बना था और न ही उनकी ड्राइंग बनवाई गई थी। यहां तक कि टेंडर एग्रीमेंट में भी जिम्मेदार अधिकारियों के दस्तखत तक नदारद हैं। इन सभी गफलतों पर लोकायुक्त ने उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटैड को नोटिस जारी किया है। नोटिस में कहा गया है कि लगता है कि मूर्तियों का निर्माण ठेकेदार की मर्जी से हुआ। क्योंकि जब एग्रीमेंट में ऐसे क्लॉस ही नहीं तो फिर काम किस आधार पर और कैसे कराया गया?



लोकायुक्त ने उठाए कई सवाल




इस मामले में लोकायुक्त टीम ने अपनी रिपोर्ट में यह जिक्र किया था कि मूर्तियों का रंग उड़ रहा है। कई मूर्तियों में दरारें भी पाई गई हैं। लोकायुक्त ने यह सवाल उठाए हैं कि जब मूर्तियों का स्पेसिफिकेशन ही तय नहीं था तो यह तय कैसे किया गया कि कौन सी मूर्ति कितनी बड़ी और किस मटेरियल की बनेगी। ठेके के अनुबंध और आरएफपी की पड़ताल के बाद स्मार्ट सिटी लिमिटेड से 16 बिंदुओं पर जवाब तलब किया गया है। 




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  • पत्थर और कांक्रीट को एफआरपी से रिप्लेस क्यों किया गया




    नोटिस में लोकायुक्त ने यह सवाल भी किया है कि जब 60 मूर्तियां पत्थर और 50 कांक्रीट से बनना थीं तो फिर यह फैसला आखिर बदला किसने? क्यो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग में इस पर फैसला लिया गया? 60 के बजाए सिर्फ 9 मूर्तियां ही पत्थर से क्यों बनवाई गईं। बाकी की मूर्तियां फाइबर रिइंफोर्स्ड प्लास्टिक से बनाने का निर्णय किस स्तर पर हुआ? 



    केमिकल डालने से मूर्तियां हो जाती कई गुना महंगी इसलिए गफलत



    उज्जैन स्मार्ट सिटी के साथ काम कर रहे कृष्णमुरारी शर्मा ने बताया कि योजना यही थी कि एफआरपी की मूर्तियों को अंदर से खोखला बनाकर अंदर लोहे की रॉड से मजबूती देंगे। ऐसा लगता है कि मूर्तियों का आधार मजबूत न होने के कारण ही वे गिरी हैं। मूर्तियों में केमिकल डालकर ठोस बनाया जा सकता था, हालांकि इस प्रक्रिया में उनकी लागत कई गुना बढ़ जाती, इसलिए यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। 



    मंत्री भूपेंद्र सिंह दे चुके सफाई




    इस मामले में प्रदेश सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह 30 मई को ही कह चुके हैं कि महाकाल लोक का वर्क ऑर्डर कांग्रेस की सरकार के समय जारी किया गया था। डीएच मेसर्स गायत्री पटेल इलेक्ट्रिकल्स के संयुक्त उपक्रम को काम दिया गया था। डीपीआर में भी इसी एफआरपी मूर्तियों का प्रावधान है। अन्य राज्यों में भी इसी की प्रतिमाएं लगाई गई हैं। 




    यह बात सही है कि देश के कई स्थानों पर एफआरपी की मूर्तियां लगाई गई हैं। इनमें महाराष्ट्र के पंढरपुर, शेगांव, दिल्ली के किंगडम ऑफ ड्रीम, अक्षरधाम मंदिर समेत कुरुक्षेत्र, सिक्किम के मंदिरों के साथ ही बाली-इंडोनेशिया के धार्मिक स्थल भी शामिल हैं। उधर, कांग्रेस का तर्क है कि सरकार बनने पर वे महाकाल लोक की गड़बड़ियों की जांच कराएंगे। ये भी बताएंगे कि किन-किन लोगों को इसमें फायदा पहुंचाया गया।


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