BHOPAL. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिलने के बाद PCC चीफ कमलनाथ की भूमिका को लेकर भी अब तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। कमलनाथ की मध्यप्रदेश में क्या भूमिका होगी? विधानसभा में हारी हुई कांग्रेस में क्या वे अब भी जान फूंकने के लिए कोई रणनीति बनाएंगे या 77 साल की उम्र में दिल्ली को ही ठिकाना बनाएंगे?
छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं कमलनाथ
बता दें कि कांग्रेस लीडरशिप को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई का कहना है कि फिलहाल कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का वर्चस्व राज्य में बना रहेगा। इस कॉम्बिनेशन का प्रदेश कांग्रेस में कोई विकल्प नहीं है। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि कमलनाथ लोकसभा तक PCC चीफ बने रहेंगे साथ ही ये भी कहा कि संभावना है कि वे छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव खुद लड़ सकते हैं। वे जानते हैं कि छिंदवाड़ा जीतने के लिए उन्हें ही मैदान में उतरना होगा। ऐसे में वे खुद सांसद बनकर बेटे नकुल को विधानसभा उप चुनाव में जीत दिलाकर MP की राजनीति की कमान सौंप सकते हैं।
नेता प्रतिपक्ष चुनने की प्रक्रिया में कमलनाथ के शामिल नहीं होने का कारण
बता दें कि कमलनाथ खुद नेता प्रतिपक्ष बनने की होड़ में शामिल नहीं है। वे जानते हैं कि इसमें बहुत समय खर्च करना पड़ेगा। 2020 में तख्ता पलट के बाद वे नेता प्रतिपक्ष रहे थे, लेकिन विधानसभा में ज्यादा वक्त नहीं दे पाए। इसके बाद कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूले के कारण उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना पड़ा और उसके बाद डॉ गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
क्या पीसीसी चीफ का पद छोड़ सकते हैं कमलनाथ
यदि कमलनाथ के पीसीसी पद छोड़ने की बात करें तो सामने आया है कि फिलहाल वे इस पद पर बने रहेंगे। हो सकता है उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के सामने चुनाव में मिली हार के बाद इस्तीफे की पेशकश की हो, लेकिन उनसे अभी पद पर बने रहने को कहा गया हो। उन्होंने अपने बयानों में साफ कहा है कि मैं न तो अभी रिटायर हो रहा हूं, न ही मध्यप्रदेश छोड़कर जा रहा हूं। यानी साफ है, हाईकमान से चर्चा के बाद ये तय हो गया है कि मप्र में कांग्रेस की कमान कमलनाथ के पास ही रहेगी।
क्या लोकसभा चुनाव लड़ेंगे कमलनाथ?
माना जा रहा है कि वे लोकसभा का चुनाव जरूर लडेंगे। विपक्ष में रहते हुए मप्र में वे पूरे 5 साल नहीं बिताएंगे। उनकी कोशिश यही होगी कि लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। फिर दिल्ली की राजनीति में एक्टिव हों। बता दें कि लोकसभा के लिए वे अभी से छिंदवाड़ा में एक्टिव हो गए हैं। बुधवार को कमलनाथ ने कहा था, 'मैं रिटायर नहीं होने वाला। आखिरी सांस तक आपके साथ रहूंगा। आने वाले समय में हमारी असली अग्निपरीक्षा है। हमें इसके लिए अभी से तैयार रहना होगा।' वहीं कमलनाथ अपने बेटे नकुल को भी एमपी की राजनीति में एक्टिव रखना चाहते हैं। जानकारी के मुताबिक इसके लिए वे खुद दिल्ली जाएंगे। इसके बाद विधानसभा उपचुनाव में बेटे को जीत दिलाकर उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में रखना चाहेंगे।
क्या कमलनाथ के लिए छिंदवाड़ा में चुनाव लड़ना आसान होगा?
बता दें कि छिंदवाड़ा में बीजेपी लगातार कमलनाथ की घेराबंदी में जुटी हुई है। कमलनाथ खुद भी ये जानते हैं कि यदि नकुलनाथ वहां से लोकसभा के उम्मीदवार हुए तो बीजेपी की घेराबंदी ज्यादा प्रभावी हो सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में नकुल 37 हजार 536 वोटों के अंतर से जीते थे। साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा तक तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का ही वर्चस्व रहेगा। इसके बाद नए समीकरण बनेंगे। तब तक के लिए इन दोनों की लीडरशिप के काम्बिनेशन का कोई विकल्प कांग्रेस के पास नहीं है। जीतू पटवारी और कमलेश्वर पटेल जैसे नेता का चुनाव में हार के बाद सेकेंड लाइन में कोई प्रभावी नाम सामने नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के लिए ये भी चिंता का विषय बना हुआ है। 2018 में कांग्रेस के चुनाव जीतने से लेकर अब तक राज्य में कांग्रेस के पास कभी संसाधनों की कमी नहीं हुई है। खुद कमलनाथ ये संसाधन मुहैया कराते हैं। पीसीसी का महीने का खर्च 25 लाख रुपए से ज्यादा है और ये सब कमलनाथ ही देखते हैं।