BHOPAL. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने के लिए कानूनी जामा पहनाना शुरू कर दिया है। बिल को उत्तराखंड विधानसभा में रखा गया है। बता दें कि सीएम धामी ने खुद इस बिल को विधानसभा के पटल पर रखा। इस दौरान विधानसभा में UCC पेश करते ही यहां मौजूद विधायकों ने वंदे मातरम और जय श्रीराम के नारे लगाए।
UCC बिल उत्तराखंड विधानसभा में पेश, शादी-तलाक पर बदलेंगे नियम
लिव - इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
बता दें कि समान नागरिक संहिता (UCC) के कानून बनने के बाद उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले या रहने की प्लानिंग करने वाले लोगों को जिला अधिकारियों के पास जाकर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। वहीं, साथ में रहने की इच्छा रखने वाले 21 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए माता-पिता की सहमति आवश्यक होगी। ऐसे रिश्तों का अनिवार्य पंजीकरण उन व्यक्तियों पर लागू होगा, जो "उत्तराखंड के किसी भी निवासी...राज्य के बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। साथ ही एस बिल में ये भी प्रस्ताव है कि लिव-इन रिलेशनशिप उन मामलों में पंजीकृत नहीं किए जाएंगे, जो "नैतिकता के विरुद्ध" हैं। यदि एक साथी विवाहित है या किसी अन्य रिश्ते में है, यदि एक साथी नाबालिग है, और यदि एक साथी की सहमति "जबरदस्ती, धोखाधड़ी" द्वारा प्राप्त की गई थी, या गलत बयानी की गई है, तो पंजीकृत नहीं किया जाएगा।
रजिस्ट्रेशन के लिए तैयार की जा रही है वेबसाइट
जानकारी के मुताबिक लिव - इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के लिए एक वेबसाइट तैयार की जा रही है, जिसे जिला रजिस्ट्रार से सत्यापित किया जाएगा, जो रिश्ते की वैधता स्थापित करने के लिए "जांच" करेगा। ऐसा करने के लिए वह किसी एक या दोनों साझेदारों या किसी अन्य को मिलने के लिए बुला सकता है। इसके बाद जिला रजिस्ट्रार ही तय करेगा कि कपल को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दी जाए कि नहीं। बता दें किसी भी रजिस्टर्ड लिव-इन रिलेशनशिप को 'खत्म' करना भी आसान नहीं होगा। इसके लिए "निर्धारित प्रारूप" में एक लिखित बयान दाखिल करना होगा। यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि संबंध समाप्त करने के कारण "गलत" या "संदिग्ध" हैं, तो ऐसे में इसकी पुलिस जांच भी हो सकती है। वहीं 21 वर्ष से कम आयु वालों के माता-पिता या अभिभावकों को भी इसके बारे में सूचित किया जाएगा।
गलत जानकारी कपल को डाल सकती है मुसीबत में
बताया जा रहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए दी गई गलत जानकारी कपल को मुसीबत में भी डाल सकती है। गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल के साथ 25,000 रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत नहीं कराने पर अधिकतम छह महीने की जेल और 25,000 का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा। यहां तक कि पंजीकरण में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल और 10,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। मंगलवार सुबह उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर अन्य प्रमुख बिंदुओं में ये है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी यानी, वे "दंपति की वैध संतान होंगे। इसका मतलब है कि "लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए सभी बच्चों को वे अधिकार मिलेंगे, जो शादी के बाद हुए बच्चों को मिलते हैं। ऐसे में अब किसी भी बच्चे को 'नाजायज' के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकेगा।
लिव-इन रिलेशनशिप के बाद भरण-पोषण की जिम्मेदारी
अगर किसी महिला को उसका पार्टनर छोड़ता है तो वो भरण-पोषण के खर्चे को क्लेम कर सकती है। इसके लिए वो तय नियमों के तहत कोर्ट का सहारा ले सकती है। बता दें कि समान नागरिक संहिता विधेयक के ड्राफ्ट को पांच सदस्यीय पैनल ने 2 फरवरी 2024 को उत्तराखंड सरकार को सौंपा था। इस पैनल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना देसाई कर रही थीं। इस विधेयक को पेश करने के साथ ही उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां UCC कानून लाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।