अभी भी कायम है सदियों से चली आ रही परंपरा, थाली और ढोल की थाप, लग्जरी गाड़ियां छोड़ बैलगाड़ी में हुए सवार

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Pooja Kumari
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अभी भी कायम है सदियों से चली आ रही परंपरा, थाली और ढोल की थाप, लग्जरी गाड़ियां छोड़ बैलगाड़ी में हुए सवार

BHOPAL. रतलाम के अति प्राचीन केसरियानाथ तीर्थ बिबड़ौद का मेला गुरुवार को लगा। सालों की परंपरा को निभाते हुए जैन समाज के लोग अपनी बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियां छोड़ बैलगाड़ियों में सवार होकर इस मेले में पहुंचे। तीर्थ में स्थित आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा की सोने-चांदी के डायमंड वर्क से अनुपम अंग रचना की गई। बता दें कि प्रत्येक वर्ष ये मेला पौष माह की अमावस्या पर पर लगता है और इसमें श्रद्धालु दर्शन-वंदन व पूजन के लिए केसरिया नाथ तीर्थ पहुंचते है।

प्राचीन केसरियानाथ तीर्थ बिबड़ौद मेला

बता दें कि बिबड़ौद जैन तीर्थ रतलाम से करीब 5 किमी दूर रतलाम बाजना मार्ग पर स्थित है। इस मेले की खासियत ये है कि रतलाम का जैन समाज बड़ी संख्या में परिवार के साथ यहां पहुंचते हैं। वह भी बैलगाड़ी में सवार होकर थाली व ढोल की थाप के साथ, प्रभु की जय-जयकार करते हुए रतलाम से यहां पहुंचते हैं। तीर्थ के ट्रस्टी पारस भंडारी के अनुसार धार्मिक मान्यता है कि भगवान केसरियानाथ ऋषभ देव जी का चिन्ह बैल था। पुराने समय में मोटर गाड़ी व अन्य साधन नहीं थे। केवल बैलगाड़ी ही थी। उसमें सवार होकर समाजजन व अन्य लोग भी आते थे।

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लकड़ी का झूला

जानकारी के मुताबिक परंपरागत रूप बैलगाड़ी के अलावा यहां पर लकड़ी के झूले भी लगते है। जो कि किसी मशीनरी नहीं बल्कि हाथ से चलाए जाते हैं। बच्चों से लेकर बड़े व बुजुर्ग भी बड़ी संख्या में इस मेले में शामिल होते हैं। बता दें कि मेले में पुलिस सुरक्षा व्यवस्था के भी बंदोबस्त कड़े थे।

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