BHOPAL. शिवराज कैबिनेट में हाजिर जवाबी के लिए मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया जानी जाती हैं। अमूमन उनके बोलने के बाद अक्सर माहौल में थोड़ी गरर्माहट आ जाता है। ऐसा ही कुछ मंगलवार (1 अगस्त) को हुई कैबिनेट बैठक में हुआ। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने तो अपनी मांग बता दी, लेकिन यशोधरा के जवाब से कुछ पलों के लिए बैठक में सन्नाछा गया। पलट कर प्रभुराम तो कुछ नहीं बोले, लेकिन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने जवाब से दोनों मंत्रियों की तल्खी को किसी तरह फिलहाल खत्म किया।
यशोधरा के जवाब पर प्रभुराम चुप रहे, सीएम ने बात संभाला
वाकया कुछ इस तरह हुआ- कैबिनेट बैठक में आईटीआई कॉलेज को लेकर चर्चा चल रही थी। इसी दौरान स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के सामने अपने विधानसभा क्षेत्र सांची में नया आईटीआई शुरू करने की मांग की। जिसे यशोधरा राजे ने तत्काल खारिज कर दिया और कहा, इसकी कोई जरुरत नहीं है। फिर यशोधरा ने विभाग की समस्याएं गिनानी शुरू कर दीं। बताया कि स्टाफ नहीं है। नया आईटीआई खोलने से क्या फायदा है? पहले पुराने आईटीआई तो अच्छे से चलाए जाएं! फिर बजट की समस्या बताई। पैसा कहां से आएगा। यशोधरा ने आगे कहा, फिर नई जगह का स्टाफ भी अपने मन की ट्रांसफर-पोस्टिंग में लग जाता है। बेहरतर होगा, पुराने आईटीआई को ठीक से चलाया जाए। इस पर प्रभुराम ने कोई प्रतिप्रश्न तो नहीं किया, लेकिन बैठक में कुछ देर के लिए अजीब सी शांति छा गई। हालांकि, फिर मामले की नजाकत को भांपते हुए सीएम शिवराज सिंह ने कहा कि आपके विधानसभा सांची के पास रायसेन में तो आइटीआई है। दूरी भी कम है। संतुलित जवाब से एक तरह से सीएम ने दोनों मंत्रियों की बात को प्राथमिकता देते हुए टकराव को फिलहाल टाल दिया।
आधा दर्जन आईटीआई शुरू करने को मंजूरी
इस तल्ख चर्चा के बाद शिवराज कैबिनेट में प्रदेश में आधा दर्जन आईटीआई की स्थापना को मंजूरी दे दी गई। इनके संचालन के लिए स्टाफ के तौर पर 114 ट्रेनी और 66 प्रशासकीय पद भी स्वीकृत कर दिए गए। साथ की बजट के रूप में करीब 120 करोड़ रुपए मंजूर करने पर सहमति बनी है।
पहली बार दो मंत्रियों की तल्खी सामने आई
जानकर बताते हैं कि इस तरह की शिवराज कैबिनेट में इस तरह दो मंत्रियों के बीच में तल्खी पहली बार देखी गई है। यह विधानसभा चुनाव की आहट और पुरानी घोषणाओं को पूरा करने के अलावा मंत्रियों पर काम का बढ़ता दबाव की वजह हो सकती है। विधानसभा चुनाव में करीब चार महीने शेष हैं और सभी मंत्रियों और विधायकों का फोकस अब अपनी-अपनी विधानसभाओं पर बढ़ गया है।